लोगों ने भक्ति को धन कमाने का धन्धा बना लिया है।किसी ने सोचा कर्म ही भक्ति है,किसी ने जटा बढ़ाना ही भक्ति समझ लिया,किसी के लिए नाचना-गाना ही भक्ति हो गयी है।वास्तव में यह भक्ति नहीं है बल्कि भक्ति का कुंठित रुप है।कबीर साहेब जी वाणी में साफ कह रहे हैं:-
भक्ति न होय नाचे गाए,भक्ति न होय घंट बजाए।
भक्ति न होय जटा बढ़ाए,भक्ति न होय भभूत रमाए।
भक्ति होय नहिं मूरत पूजा,पाहन सेवे क्या तोहे सूझा।
भक्ति न होय ताना तूरा,इन से मिले न साहेब पूरा।
ऐसे साहिब मानत नाहीं,ये सब काल रुप के छांही।
नाचना कूदना ताल को पीटना,ये सब रांडिया खेल है भक्ति नाहिं ।।
नाच-गाने(मनोरंजन)के द्वारा काल भगवान इस जीव को खुश रखता है ताकि कोई भी जीव भक्ति करके उसकी सीमा से बाहर न निकल जाए इसलिए वह (ब्रह्म)जीव को उलझा कर रखता है।
"सत् साहेब"
"साहिब ही सत्य है"
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