गुरुवार, 5 मई 2016

ओम तत् सत् का वर्णन


आदरणीय भगत आत्माओं मैं आपजी के समक्ष अपने सदगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी की असीम प्रेरणा से प्राप्त ॐ तत सत मन्त्र का विस्तृत अर्थ नामक इस लेख को पोस्ट कर रहा हूँ ... आपजी इसको पढ़े तथा वास्तविक आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करे || विशेष:- गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में वर्णित तत्वदर्शी संत ही पूर्ण परमात्मा के तत्वज्ञान को सही बताता है, उन्हीं से पूछो, मैं (गीता बोलने वाला प्रभु) नहीं जानता। इसी का प्रमाण गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तक भी है। इसीलिए यहाँ गीता अध्याय 17 श्लोक 23 से 28 तक का भाव समझें। अध्याय 17 के श्लोक 23 से 28 तक में कहा है कि पूर्ण परमात्मा के पाने के ऊँ, तत्, सत् यह तीन नाम हैं। इस तीन नाम के जाप का प्रारम्भ स्वांस द्वारा ओं (ॐ) नाम से किया जाता है। तत्वज्ञान के अभाव से स्वयं निष्कर्ष निकाल कर शास्त्रविधि सहित साधना करने वाले ब्रह्म तक की साधना में प्रयोग मन्त्रों के साथ ‘ऊँ‘ मन्त्र लगाते हैं। जैसे ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः‘, ‘ऊँ नम: शिवायः‘ आदि-आदि। यह जाप (काल-ब्रह्म तक व उनके आश्रित तीनों ब्रह्मा जी, विष्णु जी, शंकर जी से लाभ लेने के लिए) स्वर्ग प्राप्ति तक का है। फिर भी शास्त्र विधि रहित होने से उपरोक्त मंत्र व्यर्थ हैं बेसक इन मंत्रों से कुछ लाभ भी प्राप्त हो। तत् नाम का तात्पर्य है कि (अक्षर ब्रह्म) परब्रह्म की साधना का सांकेतिक मन्त्र। यह तत् मन्त्र है। वह पूर्ण गुरु से लेकर जपा जाता है। स्वयं या अनाधिकारी से प्राप्त करके जाप करना भी व्यर्थ है। यह तत (सतनाम ) मन्त्र इष्ट की प्राप्ति के लिए विशेष मन्त्र है तथा सत् जाप मन्त्र पूर्ण परमात्मा का है जो सारनाम के साथ जोड़ा जाता है। उससे पूर्ण मुक्ति होती है। सतशब्द अविनाशी का प्रतीक है। प्रत्येक इष्ट की प्राप्ति के लिए भी "तत" शब्द है तथा सतशब्द अविनाशी का प्रतीक है। वह सारनाम है। पुण्य आत्माओं ओम् तत् सत् का विस्तृत वर्णन केवल पूर्ण सद्गुरु ही कर सकता है और🎤 पूरे विश्व में वह सतगुरु केवल संत रामपाल जी महाराज हैं जिनके पास पूर्ण मोक्ष का ज्ञान है। देखिए साधना चैनल शाम 7:30pm to 8:30 pm सत साहेब।

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