पाँच सहस्र अरु पांचसौ, जब कलियुग बित जाय | महापुरुष फरमान तब, जग तारनको आय || हिन्दू तुर्क आदिक सबै, जेते जीव जहान | सत्य नामकी साख गहि, पावैं पद निर्बान || यथा सरितगण आपही, मिलैं सिंधु में धाय | सत्य सुकृत के मध्य तिमी, सबही पंथ समाय || जबलगि पूरण होए नहीं, ठीक का तिथि वार | कपट चातुरी तबहिलों, स्वसम वेद निरधार || सबहीं नारि नर शुद्ध तब, जब ठीक का दिन आवंत | कपट चातुरी छोड़ीके, शरण कबीर गहंत || एक अनेक हो गयो, पुनि अनेक हो एक | हंस चलै सतलोक सब, सत्यनाम की टेक || घर घर बोध विचार हो, दुर्मति दूर बहाय | कलियुग इक है सोई, बरते सहज सुभाय || कहा उग्र कह छुद्र हो, हर सबकी भवभीर | सो समान समदृष्टि है, समरथ सत्य कबीर |
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सतनाम व सारनाम बिना सर्व साधना व्यर्थ।।
जवाब देंहटाएंयज्ञ संवाद में स्वयं कृृष्ण भगवान कहते हैं कि युधिष्ठिर ये सर्व भेष धारी व सर्व ऋषि, सिद्ध, देवता, ब्राह्मण आदि सब पाखण्डी लोग हैं। इनके अन्दर भाव भक्ति नहीं है। सिर्फ दिखावा करके दुनियां के भोले-भाले भक्तों को अपनी महिमा जनाए बैठे हैं। कृृप्या पाठक विचार करें कि वह समय द्वापर युग का था उस समय के संत बहुत ही अच्छे साधु थे क्योंकि आज से साढे पांच हजार वर्ष पूर्व आम व्यक्ति के विचार भी नेक होते थे। आज से 30,40 वर्ष पहले आम व्यक्ति के विचार आज की तुलना में बहुत अच्छे होते थे। इसकी तुलना को साढे पांच हजार वर्ष पूर्व का विचार करें तो आज के संतों-साधुओं से उस समय के सन्यासी साधु बहुत ही उच्च थे। फिर भी स्वयं भगवान ने कहा ये सब पशु हैं, शास्त्राविधि अनुसार उपासना करने वाले उपासक नहीं हैं। यही कड़वी सच्चाई गरीबदास जी महाराज ने षटदर्शन घमोड़ बहदा तथा बहदे के अंग में, तक्र वेदी में, सुख सागर बोध में तथा आदि पुराण के अंग में कही है कि जो साधना यह साधक कर रहे हैं वह सत्यनाम व सारनाम बिना बहदा (अनावश्यक) है।