सोमवार, 23 मई 2016

सच्चे संत की अकाल मौत कभी नहीं होती


संत सदगुरु और उनके शिष्य यदि किसी बीमारी या दुर्घटना से उनकी मृत्यु हो तो उनकी साधना ठीक नहीं है यानी शास्त्रविरुद्ध है क्योंकि शास्त्रविधि साधना करने वाले की अकाल मौत कभी नहीं होती है~ गीता अध्याय 16 श्लोक 23' निरंकारी बाबा हरदेव सिंह की एक बात याद आती है पहली तो बात संत हमेशा नाम के पीछे दास लगाते हैं कबीर दास तुलसी दास आदि.. बाबा हरदेव सिंह जी की कनाडा मे मुत्यु के दौरान कबीर परमेश्वर की वाणी याद आती है.. कबीर - कबीरा काहे गर्वयो काल गहे कर केश.. ना जाने कहा मारेगा क्या घर क्या परदेश.. कबीर परमेश्वर कहते है तुम किस चीज का घमंड करते हो काल बाल पकड़ कर ले जायेगा.. ना जाने घर मारेगा या परदेश मे मारेगा.. कबीर - कहा जन्मे कहा पाले पोसे कहा लडाये लाड.. ना जाने इस देही के कहा खिंडेगे हाड... किसी संत का भयानक बीमारी या दुर्घटना से मरने पर मन मे बहुत से सवाल खड़े होते हैं क्या फायदा ऐसी भक्ति साधना का जब गुरू जी ऐसी मौत मरे तो शिष्य कैसे सुरक्षित रह सकते है.. शिष्यों की हिफाजत की जिम्मेदारी कौन लेगा.. ?? निरंकारी मिशन का अगला उत्तराधिकारी कौन होगा?? क्योकि बाबा हरदेव सिंह जी को तो क्षर पुरुष ने इतना मौका ही नही दिया ताकी वे अपने बाद किसी को उत्तराधिकारी घोषित कर सके.??? जयगुरूदेव और निरंकारी मिशन का यहा पर आकर विराम लग जाता है.. मै किसी की आलोचना नही कर रहा हूँ परमात्मा का विधान बता रहा हूँ.. किसी को मेरी बात बुरी लगे तो माफी चाहता हूँ कबीरा खडा बाजार मे सबकी मांगे खैर ना काहु से दोस्ती ना काहु से बैर..

1 टिप्पणी:

  1. षटदर्शन घमोड़ बहदा।।
    (सत ग्रन्थ साहिब पृृृष्ठ नं. 534)

    षट दर्शन षट भेष कहावैं, बहुविधि धूंधू धार मचावैं।
    तीरथ ब्रत करैं तरबीता, वेद पुराण पढ़त हैं गीता।।
    चार संप्रदा बावन द्वारे, जिन्हौं नहीं निज नाम बिचारे।
    माला घालि हूये हैं मुकता, षट दल ऊवा बाई बकता।।
    बैरागी बैराग न जानैं, बिन सतगुरु नहीं चोट निशानैं।
    बारह बाट बिटंब बिलौरी, षट दर्शन में भक्ति ठगौरी।।
    सन्यासी दश नाम कहावैं, शिव शिव करैं न शंशय जावैं।
    निर्बानी निहकछ निसारा, भूलि गये हैं ब्रह्म द्वारा।।
    सुनि सन्यासी कुल कर्म नाशी, भगवैं प्यौंदी भूले द्यौंहदी।
    छल छिद्र की भक्ति न कीजै, आगै जुवाब कहों क्या दीजै।।
    भ्रम कर्म भैंरौं कूं पूजैं, सत्य शब्द साहिब नहीं सूझैं।
    माला मुकटी ककड हुकटी, बांना गौड़ी भांग भसौड़ी।।
    जती जलाली पद बिन खाली, नाम न रता घोरी घता।
    मढी बसंता ओढै कंथा, वनफल खावैं नगर न जावैं।।
    हाथौं करुवा काँधै फरुवा, खौलि बनावैं सिद्ध कहावैं।
    भूले जोगी रिद्धि के रोगी, कान चिरावैं भस्म रमावैं।।
    तपा अकाशी बारह मासी, मौंनी पीठी पंच अंगीठी।
    कन्द कपाली अंदर खाली, बाहर सिद्धा ये हैं गद्धा।।
    यौह बी बहदा है - - - - - - -।।

    ।। अथ बहदे का ग्रन्थ।।
    (सतग्रन्थ साहिब पृृृष्ठ नं. 536)
    खाखी और निर्बानी नागा, सिद्ध जमात चलावैं है। रणसींगे तुरही तुतकारा, गागड भांग घुटावैं हैं।।
    यौह बी बहदा है - - - - - - -।।
    काशी गया प्रयाग महोदधि, जगन्नाथ कूं जावैं हैं।
    लौहा गर और पुष्कर परसे, द्वारा दाग दगावैं हैं।।
    यौह बी बहदा है - - - - - - -।।
    तीर तुपक तरवार कटारी, जम धड जोर बंधावैं हैं।
    हरि पैड़ी हरि हेत न जान्या, वहां जाय तेग चलावैं हैं।।
    यौह बी बहदा है - - - - - - -।।
    काटैं शीश नहीं दिल करुणा, जग में साध कहावैं हैं।
    जो नर जाके दर्शन जाहीं, तिस कंू भी नरक पठावैं हैं।।
    यौह बी बहदा है - - - - - - -।।

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