गुरुवार, 26 मई 2016

पूजा भक्ति क्या और कैसे होती है


प्रश्न- कुछ लोग बोलते है कबीर साहेब ने मूर्ति पूजा का विरोध किया है.. रामपाल जी महाराज भी ऐसा ही कर रहे है?? रामपाल जी हिन्दू धर्म की पूजा को गलत बता रहे है???? उत्तर - देखिए कबीर साहेब ने ये कहा है फोटो मूर्ति का काम इतना होता है हमे भगवान की याद आती हैा लेकिन मूर्ति के सामने घंटी बजाना या मूर्ति को भोग लगाना पैसे चढाना रोज नहलाना कपडे पहराना मतलब मूर्ति पर आश्रित होना वो गलत है.. पूजा क्या होती है?? १.ध्यान -- जैसे हम मूर्ति या फोटो को देखते है भगवान की याद आती है .. भगवान को जितनी बार याद करते है उससेे ध्यान यज्ञ का फल मिलता है.. चाहे कही बैठ कर कर लो.. २..ज्ञान.... सुबह शाम आरती करना धार्मिक बुक गीता या कबीर नानक वाणी को पढना ये होती है ज्ञान यज्ञ.. इससे ज्ञान यज्ञ का फल मिलता है.. ३.हवन.... जैसे हम ज्योति लगाते है देशी घी की उससे हमे हवन यज्ञ का फल मिलता है... ४. धर्म... जैसे हम भंडारा आदि भूखे को भोजन कराते है उससे धर्म यज्ञ का फल मिलता है.. ५.. प्रणाम.. जो हम लम्बे लेट कर भगवान को प्रणाम करते है प्रणाम यज्ञ का फल मिलता है.. ये पांच यज्ञ करनी होती है साथ मे जो गुरू नाम (मंत्र )भी जाप करना होता है.. नाम(मंत्र) क्या होता है??? जिस इष्टदेव की आप पूजा करते हो उसका एक गुप्त आदि नाम होता है उसको मंत्र(नाम) बोलते है.. उदाहरण - जैसे नाग बिन के वश होता है बिन बजते ही सावधान हो जाता है.. ऐसे ही ये देवता भगवान अपने अपने मंत्र के वश होते है ... नारद ने ध्रुव को ऐसा मंत्र दिया था ध्रुव ने ऐसी कसक के साथ जाप किया था 6 महीने मे बिषणु को बुला दिया था.. ये 5 यज्ञ करना और साथ मे गुरूमंत्र का जाप करना ही पूजा करलाती है.. उदाहरण के लिए - आपका शरीर समझो खेत है .. पूजा मे ये गुरूमंत्र समझो बीज है ये पांच यज्ञ समझो खाद पानी निराई गुडाई है... अगर आप गुरूमंत्र जापकर रहे हो पांचो यज्ञ नही कर रहे हो तो आप ऐसे हो -- जैसे आप खेत मे बीज डाल रहे है खाद पानी नही दोगे तो बीज नही होगा.. आपका बीज डालना व्यर्थ है... और अगर आपने गुरूमंत्र नही लिया है केवल पांच यज्ञ ही कर रहे हो तो ऐसा है... जैसे खेत मे खाद पानी डाल रहे हो बीज आपने डाला ही नही तो खाद पानी डालना व्यर्थ है.. उससे घास फूस झाडिया ही उगेगी...फसल नही जैसे खेत मे बीज और खाद पानी डालना जरूरी है, वैसे ही भगवान की पूजा भगती मे गुरूमंत्र(बीज) और पांचो यज्ञ (खाद पानी) करने जरूरी है... रामपाल जी महाराज कबीर साहेब ने ऐसे पूजा करने को कहा है.. ये गीता वेद शास्त्रो मे ऐसे ही लिखी है...लेकिन हिन्दू धर्म के लोग इसके विपरीत कर रहे है ना तो वो गुरू बनाते है राम कृष्ण मीरा घ्रुव पहलाद सबने गुरू बनाया क्या वो पागल थे.. जिस इष्टदेव की पूजा करते है उनका मंत्र इनके पास नही है.. मंदिर की घंटी बजा कर फुल चढा कर पाच रूपये का प्रसाद बाटकर पूजा समझते है.. ओस के चाटने से प्यास नही बुझती.... रामपाल जी महाराज हमे सभी देवी देवताओ का आदर सत्कार करने को बोलते है... हम हिन्दू धर्म, वेद गीता , देवी देवताओ सबको मानते है सबका सत्कार करते हैा जैसे पतिवर्ता औरत पूजा अपने पति की करती है बाकी देवर जेठ जेठानी देवरानी सास ससुर सबका आदर करती है.. ऐसे ही हम पूजा कबीर साहेब पूर्णब्रह्म की करते है और सभी देवी देवता ब्रह्मा विषणु शिव दुर्गा ब्रह्म परब्रह्म सबका आदर सत्कार करते है.... ये संसार एक पेड की तरह है ये संसार के लोग संसार रूपी पेड के पत्ते है ३३ करोड देवी देवता छोटी छोटी टहनिया है..आगे ब्रह्मा बिषणु शिव तीन मोटी शाखा है आगे ब्रह्म( काल) निरंजन डार है आगे परब्रह्म तना है अागे पूर्णब्रह्म (कविर्देव) कबीर साहेब संसार रूपी पेड की जड है.... संत रामपाल जी महाराज ये नही कहते कि इन टहनी पत्तो डार शाखा को काट दो मतलब इन देवी देवताओ को छोड दो.. संत रामपाल जी ये कहते है आप केवल जड मे पानी डालो मतलब पूर्णब्रह्म कबीर साहेब की पूजा करो..गीता अ०-15 श्लोक 4 मे गीता ज्ञान दाता कह रहा है मै भी उसी आदि नारायण परमेश्वर की शरण मे हुँ. उसी की पूजा करनी चाहिये.. . जड पूरे पेड का center है जड के सामने सारे टहनी पत्ते शाखा डार तना सब भिखारी है.. जड मे पानी डालने से पूरे पेड को आहार मिलेगा पूरे पेड का विकास होगा.. एक पूर्णब्रह्म के सामने सब भिखारी है एक पूर्णब्रह्म की पूजा मे सब की पूजा हो जाती है जैसे जड मे पानी डालने से पूरे पेड का विकास हो जाता है... ये साधना शास्त्रानुकूल साधना है.. कबीर - एक साधे सब सधे, सब साधे सब जावे... माली सिंचे मूल को फले फूले अंगाहे... लेकिन दुनिया वाले क्या कर रहे है देवी देवताओ को पूजते है ये तो ऐसे है टहनी और शाखाओ मे पानी देना... जड मूल(पूर्णब्रह्म) का लोगो को मालूम नही है.. जड को छोड टहनियो शाखाओ मे पानी दोगे तो पेड सूखेगा ही... ये शास्त्रविरूद्ध साधना है.. ये तो ओस चाटना है ओस चाटने से प्यास नही बुझती...

सोमवार, 23 मई 2016

सच्चे संत की अकाल मौत कभी नहीं होती


संत सदगुरु और उनके शिष्य यदि किसी बीमारी या दुर्घटना से उनकी मृत्यु हो तो उनकी साधना ठीक नहीं है यानी शास्त्रविरुद्ध है क्योंकि शास्त्रविधि साधना करने वाले की अकाल मौत कभी नहीं होती है~ गीता अध्याय 16 श्लोक 23' निरंकारी बाबा हरदेव सिंह की एक बात याद आती है पहली तो बात संत हमेशा नाम के पीछे दास लगाते हैं कबीर दास तुलसी दास आदि.. बाबा हरदेव सिंह जी की कनाडा मे मुत्यु के दौरान कबीर परमेश्वर की वाणी याद आती है.. कबीर - कबीरा काहे गर्वयो काल गहे कर केश.. ना जाने कहा मारेगा क्या घर क्या परदेश.. कबीर परमेश्वर कहते है तुम किस चीज का घमंड करते हो काल बाल पकड़ कर ले जायेगा.. ना जाने घर मारेगा या परदेश मे मारेगा.. कबीर - कहा जन्मे कहा पाले पोसे कहा लडाये लाड.. ना जाने इस देही के कहा खिंडेगे हाड... किसी संत का भयानक बीमारी या दुर्घटना से मरने पर मन मे बहुत से सवाल खड़े होते हैं क्या फायदा ऐसी भक्ति साधना का जब गुरू जी ऐसी मौत मरे तो शिष्य कैसे सुरक्षित रह सकते है.. शिष्यों की हिफाजत की जिम्मेदारी कौन लेगा.. ?? निरंकारी मिशन का अगला उत्तराधिकारी कौन होगा?? क्योकि बाबा हरदेव सिंह जी को तो क्षर पुरुष ने इतना मौका ही नही दिया ताकी वे अपने बाद किसी को उत्तराधिकारी घोषित कर सके.??? जयगुरूदेव और निरंकारी मिशन का यहा पर आकर विराम लग जाता है.. मै किसी की आलोचना नही कर रहा हूँ परमात्मा का विधान बता रहा हूँ.. किसी को मेरी बात बुरी लगे तो माफी चाहता हूँ कबीरा खडा बाजार मे सबकी मांगे खैर ना काहु से दोस्ती ना काहु से बैर..

शनिवार, 21 मई 2016

आधे से ज्यादा जज आज भी भ्रष्ट हैं


क्या आप जानतें है कि हम एक secular देश मे रहते है । हर किसी को उसका जन्म और भारत का कानून यह हक देता है कि वो अपने धर्म व अपनी जाति को जब चाहे तब बदल सकता है । यहाँ तक कि प्रधानमत्रीं भी उसे मना नही कर सकता । हमारी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का ना राष्ट्रपति हक रखते है और ना ही यह छोटे मोटे मुख्यमंत्री । हमारी देश कि कुल आबादी 125 करोड़ है लगभग और सभी किसी ना किसी धर्म से तालुक रखते है । भारत मे दो तरह कि ताकत है एक तो अच्छे लोग और एक तरफ यह भ्रष्ट लोग जो देश का खुन चूस रहे है । देश के आधे से ज्यादा जज भी अब भ्रष्टता पर आ चुके है । मोदी जी से गुज़ारिष है जो हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री हैं । मोदी साहब आप कि सोच ने मुझे बहुत प्रभावित किया था । मै भी आपका फेन हुँ लेकिन एक दुख है मन का कि बरवाला की घटना के बाद लाखों विज्ञापन आपको सौंपे गए पर आप तक एक भी पहुंची । हम जन्तर मतंर पर 240 दिनों से बेठे हैं क्या आपको दिखाई नही देता ।। हमें c.b.i जांच कि मांग करते 16 साल हो चुके है अभी भी आॅख खोल लो जी । हमारे आपने 6 भाई बहनो को मरवा दिया आपको रहम नही आया । लगातार 16 सालो से हमारे साथ अन्याय हो रहा है 2 बार हमारे गुरूजी संत रामपाल जी जेल जा चुके हैं । 900 भक्तो को भी जेल मे डाल दिया क्या भक्त व संत कभी देशद्रोही होते है । क्या हम भारतवासी नही है । हम जहाँ भी गए हमे अन्याय ही मिला अदलातो से लेकर थानो तक सिर्फ नाकामी हाथ आई । अगर जल्द ही हमे न्याय नही मिला व केसों कि सी बी आई c.b.i जांच नही करवाई गईं तो हम सब 80 लाख संत रामपाल जी के अनुयायी जन्तर मन्तर पर अात्मदाह (suicide) कर लेंगे । इतना अन्याय अब हमें सहन नही होगा । न्याय दो या मौत हमे न्याय नही दिला सकते तो हमे मौत दे दो हम अपने गुरूजी के बिना नही जी सकते । अब जिन्दगी मे न्याय कि हमे कोई आशा नही है । आज हमारे साथ ये हो रहा है कल आपके साथ भी हो सकता है । भाई बहनो कृपया हमारी मदद करे ।। आप इस पोस्ट को share करे जी ताकि यह बात मोदी जी तक पहुंच जाए । Share it once आपके हाथों में अब 80 लाख लोगों की जान है ।

शनिवार, 14 मई 2016

नाचना गाना भक्ति के विरुद्ध


लोगों ने भक्ति को धन कमाने का धन्धा बना लिया है।किसी ने सोचा कर्म ही भक्ति है,किसी ने जटा बढ़ाना ही भक्ति समझ लिया,किसी के लिए नाचना-गाना ही भक्ति हो गयी है।वास्तव में यह भक्ति नहीं है बल्कि भक्ति का कुंठित रुप है।कबीर साहेब जी वाणी में साफ कह रहे हैं:- भक्ति न होय नाचे गाए,भक्ति न होय घंट बजाए। भक्ति न होय जटा बढ़ाए,भक्ति न होय भभूत रमाए। भक्ति होय नहिं मूरत पूजा,पाहन सेवे क्या तोहे सूझा। भक्ति न होय ताना तूरा,इन से मिले न साहेब पूरा। ऐसे साहिब मानत नाहीं,ये सब काल रुप के छांही। नाचना कूदना ताल को पीटना,ये सब रांडिया खेल है भक्ति नाहिं ।। नाच-गाने(मनोरंजन)के द्वारा काल भगवान इस जीव को खुश रखता है ताकि कोई भी जीव भक्ति करके उसकी सीमा से बाहर न निकल जाए इसलिए वह (ब्रह्म)जीव को उलझा कर रखता है। "सत् साहेब" "साहिब ही सत्य है"

मथुरा वाले बाबा जयगुरुदेव की भविष्यवाणी


खुशखबरी वह संत आ चुका है जिसकी भविष्यवाणी मथुरा वाले बाबा जयगुरूदेव (तुलसीदास) द्वारा कि गई है सन् 7 सितम्बर 1971 आखिर कौन है वह संत जिसके लिए जयगुरूदेव के हजारो समर्थको ने खाना पीना त्याग दिया और खोज मे लगे हुए है रिपोर्टर सन् 1971 मथुरा के संत जयगुरूदेव जी ने सन् 1971 मे एक भविष्यवाणी की थी और वह शाकाहारी पत्रिका मे छपा था की "वह अवतार जिसकी लोग प्रतिक्षा कर रहै है वह 20 वर्ष का हो चुका है यदि उसका पता बता दू तो लोग उसके पीछे पड जाएंगे अभी ऊपर से आदेश बताने को नही हो रहा मै समय का इंतजार कर रहा हू समय आते सबको सब कुछ मालूम हो जाएगा " इस बात को सुनकर उनके अनुयायियो ने पूछा कि वह अभी कहा है व बार बार आग्रह करने पर बताया की "महापुरूष का जन्म भारतवर्ष के छोटे से गाव मे हो चुका है और वह व्यक्ति मानव इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बनेगा उसे जनता का इतना बडा समर्थन प्राप्त होगा आज तक किसी को नही मिला वह महापुरूष नए सिरे से विधान को बनाएगा और विशव के सभी देशो को लागू होगा उसकी एक भाषा होगी उसका एक झंडा होगा " लेकिन जय गुरुदेव पन्थ के हजारो भगत ले चुके हैं अन्न त्याग का दृढ़ संकल्प जय गुरु देव पंथ के मुखी बाबा तुलसी दास साहेब ने जब से इस बात की भविष्यवाणी की कि वह सन्त जिसकी अध्यक्षता मे सतयुग जैसा माहौल कलयुग मे आयेगा उसका जन्म हो चुका है। तब से जयगुरुदेव पंथ के अधिकांश अनुयायी उस सन्त की खोज मे रात दिन लगे रहते है। आपको यह जानकर आश्चर्य भले ही हो पर यह सत्य है। जय गुरुदेव पंथ के हजारों भगतो ने उस सन्त की खोज के पूरे होने तक अन्न का त्याग कर रखा है। बाबा जय गुरु देव के समर्थको द्वारा बार बार यह प्रश्न किये जाने पर कि बाबा आप कहते रहते है सतयुग आयेगा कलयुग जायेगा पर अभी तक सतयुग जैसा माहौल उत्पन्न नही हुआ है अपितु घोर कलयुग आता जा रहा है तब स॔गत के बार बार आग्रह करने पर बाबा जय गुरुदेव ने 7 सितम्बर 1971 को इस बहुचर्चित प्रश्न पर पटाक्षेप करते हुये उदघोषित किया कि उनकी अगुवाई मे सतयुग जैसा माहौल नही आयेगा अपितु वह सन्त कोई और है बाबा जयगुरुदेव के मुख से ऐसा वक्तव्य सुनकर बाबा जयगुरुदेव के सभी अनुयायियों को विस्मय भरा घोर आश्चर्य हुआ ।तब उन सभी अनुयायियों ने उन सन्त के बारे मे और ज्यादा जानकारी जाननी चाही तब जयगुरुदेव ने 7 सितम्बर 1971 को बताया कि आज वह सन्त पूरे वीस वर्ष का हो चुका है। जय गुरुदेव के उक्त वचन के अनुसार उस सन्त की जन्म तिथि 8 सितम्बर 1951 बनती है।क्योंकि 7 सितम्बर 1971 को उन सन्त जी ने पूरे 20 वर्ष पूर्ण किये थे। जयगुरुदेव के जीवित रहते ही इस बिषय पर मन्थन शुरु हो गया था कि वह सन्त कौन है जिनकी जन्मतिथि 8 सितम्बर 1951 है।इसी क्रम मे बाबा जयगुरुदेव के कुछ 8 सितम्बर 1951 को जन्मे व कुछ 7 सितम्बर 1951 को जन्मे 11 अनुयायियों ने वह सन्त होने का दावा ठोंका जिसे बाबा जयगुरुदेव ने रिजेक्ट कर दिया था उसके बाद अनेको भगत यह दावा ठोंकते रहे पर बाबा जयगुरुदेव ने सभी दावे निरस्त करते हुये यहाँ तक कह दिया था कि उनके शिष्यों मे कोई भी वह सन्त नही है।इसके बाद सन 1981 की गुरुपूर्णिमा पर भी बाबा जयगुरुदेव ने उन सन्त का पुनः जिक्र किया।और ठोंककर कर कहा कि वह सन्त 30 वर्ष का होने जा रहा है इसके वाबजूद भी जयगुरुदेव पंथ के कई अनुयायियों ने अपने मत से अनेक सन्त मत चला रखे है ज्ञात हो कि बाबा जयगुरुदेव ने मृत्यु पर्यन्त किसी को भी अपना उत्तराधिकारी नही बनाया था।फिर भी बाबा जयगुरुदेव के अनेकानेक अनुयायी साम दाम दन्ड भेद के सिद्धान्त की आड़ लेकर गुरुपद पर विराज मान हो गये है। पर इसके ठीक विपरीत जयगुरुदेव पंथ के हजारों की संख्या मे अनुयायियों ने खुद को गुरुपद पर विराजित करने के स्थान पर उन परम सन्त की खोज मे अन्न का त्याग कर रखा है जिन सन्त की जन्म तिथि 8 सितम्बर 1951 है। अब इनको कौन समझाये कि वह सन्त और कोई नही बल्कि सन्त रामपाल जी महाराज ही है। जानिए वह संत कौन है 7:40 से 8:40 रात रोजाना साधना चैनल पर और हरियाणा न्यूज चैनल पर 6:00 से 7:00 तक

God is not formless.


निरंकारी मिशन वाले परमात्मा को निराकार मानते है जब की वेदों मे प्रमाण है परमात्मा साकार है और राजा के समान दर्शनीय है ! प्रमाण के लिये देखे ऋंगवेद मंडल न. 9 सुक्त 82 मंत्र 1,2 और खुद निर्णय करे ! परमात्मा साकार है व सहशरीर है यजुर्वेद अध्याय 5, मंत्र 1, 6, 8, यजुर्वेद अध्याय 1, मंत्र 15, यजुर्वेद अध्याय 7 मंत्र 39, ऋग्वेद मण्डल 1, सूक्त 31, मंत्र 17, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 86, मंत्र 26, 27, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 82, मंत्र 1 - 3 (प्रभु रजा के समान दर्शनिये है)

शुक्रवार, 13 मई 2016

निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी का निधन

मॉन्ट्रियल (कनाडा). निरंकारी मिशन के बाबा हरदेव सिंह का कार एक्सीडेंट में निधन हो गया। कैनेडा में बाबा हरदेव सिंह निरंकारी का निधन, गाड़ी का टायर फटने से हुअा हादसा बाबा हरदेव सिंह निरंकारी जी का कैनेडा में निधन हो गया है। सड़क हादसे में उनका निधन हुअा है। कैनेडा के मोंट्रियल शहर में गाड़ी का टायर फटने से यह घटना हुई। दुनिया के सताइस देशों में निरंकारी समाज के लोग है। घटना के बाद निरंकारी समाज में शोक की लहर फैल गई है। हाल ही में बाबा हरदेव सिंह ही कैनेडा गए थे। हादसे के वक्त उनके दो दामाद उनके साथ थे जिनमें एक की हालत गंभीर बनी हुई है। निरंकारी समाज की स्थान १९२९ में हुई थी दुनिया भर में उनकी सौ शाखाएं है। बाबा हरदेव सिंह जी १९८० में निरंकारी समाज के प्रमुख बने थे। दामाद संदीप खिंदा अौप अवनीत उनके साथ थी जिनमें अवनीत की हालत गंभीर बनी हुई है वे निरंकारी संप्रदाय के चीफ थे। Photo by : punjab keshri

गुरुवार, 12 मई 2016

नव नाथ चौरासी सिद्ध कैसे पैदा हुए


नौ नाथ व चौरासी सिद्ध कैसे उत्पन्न हुए। . आपने अमरनाथ की कथा तो सुनी ही होगी जहां शिव शंकर ने पार्वती जी को मंत्र दिया था। उस समय शिवजी द्वारा बताया वह मंत्र एक तोते ने भी सुन लिया था। जब शिवजी को पता लगा तो उस तोते को मारने के लिए उसके पीछे दौडे। तब वह तोते वाली आत्मा अपना तोते वाला शरीर छोडकर व्यास जी की पत्नी के पेट में चला गया। समय आने पर शरीर धारण किया। जब वह 12 वर्ष तक भी गर्भ से बाहर नहीं आया तब ब्रह्मा, विष्णु महेश ने उससे कहा कि अगर ये ही रीत चली पडी तो माताए बहुत दुखी हो जाएगी, सुखदेव जी बाहर आ जाइए। तब सुखदेव जी ने कहा कि आपने अपनी त्रिगुणमयी माया का जाल फैलाया हुआ है। अभी तो मुझे अपने सभी पुराने जन्म कर्म याद है, बाहर आते ही मैं सब भूल जाऊंगा। मैं एक शर्त पर बाहर आऊंगा, अगर आप कुछ समय के लिए त्रिगुण प्रभाव को रोक दें तो ही मैं आऊंगा। तब तीनो देवो ने कहा कि हम केवल इतनी देर ही इस प्रभाव को रोक सकते हैं जितनी देर तक राई(सरसों का बीज) भैंस के सींग पर ठहर सकता है अर्थात एक सेकेंड से भी बहुत कम समय तक। सुखदेव जी ने कहा आप इतने ही समय तक रोक दीजै। तीनों देवों ने जब माया का प्रभाव रोका उस समय 94 बच्चे पैदा हुए। उन सबको अपने पुराने जन्म याद थे और उन्हें ये बात याद रह गयी कि भक्ति करने के लिए ही मनुष्य जीवन मिलता है। उन 94 बच्चों में से 84 तो सिद्ध हो गए व 9 नाथ हुए, और एक सुखदेव ऋषि हुए। सत साहेब जी बन्दीछोड सतगुरू रामपाल जी महाराज जी की जय।

मंगलवार, 10 मई 2016

महान क्रांति का शंखनाद

सत साहेब ,,,, ये उत्पात नहीं महानक्रान्ति का शंखनाद हैं जिसमे एक सच्चे संत और उनके अनुयायियों ने ठान लिया है कि चाहे जो भी हो वो इन भ्रष्ट नेताओं , मीडिया और सरकार और पाखंड के खिलाफ आवाज उठाते रहेंगे ,,,,वेशक कुछ छोटी सोच रखने वाले , अपने आप तक मतलब रखने वाले और मुर्ख किस्म के पढ़े लिखे लोग जो अपने विवेक खो चुके हैं इसे उत्पात , दंगा या मारपीट का नाम दें पर कोई भी घटना क्यूँ होती है कैसी होती है उसका परिणाम भविष्य में तय होता है ना कि लोगों की अटकलों से ,,,, वैसे भी समाज के लोगों को एक बात सोचनी चाहिए कि आखिर क्यूँ एक संत और उसके शिष्य बार बार एक ही मांग कर रहे हैं कि हमारे केस की सीबीआई से जांच हो और हमें न्याय मिलें , पर जहां एक तरफ राक्षस किस्म के लोग हैं वोही पर भगत भी हैं और विवेक शील जनता को यह देखना चाहिए कि जहां आजकल के संत राजनीति को अपना मोहरा बनाकर चलते हैं और कहीं न कहीं राजनेताओं से अपना तालुक रखते हैं क्या वो एक संत विचार धरा के हैं , जब उनसे पूछा जाता हैं कि संतो का राजनीति से क्या तालुक तो कहते हैं कि संतो के दरवाजे सबके लिए खुले होते हैं , संतो के दरवाजे सिर्फ भगत समाज के लिए खुलते हैं ना कि चोर लुटेरो के लिए और एक संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी और खुद संत रामपाल जी महाराज ही हैं जिन्होंने पाखंड और बढ़ते अत्याचार के खिलाफ आवाज उठायी हैं और ये आवाज कहां तक बुलंद होगी आने वाले समय में पता चल जाएगा और समाज एक दिन उनका लोहा मानेगा ..... आजकल कोई अपने रोजगार के लिए लड़ रहा हैं , कोई जमीन के लिए और संत रामपाल जी महाराज और उनके चेले ही हैं जो धर्म कि स्थापना और सत मार्ग के लिए संघर्ष शील हैं और अपने आखिरी दम तक रहेगा वैसे भी परमात्मा कबीर कि वाणी हैं : धर्म तो धसके नहीं धसके तीनो लोक सत साहेब अवश्य देखे साधना चैनल रात 7.45 से 8.45 तक और हरियाणा न्यूज़ सुबह 6 बजे से 7 बजे तक

शुक्रवार, 6 मई 2016

आरोपी कभी सीबीआई जांच कराने की मांग नहीं करता


हिम्मत है तो मेरे गुरु पर लगे आरोप सिद्ध करके दिखाओ हिम्मत है तो मेरे परमेश्वर द्वारा दिए ज्ञान को गलत साबित करके दिखाओ अरे मूर्खों :- समझो दिमाग का प्रयोग करो पूरे ब्रह्माण्ड के धर्म गुरुओं को ललकारने वाला सभी धर्मों के गर्न्थो को खोलकर संगत को शिक्षित करने वाला प्रमाण सहित धर्मगुरुओं को गलत साबित करने वाला छाती ठोक कर अपने आप को परमेश्वर का दूत्त कहने वाले को कोई जेल में कैसे बन्द कर सकता है ? या तो कोई कारण है जिसे ना तुम समझ पाये और ना ज्योति निरंजन जब जगत गुरु जेल से बाहर आएंगे तुम भी पछताओगे और तुम्हारा आका भी रोहतक वाली जिस जेल में सन्त रहा वहां से जेल को ही ट्रांसफर करना पड़ा आज वहां पार्क है । फिर हिसार वाली जेल भी कहाँ रह पावेगी ? खट्टर फटर की तो विसात ही क्या ? हमारी लड़ाई ज्योति निरंजन भगवान से हैं मेरी लड़ाई अज्ञान से है और आखिर जीत मेरी है

गुरुवार, 5 मई 2016

इच्छा दासी काल की


🙏🏻🙏🏻कबीर बाणी🙏🏻🙏🏻 इच्छा दासी यम की खडी रहे दरबार.. पाप पूण्य दो बीर , ये खसमी नार... अर्थ- ये इच्छा काल की दासी हैा. इच्छा आत्मा को काल के दरबार मे खडा कर देती हैा पाप और पूण्य ये दो भाई है.. इच्छा इन दोनो की पत्नी है.. इच्छा ही पाप और पूण्य करवाती हैा... पाप - को कबीर परमात्मा का सतनाम मंत्र समाप्त करेगा.. इच्छा- को आप समाप्त करो मालिक के तत्वज्ञान रूपी शास्त्र से ... सतगुरू मिले तो इच्छा मिटे, पद मिले पद समाना.. चल हंसा उस लोक पठाऊ , जहा आदि अमर अस्थाना.. पूण्य- को काल के कर्ज के रूप मे दे देगे... तब सतलोक जा सकते हैा... कबीर - जिवित मुक्ता सो कहो आशा तृष्णा खंड.. मन के जीते जीत है क्यो भरमे ब्रह्मांड... अर्थ- जिसकी आशा तृष्णा समाप्त हो गई है मतलब इच्छा समाप्त हो गई है उसको जिवित मरना कहते है वह जिवित संसार मे रहकर भी संसार से मुक्त हो जाता हैा. उसको ही मन जीतना कहते हैा मन को जीतने के बाद ही आप सतलोक जा सकते हैा.. जो योगी तप करते दिखाई देते है लेकिन इनका मन ब्रहाांड मे घूम रहा होता हैा तप से राज मिलता है मुक्ती नही.. भवार्थ- जिन लोगो की इच्छा सतलोक मे जाने की हो गई है उसकी इस संसार से आशा तृष्णा समाप्त हो गई हैा वह लोग इस संसार को जरूरत के हिसाब से जी रहे हैा लेकिन जो लोगो संसार को ख्वाईस के हिसाब से जी रहे हैा वह भगत नही हैा जैसे एक बीवी अापकी जरूरत हैा अपनी बीवी को छोडकर गैर स्त्री पर बुरी नजर डालना वो आपकी ख्वाईस कहलाती हैा.. एक इंसान के रहने के लिए एक कमरा जरूरत हैा कोठी बंगले आपकी खवाईस हैा.. जिनको मालिक ने कोटि बंगले दिये है अच्छी बात है लेकिन जिनके पास नही है वह भक्ति करे रीस ना ना करे.. दो वक्त की रोटी जरूरत हैा 36 तरह के पकवान की इच्छा आपकी ख्वाईस हैा.... भगत दास हो तो जरूरत के हिसाब से जीना सीख लो.. ख्वाईस के हिसाब से जो जीता है वह भगत नही हैा.. गुरू जी कहते है मालिक ने जिसको जितना दिया हैा उस मे खुश रहो.. दूसरो की रीस मत करो.. गुरू जी जरूरत के लिए मना नही करते बल्कि ख्वाईसो के लिए मना करते हैैा.. जैसे टी वी पर सतसंग देखना आपकी जरूरत हैा टी वी पर फिल्मे नाटक गेम खेलना जरूरत नही है जो लोग फिल्मे नाटक देखते है वह भगत नही हैा

समाज का एक कड़वा सच

एक दिन पंडित को प्यास लगी, संयोगवश घर में पानी नहीं था। इसलिए उसकी पत्नी पड़ोस से पानी ले आई। पानी पीकर पंडित ने पूछा.... पंडित - कहाँ से लायी हो? बहुत ठंडा पानी है। पत्नी - पड़ोस के कुम्हार के घर से। (पंडित ने यह सुनकर लोटा फेंक दिया और उसके तेवर चढ़ गए। वह जोर-जोर से चीखने लगा ) पंडित - अरी तूने तो मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया। कुम्हार ( शूद्र ) के घर का पानी पिला दिया। (पत्नी भय से थर-थर कांपने लगी) उसने पण्डित से माफ़ी मांग ली। पत्नी - अब ऐसी भूल नहीं होगी। शाम को पण्डित जब खाना खाने बैठा तो घर में खाने के लिए कुछ नहीं था। पंडित - रोटी नहीं बनाई। भाजी नहीं बनाई। क्यों???? पत्नी - बनायी  तो थी। लेकिन अनाज पैदा करने वाला कुणबी(शूद्र) था और जिस कड़ाई में बनाया था, वो कड़ाई लोहार (शूद्र) के घर से आई थी। सब फेंक दिया। पण्डित - तू पगली है क्या?? कहीं अनाज और कढ़ाई में भी छूत होती है? यह कह कर पण्डित बोला- कि पानी तो ले आओ। पत्नी - पानी तो नहीं है जी। पण्डित - घड़े कहाँ गए??? पत्नी - वो तो मैंने फेंक दिए। क्योंकि कुम्हार के हाथ से बने थे। पंडित बोला- दूध ही ले आओ। वही पीलूँगा। पत्नी - दूध भी फेंक दिया जी। क्योंकि गाय को जिस नौकर ने दुहा था, वो तो नीची (शूद्र) जाति से था। पंडित- हद कर दी तूने तो यह भी नहीं जानती की दूध में छूत नहीं लगती है। पत्नी-यह कैसी छूत है जी, जो पानी में तो लगती है, परन्तु दूध में नहीं लगती। (पंडित के मन में आया कि दीवार से सर फोड़ लूं) वह गुर्रा कर बोला - तूने मुझे चौपट कर दिया है जा अब आंगन में खाट डाल दे मुझे अब नींद आ रही है। पत्नी- खाट!!!! उसे तो मैनें तोड़ कर फेंक दिया है जी। क्योंकि उसे शूद्र (सुथार ) जात वाले ने बनाया था। पंडित चीखा - वो फ़ूलों का हार तो लाओ। भगवान को चढ़ाऊंगा, ताकि तेरी अक्ल ठिकाने आये। पत्नी - हार तो मैंने फेंक दिया। उसे माली (शूद्र) जाति के आदमी ने बनाया था। पंडित चीखा- सब में आग लगा दो, घर में कुछ बचा भी हैं या नहीं। पत्नी - हाँ यह घर बचा है, इसे अभी तोड़ना बाकी है। क्योंकि इसे भी तो पिछड़ी जाति के मजदूरों ने बनाया है। पंडित के पास कोई जबाब नहीं था। उसकी अक्ल तो ठिकाने आयी। बाकी लोगों कि भी आ जायेगी। सिर्फ इस कहानी को आगे फॉरवर्ड करो। हो सकता है देश से जातिय भेदभाव खत्म हो जाये। एक कदम बढ़ाकर तो देखो...!!

ओम तत् सत् का वर्णन


आदरणीय भगत आत्माओं मैं आपजी के समक्ष अपने सदगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी की असीम प्रेरणा से प्राप्त ॐ तत सत मन्त्र का विस्तृत अर्थ नामक इस लेख को पोस्ट कर रहा हूँ ... आपजी इसको पढ़े तथा वास्तविक आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करे || विशेष:- गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में वर्णित तत्वदर्शी संत ही पूर्ण परमात्मा के तत्वज्ञान को सही बताता है, उन्हीं से पूछो, मैं (गीता बोलने वाला प्रभु) नहीं जानता। इसी का प्रमाण गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तक भी है। इसीलिए यहाँ गीता अध्याय 17 श्लोक 23 से 28 तक का भाव समझें। अध्याय 17 के श्लोक 23 से 28 तक में कहा है कि पूर्ण परमात्मा के पाने के ऊँ, तत्, सत् यह तीन नाम हैं। इस तीन नाम के जाप का प्रारम्भ स्वांस द्वारा ओं (ॐ) नाम से किया जाता है। तत्वज्ञान के अभाव से स्वयं निष्कर्ष निकाल कर शास्त्रविधि सहित साधना करने वाले ब्रह्म तक की साधना में प्रयोग मन्त्रों के साथ ‘ऊँ‘ मन्त्र लगाते हैं। जैसे ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः‘, ‘ऊँ नम: शिवायः‘ आदि-आदि। यह जाप (काल-ब्रह्म तक व उनके आश्रित तीनों ब्रह्मा जी, विष्णु जी, शंकर जी से लाभ लेने के लिए) स्वर्ग प्राप्ति तक का है। फिर भी शास्त्र विधि रहित होने से उपरोक्त मंत्र व्यर्थ हैं बेसक इन मंत्रों से कुछ लाभ भी प्राप्त हो। तत् नाम का तात्पर्य है कि (अक्षर ब्रह्म) परब्रह्म की साधना का सांकेतिक मन्त्र। यह तत् मन्त्र है। वह पूर्ण गुरु से लेकर जपा जाता है। स्वयं या अनाधिकारी से प्राप्त करके जाप करना भी व्यर्थ है। यह तत (सतनाम ) मन्त्र इष्ट की प्राप्ति के लिए विशेष मन्त्र है तथा सत् जाप मन्त्र पूर्ण परमात्मा का है जो सारनाम के साथ जोड़ा जाता है। उससे पूर्ण मुक्ति होती है। सतशब्द अविनाशी का प्रतीक है। प्रत्येक इष्ट की प्राप्ति के लिए भी "तत" शब्द है तथा सतशब्द अविनाशी का प्रतीक है। वह सारनाम है। पुण्य आत्माओं ओम् तत् सत् का विस्तृत वर्णन केवल पूर्ण सद्गुरु ही कर सकता है और🎤 पूरे विश्व में वह सतगुरु केवल संत रामपाल जी महाराज हैं जिनके पास पूर्ण मोक्ष का ज्ञान है। देखिए साधना चैनल शाम 7:30pm to 8:30 pm सत साहेब।

बड़े आश्चर्य की बात सच है इसलिए कड़वा है


क्या रामचंद्र रघुकुल वाले रामचंद्र भगवान थे/ हैं ? सच है इसलिए कडवा है.... शुद्रो से नफ़रत करने वाले , अकारण उनका वध करने वाले, नरसन्हारी, कान के कच्चे , स्वार्थी, मतलब एवं राज के लिये अपने बीवी बच्चों का त्याग करने वाले , राजा श्री रामचन्द्र जी ने अपनी पत्नी को रावण की कैद से छुडाने के लिए करोडो लोगो की आहूति दे दी। करोडो बहने विधवा करदी। करोडो बच्चे अनाथ कर दिये। 14 साल बाद जब सीता सहित बनवास(उस समय की जैल) से लोटे तो लोगो ने दीवाली मनाई। उसके थोडे दिन बाद श्री रामचन्द्र जी ने एक धोबी का व्यंग्य सुनकर सीता को कलंकित कहके घर से निकाल दिया ............. पिता के राजा होते हुए जंगलो में बच्चे भटके। विधवा से भी बत्तर जिन्दगी होती है उस महिला की...........जो पतिव्रता होते हुए भी कलंकित कहलाए। अग्नि परीक्षा लेकर भी अपनी शंका को खत्म नहीं कर पाए एेसे भगवान रामचन्दर जिन्हे परिवारिक सुख तक नहीं मिला। अंत में अपने जीवन से दुखी होकर सरयु नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली। . इनको तो लोग भगवान माने बेठे है। और जो वास्तव मे भगवान है, उसका अपमान करते हैं। वो भगवान जिसका जीकर चार वेद, कुराण-पुराण, गीता, बाइबल, गुरूग्रंथ साहिब , कबीर सागर , सत ग्रंथ साहिब, सब पवित्र ग्रंथों मे है, जो सब सत ग्रंथों से परमात्मा सिद्ध हो चुके हैं वो कबीर परमेश्वर ही सच्चे भगवान हैं !!!!!! . जो जानबूझ साची तजै, करे झूठ से नेह। ताकी संगति हे प्रभू, सपने में भी ना दे।।

कबीर साहेब और काल की वार्ता


कबीर परमेश्वर ने जब सभी ब्रह्मण्डों की रचना कर ली और अपने लोक में विश्राम करने लगे। उसके बाद हम सभी काल के ब्रह्मण्ड में रह कर अपना किया हुआ कर्मदण्ड भोगने लगे और बहुत दुःखी रहने लगे। सुख व शांति की खोज में भटकने लगे और हमें अपने निज घर सतलोक की याद सताने लगी तथा वहां जाने के लिए भक्ति प्रारंभ की। किसी ने चारों वेदों को कंठस्थ किया तो कोई उग्र तप करने लगा और हवन यज्ञ, ध्यान, समाधि आदि क्रियाएं प्रारम्भ की, लेकिन अपने निज घर सतलोक नहीं जा सके क्योंकि उपरोक्त क्रियाएं करने से अगले जन्मों में अच्छे समृद्ध जीवन को प्राप्त होकर) जैसे राजा-महाराजा, बड़ा व्यापारी, अधिकारी, देव-महादेव, स्वर्ग-महास्वर्ग आदि (वापिस लख चैरासी भोगने लगे। बहुत परेशान रहने लगे और परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करने लगे कि हे दयालु ! हमें निज घर का रास्ता दिखाओ। हम हृदय से आपकी भक्ति करते हैं। आप हमें दर्शन क्यों नहीं दे रहे हो ? यह वृतान्त कबीर साहेब ने धर्मदास जी को बताते हुए कहा कि धर्मदास इन जीवों की पुकार सुनकर मैं अपने सतलोक से जोगजीत का रूप बनाकर काल लोक में आया। तब इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में जहां काल का निज घर है वहां पर तप्तशिला पर जीवों को भूनकर सुक्ष्म शरीर से गंध निकाला जा रहा था। मेरे पहुंचने के बाद उन जीवों की जलन समाप्त को गई। उन्होंने मुझे देखकर कहा कि हे पुरुष ! आप कौन हो? आपके दर्शन मात्रा से ही हमें बड़ा सुख व शांति का आभास हो रहा है। फिर मैंने बताया कि मैं पारब्रह्म परमेश्वर कबीर हूं। आप सब जीव मेरे लोक से आकर काल ब्रह्म के लोक में फंस गए हो। यह काल रोजाना एक लाख मानव के सुक्ष्म शरीर से गंध निकाल कर खाता है और बाद में नाना-प्रकार की योनियों में दण्ड भोगने के लिए छोड़ देता है। तब वे जीवात्माएं कहने लगी कि हे दयालु परमश्ेवर ! हमारे को इस काल की जेल से छुड़वाओ। मैंने बताया कि यह ब्रह्मण्ड काल ने तीन बार भक्ति करके मेरे से प्राप्त किए हुए हैं जो आप यहां सब वस्तुओं का प्रयोग कर रहे हो ये सभी काल की हैं और आप सब अपनी इच्छा से घूमने के लिए आए हो। इसलिए अब आपके ऊपर काल ब्रह्म का बहुत ज्यादा ऋण हो चुका है और वह ऋण मेरे सच्चे नाम के जाप के बिना नहीं उतर सकता। जब तक आप ऋण मुक्त नहीं हो सकते तब तक आप काल ब्रह्म की जेल से बाहर नहीं जा सकते। इसके लिए आपको मुझसे नाम उपदेश लेकर भक्ति करनी होगी। तब मैं आपको छुड़वा कर ले जाऊंगा। हम यह वार्ता कर ही रहे थे कि वहां पर काल ब्रह्म प्रकट हो गया और उसने बहुत क्रोधित होकर मेरे ऊपर हमला बोला। मैंने अपनी शब्द शक्ति से उसको मुर्छित कर दिया। फिर कुछ समय बाद वह हांेश में आया। मेरे चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगा और बोला कि आप मुझ से बड़े हो, मुझ पर कुछ दया करो और यह बताओ कि आप मेरे लोक में क्यों आए हो ? तब मैंने काल पुरुष को बताया कि कुछ जीवात्माएं भक्ति करके अपने निज घर सतलोक में वापिस जाना चाहती हैं। उन्हें सतभक्ति मार्ग नहीं मिल रहा है। इसलिए वे भक्ति करने के बाद भी इसी लोक में रह जाती हैं। मैं उनको सतभक्ति मार्ग बताने के लिए और तेरा भेद देने के लिए आया हूं कि तूं काल है, एक लाख जीवों का आहार करता है और सवा लाख जीवों को उत्पन्न करता है तथा भगवान बन कर बैठा है। मैं इनको बताऊंगा कि तुम जिसकी भक्ति करते हो वह भगवान नहीं, काल है। इतना सुनते ही काल बोला कि यदि सब जीव वापिस चले गए तो मेरे भोजन का क्या होगा ? मैं भूखा मर जाऊंगा। आपसे मेरी प्रार्थना है कि तीन युगों में जीव कम संख्या में ले जाना और सबको मेरा भेद मत देना कि मैं काल हूं, सबको खाता हूं। जब कलियुग आए तो चाहे जितने जीवों को ले जाना। ये वचन काल ने मुझसे प्राप्त कर लिए। कबीर साहेब ने धर्मदास को आगे बताते हुए कहा कि सतयुग, त्रोतायुग, द्वापरयुग मंे भी मैं आया था और बहुत जीवों को सतलोक लेकर गया लेकिन इसका भेद नहीं बताया। अब मैं कलियुग में आया हूं और काल से मेरी वार्ता हुई है। काल ब्रह्म ने मुझ से कहा कि अब आप चाहे जितना जोर लगा लेना, आपकी बात कोई नहीं सुनेगा। प्रथम तो मैंने जीव को भक्ति के लायक ही नहीं छोड़ा है। उनमें बीड़ी, सिगरेट, शराब, मांस आदि दुव्र्यसन की आदत डाल कर इनकी वृत्ती को बिगाड़ दिया है। नाना-प्रकार की पाखण्ड पूजा में जीवात्माओं को लगा दिया है। दूसरी बात यह होगी कि जब आप अपना ज्ञान देकर वापिस अपने लोक में चले जाओगे तब मैं (काल) अपने दूत भेजकर आपके पंथ से मिलते-जुलते बारह पंथ चलाकर जीवों को भ्रमित कर दूंगा। महिमा सतलोक की बताएंगे, आपका ज्ञान कथेंगे लेकिन नाम-जाप मेरा करेंगे, जिसके परिणामस्वरूप मेरा ही भोजन बनेंगे। यह बात सुनकर कबीर साहेब ने कहा कि आप अपनी कोशिश करना, मैं सतमार्ग बताकर ही वापिस जाऊंगा और जो मेरा ज्ञान सुन लेगा वह तेरे बहकावे में कभी नहीं आएगा। सतगुरु कबीर साहेब ने कहा कि हे निरंजन ! यदि मैं चाहूं तो तेरे सारे खेल को क्षण भर में समाप्त कर सकता हूं परंतु ऐसा करने से मेरा वचन भंग होता है। यह सोच कर मैं अपने प्यारे हंसों को यथार्थ ज्ञान देकर शब्द का बल प्रदान करके सतलोक ले जाऊंगा और कहा कि - सुनो धर्मराया, हम संखों हंसा पद परसाया। जिन लीन्हा हमरा प्रवाना, सो हंसा हम किए अमाना।। (पवित्र कबीर सागर में जीवों को भूल-भूलइयां में डालने के लिए तथा अपनी भूख को मिटाने के लिए तरह-2 के तरीकों का वर्णन) द्वादस पंथ करूं मैं साजा, नाम तुम्हारा ले करूं अवाजा। द्वादस यम संसार पठहो, नाम तुम्हारे पंथ चलैहो।। प्रथम दूत मम प्रगटे जाई, पीछे अंश तुम्हारा आई।। यही विधि जीवनको भ्रमाऊं, पुरुष नाम जीवन समझाऊं।। द्वादस पंथ नाम जो लैहे, सो हमरे मुख आन समै है।। कहा तुम्हारा जीव नहीं माने, हमारी ओर होय बाद बखानै।। मैं दृढ़ फंदा रची बनाई, जामें जीव रहे उरझाई।। देवल देव पाषान पूजाई, तीर्थ व्रत जप-तप मन लाई।। यज्ञ होम अरू नेम अचारा, और अनेक फंद में डारा।। जो ज्ञानी जाओ संसारा, जीव न मानै कहा तुम्हारा।। (सतगुरु वचन) ज्ञानी कहे सुनो अन्याई, काटो फंद जीव ले जाई।। जेतिक फंद तुम रचे विचारी, सत्य शबद तै सबै बिंडारी।। जौन जीव हम शब्द दृढावै, फंद तुम्हारा सकल मुकावै।। चैका कर प्रवाना पाई, पुरुष नाम तिहि देऊं चिन्हाई।। ताके निकट काल नहीं आवै, संधि देखी ताकहं सिर नावै।। उपरोक्त विवरण से सिद्ध होता है कि जो अनेक पंथ चले हुए हैं। जिनके पास कबीर साहेब द्वारा बताया हुआ सतभक्ति मार्ग नहीं है, ये सब काल प्रेरित हैं। अतः बुद्धिमान को चाहिए कि सोच-विचार कर भक्ति मार्ग अपनांए क्योंकि मनुष्य जन्म अनमोल है, यह बार-बार नहीं मिलता। कबीर साहेब कहते हैं कि -- कबीर मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार। तरूवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डारि।।

बुधवार, 4 मई 2016

बॉलीवुड ने भारत की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी


बॉलीवुड ने भारत को इतना सब दिया है तभी तो आज देश यहाँ है ...! 1 बलात्कार गैंग रेप करने के तरीके 2 शादी हो रही लड़की को मंडप से भगाना 3 चोरी डकैती करने के तरीके धूम जेसी फ़िल्म 4 भारत के संस्कारो का मजाक बनाना 5 लड़कियो को छोटे अधनंगे कपडे पहने की सिख देना। औरजानकारी देना नारी केवल भोग की वस्तु है 6 दारू सिगरेट चरस गांजा कैसे पिया और लाया जाये 7 गुंडागर्दी कर के हफ्ता वसूली करना 8 भगवान का मज़ाक बनाना और अपमानित करना 9 भारतीयो को अंग्रेज की औलाद बनाना 10 भारतीय संस्कृति को मूर्खता पूर्ण बतानाऔर पश्चातीय संस्कृति को श्रेष्ठ बताना 11 माँ बाप को वृध्धाश्रम छोड़ के आना 12 गाय और भेंसो को मज़ाक बनाना और कुत्तो को उनसे श्रेष्ठबताना और पालना सिखाना 13 रोटी हरी सब्ज़ी खाना गलत बल्कि रेस्टोरेंट में पिज़्ज़ा बर्गरकोल्ड्रिंक और नॉन वेज खाना श्रेष्ठ है 14 चोटी रखना मूर्खता और फनी है मगर बालो के अजीबो गरीब स्टाइल(गजनी) रखना श्रेष्ठ है उसे आप सभ्य लगते है 15 शुद्ध हिन्दी या संस्कृत बोलना हास्य वाली होती है मूर्खो की भाषा पर अंग्रेंजी सर्वश्रेष्ठ भाषा है इसे आप ज्यदा समझदारऔर पढ़े लिखे लगते है 16 भगवान की आरती की जगह अश्लील गाने गाना अच्छा है इतना सब कुछ 30 सालो में बॉलीवुड ने भारत को दिया हे और अब ये सब देख के और सिख के इतने बुद्धिजीवी हो गए है क्या सही है और क्या गलत है इसमें भेद भी नहीं कर पातेऔर बगैर सर पैर की फिल्में इस देश में 500 करोड़ कमा जाती है इस देश का दुर्भाग्य देखिये बॉलीवुड के एक्टर, एक्टर्स और क्रिकेटर के जन्मदिवस पर देश भर की मिडिया और युवा पीढ़ी केक काटते है उन लोगो को भारत के असली शूरवीरो ,वीर वीरांगनाओ,ऋषि मुनियो.स्वामी विवेकानन्द,स्वामी दयानन्द सरस्वती,महाराणा प्रताप ,छत्रपति शिवाजी,झाँसी की रानी ,पृथ्वी राज चौहान,चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह के जन्म दिवस की तारीख भी याद नहीं है भारतीय संस्कृति सभ्यता और संस्कारो का पतन करने में सबसे बड़ा योगदान बॉलीवुड का रहा है।

परिभाषा स्वर्ग की

स्वर्ग की परिभाषाःःःःःःःःः स्वर्ग को एक होटल जैसा जानों। जिस तरह कोई धनी व्यक्ति गर्मियों के मौसम में शिमला या कुल्लु मनाली जैसे शहरो में ठंडे स्थान पर चला जाता है। वहां किसी होटल में ठहरता है। जिसमें कमरे का किराया व खाने का खर्चा अदा करना होता है। महीने में 30-40 हजार रूपए खर्च करके वापिस अपने कर्म क्षेत्र में आना होता है। फिर 11 महीने मजदूरी करो। फिर एक महीना घूम आओ। यदि किसी वर्ष कमाई अच्छी नहीं हुई तो उस एक महीने के सुख को भी तरसो। ठीक इसी प्रकार स्वर्ग जाने-- मनुष्य इस पृथ्वी लोक पर साधना करके कुछ समय स्वर्ग रूपी होटल में चला जाता है। अपनी पुण्य कमाई खर्च करके कुछ समय वहां रहकर वापिस नरक तथा चौरासी लाख प्राणियों के शरीर में कष्ट; पाप कर्मों के आधार पर भोगना पडता है। जब तक तत्वदर्शी संत नहीं मिलेगा तब तक जन्म-मृत्यु, स्वर्ग-नरक व 84 लाख योनियों का कष्ट बना ही रहेगा।क्योंकि केवल पूर्ण परमात्मा का सतनाम व सारनाम ही पापों का नाश करता है। अन्य प्रभुओं की पूजा से पाप नष्ट नहीं होते। सर्व कर्मों का ज्यों का त्यों फल ही मिलता है। साधना चैनल पर प्रतिदिन शाम 07ः40-08ः40 तक सतगुरू रामपाल जी महाराज के अमृत वचनों का आनन्द लें।

कबीर साहेब द्वारा कलयुग में आने का निर्धारित समय


पाँच सहस्र अरु पांचसौ, जब कलियुग बित जाय | महापुरुष फरमान तब, जग तारनको आय || हिन्दू तुर्क आदिक सबै, जेते जीव जहान | सत्य नामकी साख गहि, पावैं पद निर्बान || यथा सरितगण आपही, मिलैं सिंधु में धाय | सत्य सुकृत के मध्य तिमी, सबही पंथ समाय || जबलगि पूरण होए नहीं, ठीक का तिथि वार | कपट चातुरी तबहिलों, स्वसम वेद निरधार || सबहीं नारि नर शुद्ध तब, जब ठीक का दिन आवंत | कपट चातुरी छोड़ीके, शरण कबीर गहंत || एक अनेक हो गयो, पुनि अनेक हो एक | हंस चलै सतलोक सब, सत्यनाम की टेक || घर घर बोध विचार हो, दुर्मति दूर बहाय | कलियुग इक है सोई, बरते सहज सुभाय || कहा उग्र कह छुद्र हो, हर सबकी भवभीर | सो समान समदृष्टि है, समरथ सत्य कबीर |

कबीर साहेब की वाणी में सृष्टि रचना


कबीर साहेब जी की अमृतवाणी में " सृष्टि रचना " धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।। अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रियदेवन की उत्पति भाई।। ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।। माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।। पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछे से माया उपजाई।। धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया(दुर्गा) को रही तब आसा।। तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रम्हा विष्णु शिव नाम धराये।। तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।। तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।। अलख निरंजन सुन्न ठिकाना। ब्रम्हा विष्णु शिव भेद न जाना।। अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।। ब्रम्हा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।। तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव करत हैं सेवा।। तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।। तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।। गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार। कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरें पार ॥ ........... Just Share .......... इन लिंक्स से अनमोल पुस्तक "ज्ञान गंगा" अब विभिन्न भाषाओं में Pdf फाइल डाउनलोड करे। =>ज्ञान गंगा हिन्दी भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_hindi.pdf (4.25mb) =>ज्ञान गंगा इगलिँश भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_english.pdf (3.07 mb) => ज्ञान गंगा पँजाबी भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_punjabi.pdf (4.29 mb) =>ज्ञान गंगा उर्दू भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_urdu.pdf (5.42mb) => ज्ञान गंगा गुजराती भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_gujarati.pdf (9.16mb) => ज्ञान गंगा उड़ीया भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_oriya.pdf (2.75mb) => ज्ञान गंगा असामी भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_assamese.pdf (2.92mb) => ज्ञान गंगा तेँलगू भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_telugu.pdf (2.36mb) => ज्ञान गंगा कनाडा भाषा मे www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_kannada.pdf (5.77mb) => ज्ञान गंगा नेपाली भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_nepali.pdf (4.91mb) => ज्ञान गंगा बँगाली भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_bengali.pdf (5.90mb) =>ज्ञान गंगा मराठी भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_marathi.pdf (1.88mb) ऊपर दिए गए लिंक से बुक डाउनलोड करे ।। शेयर जरूर करे सभी भगत जी