रविवार, 12 जून 2016

हिन्दू और मुसलमानों को चैलेंज इन सवालो के जवाब दे?

सच VS झूठ

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1. राम तो त्रेता युग मे आये उससे पहले सतयुग मे कौन सा राम था...???

2. हिन्दुओ का पवित्र ग्रंथ गीता है किसी एक श्लोक का प्रमाण देकर बताये जिसमे ब्रह्मा विष्णु शिव दुर्गा की पूजा करने को कहा हो???

3. गीता मे किसी एक श्लोक का प्रमाण देकर बताये जिसमे तीर्थो धामो पर जाने को कहा हो स्नान करने को कहा हो???
होई करवाचौथ नवरात्रे आदि पूजा करने को कहा हो??? मंदिरो में पत्थर की पूजा करने को कहा हो?????

4. इस्लाम 1400 सालो से धरती पर आया है 1400 साल पहले जब इस्लाम नही था तब कौन सी कुरान पढते थे तब कौन तुम्हारा अल्लाह था?? कौन तुम्हारा पैग्मबर था..??क्या दुनिया को बने 1400 साल ही हुए है???
5. बाबा आदम को पैदा करने वाला अल्लाह कौन था ??

6. हजरत मुहम्मद जी सऊदी अरब के रहने वाले थे उन्होने इस्लाम को दुनिया मे फैलाया.. इसका मतलब है फिर तो सऊदी अरब को छोड़कर सभी देशो के मुसलमानो के पूर्वज हिंदु थे बाद मे मुसलमान बने???

4. अगर लिंग और मुछ कटवाने से कोई मुसलमान बन जाता तो अल्लाह लिंग और मुछ काटकर बच्चे को गर्भ से बाहर क्यो नही भेजता. ????

5.
जब बच्चा पैदा होता है तो वो ब्राह्मण होता है या शूद्र होता है अगर ब्राह्मण होता है तो नहा धोकर तिलक लगाकर गर्भ से बाहर क्यो नही आता...

गुरुवार, 26 मई 2016

पूजा भक्ति क्या और कैसे होती है


प्रश्न- कुछ लोग बोलते है कबीर साहेब ने मूर्ति पूजा का विरोध किया है.. रामपाल जी महाराज भी ऐसा ही कर रहे है?? रामपाल जी हिन्दू धर्म की पूजा को गलत बता रहे है???? उत्तर - देखिए कबीर साहेब ने ये कहा है फोटो मूर्ति का काम इतना होता है हमे भगवान की याद आती हैा लेकिन मूर्ति के सामने घंटी बजाना या मूर्ति को भोग लगाना पैसे चढाना रोज नहलाना कपडे पहराना मतलब मूर्ति पर आश्रित होना वो गलत है.. पूजा क्या होती है?? १.ध्यान -- जैसे हम मूर्ति या फोटो को देखते है भगवान की याद आती है .. भगवान को जितनी बार याद करते है उससेे ध्यान यज्ञ का फल मिलता है.. चाहे कही बैठ कर कर लो.. २..ज्ञान.... सुबह शाम आरती करना धार्मिक बुक गीता या कबीर नानक वाणी को पढना ये होती है ज्ञान यज्ञ.. इससे ज्ञान यज्ञ का फल मिलता है.. ३.हवन.... जैसे हम ज्योति लगाते है देशी घी की उससे हमे हवन यज्ञ का फल मिलता है... ४. धर्म... जैसे हम भंडारा आदि भूखे को भोजन कराते है उससे धर्म यज्ञ का फल मिलता है.. ५.. प्रणाम.. जो हम लम्बे लेट कर भगवान को प्रणाम करते है प्रणाम यज्ञ का फल मिलता है.. ये पांच यज्ञ करनी होती है साथ मे जो गुरू नाम (मंत्र )भी जाप करना होता है.. नाम(मंत्र) क्या होता है??? जिस इष्टदेव की आप पूजा करते हो उसका एक गुप्त आदि नाम होता है उसको मंत्र(नाम) बोलते है.. उदाहरण - जैसे नाग बिन के वश होता है बिन बजते ही सावधान हो जाता है.. ऐसे ही ये देवता भगवान अपने अपने मंत्र के वश होते है ... नारद ने ध्रुव को ऐसा मंत्र दिया था ध्रुव ने ऐसी कसक के साथ जाप किया था 6 महीने मे बिषणु को बुला दिया था.. ये 5 यज्ञ करना और साथ मे गुरूमंत्र का जाप करना ही पूजा करलाती है.. उदाहरण के लिए - आपका शरीर समझो खेत है .. पूजा मे ये गुरूमंत्र समझो बीज है ये पांच यज्ञ समझो खाद पानी निराई गुडाई है... अगर आप गुरूमंत्र जापकर रहे हो पांचो यज्ञ नही कर रहे हो तो आप ऐसे हो -- जैसे आप खेत मे बीज डाल रहे है खाद पानी नही दोगे तो बीज नही होगा.. आपका बीज डालना व्यर्थ है... और अगर आपने गुरूमंत्र नही लिया है केवल पांच यज्ञ ही कर रहे हो तो ऐसा है... जैसे खेत मे खाद पानी डाल रहे हो बीज आपने डाला ही नही तो खाद पानी डालना व्यर्थ है.. उससे घास फूस झाडिया ही उगेगी...फसल नही जैसे खेत मे बीज और खाद पानी डालना जरूरी है, वैसे ही भगवान की पूजा भगती मे गुरूमंत्र(बीज) और पांचो यज्ञ (खाद पानी) करने जरूरी है... रामपाल जी महाराज कबीर साहेब ने ऐसे पूजा करने को कहा है.. ये गीता वेद शास्त्रो मे ऐसे ही लिखी है...लेकिन हिन्दू धर्म के लोग इसके विपरीत कर रहे है ना तो वो गुरू बनाते है राम कृष्ण मीरा घ्रुव पहलाद सबने गुरू बनाया क्या वो पागल थे.. जिस इष्टदेव की पूजा करते है उनका मंत्र इनके पास नही है.. मंदिर की घंटी बजा कर फुल चढा कर पाच रूपये का प्रसाद बाटकर पूजा समझते है.. ओस के चाटने से प्यास नही बुझती.... रामपाल जी महाराज हमे सभी देवी देवताओ का आदर सत्कार करने को बोलते है... हम हिन्दू धर्म, वेद गीता , देवी देवताओ सबको मानते है सबका सत्कार करते हैा जैसे पतिवर्ता औरत पूजा अपने पति की करती है बाकी देवर जेठ जेठानी देवरानी सास ससुर सबका आदर करती है.. ऐसे ही हम पूजा कबीर साहेब पूर्णब्रह्म की करते है और सभी देवी देवता ब्रह्मा विषणु शिव दुर्गा ब्रह्म परब्रह्म सबका आदर सत्कार करते है.... ये संसार एक पेड की तरह है ये संसार के लोग संसार रूपी पेड के पत्ते है ३३ करोड देवी देवता छोटी छोटी टहनिया है..आगे ब्रह्मा बिषणु शिव तीन मोटी शाखा है आगे ब्रह्म( काल) निरंजन डार है आगे परब्रह्म तना है अागे पूर्णब्रह्म (कविर्देव) कबीर साहेब संसार रूपी पेड की जड है.... संत रामपाल जी महाराज ये नही कहते कि इन टहनी पत्तो डार शाखा को काट दो मतलब इन देवी देवताओ को छोड दो.. संत रामपाल जी ये कहते है आप केवल जड मे पानी डालो मतलब पूर्णब्रह्म कबीर साहेब की पूजा करो..गीता अ०-15 श्लोक 4 मे गीता ज्ञान दाता कह रहा है मै भी उसी आदि नारायण परमेश्वर की शरण मे हुँ. उसी की पूजा करनी चाहिये.. . जड पूरे पेड का center है जड के सामने सारे टहनी पत्ते शाखा डार तना सब भिखारी है.. जड मे पानी डालने से पूरे पेड को आहार मिलेगा पूरे पेड का विकास होगा.. एक पूर्णब्रह्म के सामने सब भिखारी है एक पूर्णब्रह्म की पूजा मे सब की पूजा हो जाती है जैसे जड मे पानी डालने से पूरे पेड का विकास हो जाता है... ये साधना शास्त्रानुकूल साधना है.. कबीर - एक साधे सब सधे, सब साधे सब जावे... माली सिंचे मूल को फले फूले अंगाहे... लेकिन दुनिया वाले क्या कर रहे है देवी देवताओ को पूजते है ये तो ऐसे है टहनी और शाखाओ मे पानी देना... जड मूल(पूर्णब्रह्म) का लोगो को मालूम नही है.. जड को छोड टहनियो शाखाओ मे पानी दोगे तो पेड सूखेगा ही... ये शास्त्रविरूद्ध साधना है.. ये तो ओस चाटना है ओस चाटने से प्यास नही बुझती...

सोमवार, 23 मई 2016

सच्चे संत की अकाल मौत कभी नहीं होती


संत सदगुरु और उनके शिष्य यदि किसी बीमारी या दुर्घटना से उनकी मृत्यु हो तो उनकी साधना ठीक नहीं है यानी शास्त्रविरुद्ध है क्योंकि शास्त्रविधि साधना करने वाले की अकाल मौत कभी नहीं होती है~ गीता अध्याय 16 श्लोक 23' निरंकारी बाबा हरदेव सिंह की एक बात याद आती है पहली तो बात संत हमेशा नाम के पीछे दास लगाते हैं कबीर दास तुलसी दास आदि.. बाबा हरदेव सिंह जी की कनाडा मे मुत्यु के दौरान कबीर परमेश्वर की वाणी याद आती है.. कबीर - कबीरा काहे गर्वयो काल गहे कर केश.. ना जाने कहा मारेगा क्या घर क्या परदेश.. कबीर परमेश्वर कहते है तुम किस चीज का घमंड करते हो काल बाल पकड़ कर ले जायेगा.. ना जाने घर मारेगा या परदेश मे मारेगा.. कबीर - कहा जन्मे कहा पाले पोसे कहा लडाये लाड.. ना जाने इस देही के कहा खिंडेगे हाड... किसी संत का भयानक बीमारी या दुर्घटना से मरने पर मन मे बहुत से सवाल खड़े होते हैं क्या फायदा ऐसी भक्ति साधना का जब गुरू जी ऐसी मौत मरे तो शिष्य कैसे सुरक्षित रह सकते है.. शिष्यों की हिफाजत की जिम्मेदारी कौन लेगा.. ?? निरंकारी मिशन का अगला उत्तराधिकारी कौन होगा?? क्योकि बाबा हरदेव सिंह जी को तो क्षर पुरुष ने इतना मौका ही नही दिया ताकी वे अपने बाद किसी को उत्तराधिकारी घोषित कर सके.??? जयगुरूदेव और निरंकारी मिशन का यहा पर आकर विराम लग जाता है.. मै किसी की आलोचना नही कर रहा हूँ परमात्मा का विधान बता रहा हूँ.. किसी को मेरी बात बुरी लगे तो माफी चाहता हूँ कबीरा खडा बाजार मे सबकी मांगे खैर ना काहु से दोस्ती ना काहु से बैर..

शनिवार, 21 मई 2016

आधे से ज्यादा जज आज भी भ्रष्ट हैं


क्या आप जानतें है कि हम एक secular देश मे रहते है । हर किसी को उसका जन्म और भारत का कानून यह हक देता है कि वो अपने धर्म व अपनी जाति को जब चाहे तब बदल सकता है । यहाँ तक कि प्रधानमत्रीं भी उसे मना नही कर सकता । हमारी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का ना राष्ट्रपति हक रखते है और ना ही यह छोटे मोटे मुख्यमंत्री । हमारी देश कि कुल आबादी 125 करोड़ है लगभग और सभी किसी ना किसी धर्म से तालुक रखते है । भारत मे दो तरह कि ताकत है एक तो अच्छे लोग और एक तरफ यह भ्रष्ट लोग जो देश का खुन चूस रहे है । देश के आधे से ज्यादा जज भी अब भ्रष्टता पर आ चुके है । मोदी जी से गुज़ारिष है जो हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री हैं । मोदी साहब आप कि सोच ने मुझे बहुत प्रभावित किया था । मै भी आपका फेन हुँ लेकिन एक दुख है मन का कि बरवाला की घटना के बाद लाखों विज्ञापन आपको सौंपे गए पर आप तक एक भी पहुंची । हम जन्तर मतंर पर 240 दिनों से बेठे हैं क्या आपको दिखाई नही देता ।। हमें c.b.i जांच कि मांग करते 16 साल हो चुके है अभी भी आॅख खोल लो जी । हमारे आपने 6 भाई बहनो को मरवा दिया आपको रहम नही आया । लगातार 16 सालो से हमारे साथ अन्याय हो रहा है 2 बार हमारे गुरूजी संत रामपाल जी जेल जा चुके हैं । 900 भक्तो को भी जेल मे डाल दिया क्या भक्त व संत कभी देशद्रोही होते है । क्या हम भारतवासी नही है । हम जहाँ भी गए हमे अन्याय ही मिला अदलातो से लेकर थानो तक सिर्फ नाकामी हाथ आई । अगर जल्द ही हमे न्याय नही मिला व केसों कि सी बी आई c.b.i जांच नही करवाई गईं तो हम सब 80 लाख संत रामपाल जी के अनुयायी जन्तर मन्तर पर अात्मदाह (suicide) कर लेंगे । इतना अन्याय अब हमें सहन नही होगा । न्याय दो या मौत हमे न्याय नही दिला सकते तो हमे मौत दे दो हम अपने गुरूजी के बिना नही जी सकते । अब जिन्दगी मे न्याय कि हमे कोई आशा नही है । आज हमारे साथ ये हो रहा है कल आपके साथ भी हो सकता है । भाई बहनो कृपया हमारी मदद करे ।। आप इस पोस्ट को share करे जी ताकि यह बात मोदी जी तक पहुंच जाए । Share it once आपके हाथों में अब 80 लाख लोगों की जान है ।

शनिवार, 14 मई 2016

नाचना गाना भक्ति के विरुद्ध


लोगों ने भक्ति को धन कमाने का धन्धा बना लिया है।किसी ने सोचा कर्म ही भक्ति है,किसी ने जटा बढ़ाना ही भक्ति समझ लिया,किसी के लिए नाचना-गाना ही भक्ति हो गयी है।वास्तव में यह भक्ति नहीं है बल्कि भक्ति का कुंठित रुप है।कबीर साहेब जी वाणी में साफ कह रहे हैं:- भक्ति न होय नाचे गाए,भक्ति न होय घंट बजाए। भक्ति न होय जटा बढ़ाए,भक्ति न होय भभूत रमाए। भक्ति होय नहिं मूरत पूजा,पाहन सेवे क्या तोहे सूझा। भक्ति न होय ताना तूरा,इन से मिले न साहेब पूरा। ऐसे साहिब मानत नाहीं,ये सब काल रुप के छांही। नाचना कूदना ताल को पीटना,ये सब रांडिया खेल है भक्ति नाहिं ।। नाच-गाने(मनोरंजन)के द्वारा काल भगवान इस जीव को खुश रखता है ताकि कोई भी जीव भक्ति करके उसकी सीमा से बाहर न निकल जाए इसलिए वह (ब्रह्म)जीव को उलझा कर रखता है। "सत् साहेब" "साहिब ही सत्य है"

मथुरा वाले बाबा जयगुरुदेव की भविष्यवाणी


खुशखबरी वह संत आ चुका है जिसकी भविष्यवाणी मथुरा वाले बाबा जयगुरूदेव (तुलसीदास) द्वारा कि गई है सन् 7 सितम्बर 1971 आखिर कौन है वह संत जिसके लिए जयगुरूदेव के हजारो समर्थको ने खाना पीना त्याग दिया और खोज मे लगे हुए है रिपोर्टर सन् 1971 मथुरा के संत जयगुरूदेव जी ने सन् 1971 मे एक भविष्यवाणी की थी और वह शाकाहारी पत्रिका मे छपा था की "वह अवतार जिसकी लोग प्रतिक्षा कर रहै है वह 20 वर्ष का हो चुका है यदि उसका पता बता दू तो लोग उसके पीछे पड जाएंगे अभी ऊपर से आदेश बताने को नही हो रहा मै समय का इंतजार कर रहा हू समय आते सबको सब कुछ मालूम हो जाएगा " इस बात को सुनकर उनके अनुयायियो ने पूछा कि वह अभी कहा है व बार बार आग्रह करने पर बताया की "महापुरूष का जन्म भारतवर्ष के छोटे से गाव मे हो चुका है और वह व्यक्ति मानव इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बनेगा उसे जनता का इतना बडा समर्थन प्राप्त होगा आज तक किसी को नही मिला वह महापुरूष नए सिरे से विधान को बनाएगा और विशव के सभी देशो को लागू होगा उसकी एक भाषा होगी उसका एक झंडा होगा " लेकिन जय गुरुदेव पन्थ के हजारो भगत ले चुके हैं अन्न त्याग का दृढ़ संकल्प जय गुरु देव पंथ के मुखी बाबा तुलसी दास साहेब ने जब से इस बात की भविष्यवाणी की कि वह सन्त जिसकी अध्यक्षता मे सतयुग जैसा माहौल कलयुग मे आयेगा उसका जन्म हो चुका है। तब से जयगुरुदेव पंथ के अधिकांश अनुयायी उस सन्त की खोज मे रात दिन लगे रहते है। आपको यह जानकर आश्चर्य भले ही हो पर यह सत्य है। जय गुरुदेव पंथ के हजारों भगतो ने उस सन्त की खोज के पूरे होने तक अन्न का त्याग कर रखा है। बाबा जय गुरु देव के समर्थको द्वारा बार बार यह प्रश्न किये जाने पर कि बाबा आप कहते रहते है सतयुग आयेगा कलयुग जायेगा पर अभी तक सतयुग जैसा माहौल उत्पन्न नही हुआ है अपितु घोर कलयुग आता जा रहा है तब स॔गत के बार बार आग्रह करने पर बाबा जय गुरुदेव ने 7 सितम्बर 1971 को इस बहुचर्चित प्रश्न पर पटाक्षेप करते हुये उदघोषित किया कि उनकी अगुवाई मे सतयुग जैसा माहौल नही आयेगा अपितु वह सन्त कोई और है बाबा जयगुरुदेव के मुख से ऐसा वक्तव्य सुनकर बाबा जयगुरुदेव के सभी अनुयायियों को विस्मय भरा घोर आश्चर्य हुआ ।तब उन सभी अनुयायियों ने उन सन्त के बारे मे और ज्यादा जानकारी जाननी चाही तब जयगुरुदेव ने 7 सितम्बर 1971 को बताया कि आज वह सन्त पूरे वीस वर्ष का हो चुका है। जय गुरुदेव के उक्त वचन के अनुसार उस सन्त की जन्म तिथि 8 सितम्बर 1951 बनती है।क्योंकि 7 सितम्बर 1971 को उन सन्त जी ने पूरे 20 वर्ष पूर्ण किये थे। जयगुरुदेव के जीवित रहते ही इस बिषय पर मन्थन शुरु हो गया था कि वह सन्त कौन है जिनकी जन्मतिथि 8 सितम्बर 1951 है।इसी क्रम मे बाबा जयगुरुदेव के कुछ 8 सितम्बर 1951 को जन्मे व कुछ 7 सितम्बर 1951 को जन्मे 11 अनुयायियों ने वह सन्त होने का दावा ठोंका जिसे बाबा जयगुरुदेव ने रिजेक्ट कर दिया था उसके बाद अनेको भगत यह दावा ठोंकते रहे पर बाबा जयगुरुदेव ने सभी दावे निरस्त करते हुये यहाँ तक कह दिया था कि उनके शिष्यों मे कोई भी वह सन्त नही है।इसके बाद सन 1981 की गुरुपूर्णिमा पर भी बाबा जयगुरुदेव ने उन सन्त का पुनः जिक्र किया।और ठोंककर कर कहा कि वह सन्त 30 वर्ष का होने जा रहा है इसके वाबजूद भी जयगुरुदेव पंथ के कई अनुयायियों ने अपने मत से अनेक सन्त मत चला रखे है ज्ञात हो कि बाबा जयगुरुदेव ने मृत्यु पर्यन्त किसी को भी अपना उत्तराधिकारी नही बनाया था।फिर भी बाबा जयगुरुदेव के अनेकानेक अनुयायी साम दाम दन्ड भेद के सिद्धान्त की आड़ लेकर गुरुपद पर विराज मान हो गये है। पर इसके ठीक विपरीत जयगुरुदेव पंथ के हजारों की संख्या मे अनुयायियों ने खुद को गुरुपद पर विराजित करने के स्थान पर उन परम सन्त की खोज मे अन्न का त्याग कर रखा है जिन सन्त की जन्म तिथि 8 सितम्बर 1951 है। अब इनको कौन समझाये कि वह सन्त और कोई नही बल्कि सन्त रामपाल जी महाराज ही है। जानिए वह संत कौन है 7:40 से 8:40 रात रोजाना साधना चैनल पर और हरियाणा न्यूज चैनल पर 6:00 से 7:00 तक

God is not formless.


निरंकारी मिशन वाले परमात्मा को निराकार मानते है जब की वेदों मे प्रमाण है परमात्मा साकार है और राजा के समान दर्शनीय है ! प्रमाण के लिये देखे ऋंगवेद मंडल न. 9 सुक्त 82 मंत्र 1,2 और खुद निर्णय करे ! परमात्मा साकार है व सहशरीर है यजुर्वेद अध्याय 5, मंत्र 1, 6, 8, यजुर्वेद अध्याय 1, मंत्र 15, यजुर्वेद अध्याय 7 मंत्र 39, ऋग्वेद मण्डल 1, सूक्त 31, मंत्र 17, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 86, मंत्र 26, 27, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 82, मंत्र 1 - 3 (प्रभु रजा के समान दर्शनिये है)

शुक्रवार, 13 मई 2016

निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी का निधन

मॉन्ट्रियल (कनाडा). निरंकारी मिशन के बाबा हरदेव सिंह का कार एक्सीडेंट में निधन हो गया। कैनेडा में बाबा हरदेव सिंह निरंकारी का निधन, गाड़ी का टायर फटने से हुअा हादसा बाबा हरदेव सिंह निरंकारी जी का कैनेडा में निधन हो गया है। सड़क हादसे में उनका निधन हुअा है। कैनेडा के मोंट्रियल शहर में गाड़ी का टायर फटने से यह घटना हुई। दुनिया के सताइस देशों में निरंकारी समाज के लोग है। घटना के बाद निरंकारी समाज में शोक की लहर फैल गई है। हाल ही में बाबा हरदेव सिंह ही कैनेडा गए थे। हादसे के वक्त उनके दो दामाद उनके साथ थे जिनमें एक की हालत गंभीर बनी हुई है। निरंकारी समाज की स्थान १९२९ में हुई थी दुनिया भर में उनकी सौ शाखाएं है। बाबा हरदेव सिंह जी १९८० में निरंकारी समाज के प्रमुख बने थे। दामाद संदीप खिंदा अौप अवनीत उनके साथ थी जिनमें अवनीत की हालत गंभीर बनी हुई है वे निरंकारी संप्रदाय के चीफ थे। Photo by : punjab keshri

गुरुवार, 12 मई 2016

नव नाथ चौरासी सिद्ध कैसे पैदा हुए


नौ नाथ व चौरासी सिद्ध कैसे उत्पन्न हुए। . आपने अमरनाथ की कथा तो सुनी ही होगी जहां शिव शंकर ने पार्वती जी को मंत्र दिया था। उस समय शिवजी द्वारा बताया वह मंत्र एक तोते ने भी सुन लिया था। जब शिवजी को पता लगा तो उस तोते को मारने के लिए उसके पीछे दौडे। तब वह तोते वाली आत्मा अपना तोते वाला शरीर छोडकर व्यास जी की पत्नी के पेट में चला गया। समय आने पर शरीर धारण किया। जब वह 12 वर्ष तक भी गर्भ से बाहर नहीं आया तब ब्रह्मा, विष्णु महेश ने उससे कहा कि अगर ये ही रीत चली पडी तो माताए बहुत दुखी हो जाएगी, सुखदेव जी बाहर आ जाइए। तब सुखदेव जी ने कहा कि आपने अपनी त्रिगुणमयी माया का जाल फैलाया हुआ है। अभी तो मुझे अपने सभी पुराने जन्म कर्म याद है, बाहर आते ही मैं सब भूल जाऊंगा। मैं एक शर्त पर बाहर आऊंगा, अगर आप कुछ समय के लिए त्रिगुण प्रभाव को रोक दें तो ही मैं आऊंगा। तब तीनो देवो ने कहा कि हम केवल इतनी देर ही इस प्रभाव को रोक सकते हैं जितनी देर तक राई(सरसों का बीज) भैंस के सींग पर ठहर सकता है अर्थात एक सेकेंड से भी बहुत कम समय तक। सुखदेव जी ने कहा आप इतने ही समय तक रोक दीजै। तीनों देवों ने जब माया का प्रभाव रोका उस समय 94 बच्चे पैदा हुए। उन सबको अपने पुराने जन्म याद थे और उन्हें ये बात याद रह गयी कि भक्ति करने के लिए ही मनुष्य जीवन मिलता है। उन 94 बच्चों में से 84 तो सिद्ध हो गए व 9 नाथ हुए, और एक सुखदेव ऋषि हुए। सत साहेब जी बन्दीछोड सतगुरू रामपाल जी महाराज जी की जय।

मंगलवार, 10 मई 2016

महान क्रांति का शंखनाद

सत साहेब ,,,, ये उत्पात नहीं महानक्रान्ति का शंखनाद हैं जिसमे एक सच्चे संत और उनके अनुयायियों ने ठान लिया है कि चाहे जो भी हो वो इन भ्रष्ट नेताओं , मीडिया और सरकार और पाखंड के खिलाफ आवाज उठाते रहेंगे ,,,,वेशक कुछ छोटी सोच रखने वाले , अपने आप तक मतलब रखने वाले और मुर्ख किस्म के पढ़े लिखे लोग जो अपने विवेक खो चुके हैं इसे उत्पात , दंगा या मारपीट का नाम दें पर कोई भी घटना क्यूँ होती है कैसी होती है उसका परिणाम भविष्य में तय होता है ना कि लोगों की अटकलों से ,,,, वैसे भी समाज के लोगों को एक बात सोचनी चाहिए कि आखिर क्यूँ एक संत और उसके शिष्य बार बार एक ही मांग कर रहे हैं कि हमारे केस की सीबीआई से जांच हो और हमें न्याय मिलें , पर जहां एक तरफ राक्षस किस्म के लोग हैं वोही पर भगत भी हैं और विवेक शील जनता को यह देखना चाहिए कि जहां आजकल के संत राजनीति को अपना मोहरा बनाकर चलते हैं और कहीं न कहीं राजनेताओं से अपना तालुक रखते हैं क्या वो एक संत विचार धरा के हैं , जब उनसे पूछा जाता हैं कि संतो का राजनीति से क्या तालुक तो कहते हैं कि संतो के दरवाजे सबके लिए खुले होते हैं , संतो के दरवाजे सिर्फ भगत समाज के लिए खुलते हैं ना कि चोर लुटेरो के लिए और एक संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी और खुद संत रामपाल जी महाराज ही हैं जिन्होंने पाखंड और बढ़ते अत्याचार के खिलाफ आवाज उठायी हैं और ये आवाज कहां तक बुलंद होगी आने वाले समय में पता चल जाएगा और समाज एक दिन उनका लोहा मानेगा ..... आजकल कोई अपने रोजगार के लिए लड़ रहा हैं , कोई जमीन के लिए और संत रामपाल जी महाराज और उनके चेले ही हैं जो धर्म कि स्थापना और सत मार्ग के लिए संघर्ष शील हैं और अपने आखिरी दम तक रहेगा वैसे भी परमात्मा कबीर कि वाणी हैं : धर्म तो धसके नहीं धसके तीनो लोक सत साहेब अवश्य देखे साधना चैनल रात 7.45 से 8.45 तक और हरियाणा न्यूज़ सुबह 6 बजे से 7 बजे तक

शुक्रवार, 6 मई 2016

आरोपी कभी सीबीआई जांच कराने की मांग नहीं करता


हिम्मत है तो मेरे गुरु पर लगे आरोप सिद्ध करके दिखाओ हिम्मत है तो मेरे परमेश्वर द्वारा दिए ज्ञान को गलत साबित करके दिखाओ अरे मूर्खों :- समझो दिमाग का प्रयोग करो पूरे ब्रह्माण्ड के धर्म गुरुओं को ललकारने वाला सभी धर्मों के गर्न्थो को खोलकर संगत को शिक्षित करने वाला प्रमाण सहित धर्मगुरुओं को गलत साबित करने वाला छाती ठोक कर अपने आप को परमेश्वर का दूत्त कहने वाले को कोई जेल में कैसे बन्द कर सकता है ? या तो कोई कारण है जिसे ना तुम समझ पाये और ना ज्योति निरंजन जब जगत गुरु जेल से बाहर आएंगे तुम भी पछताओगे और तुम्हारा आका भी रोहतक वाली जिस जेल में सन्त रहा वहां से जेल को ही ट्रांसफर करना पड़ा आज वहां पार्क है । फिर हिसार वाली जेल भी कहाँ रह पावेगी ? खट्टर फटर की तो विसात ही क्या ? हमारी लड़ाई ज्योति निरंजन भगवान से हैं मेरी लड़ाई अज्ञान से है और आखिर जीत मेरी है

गुरुवार, 5 मई 2016

इच्छा दासी काल की


🙏🏻🙏🏻कबीर बाणी🙏🏻🙏🏻 इच्छा दासी यम की खडी रहे दरबार.. पाप पूण्य दो बीर , ये खसमी नार... अर्थ- ये इच्छा काल की दासी हैा. इच्छा आत्मा को काल के दरबार मे खडा कर देती हैा पाप और पूण्य ये दो भाई है.. इच्छा इन दोनो की पत्नी है.. इच्छा ही पाप और पूण्य करवाती हैा... पाप - को कबीर परमात्मा का सतनाम मंत्र समाप्त करेगा.. इच्छा- को आप समाप्त करो मालिक के तत्वज्ञान रूपी शास्त्र से ... सतगुरू मिले तो इच्छा मिटे, पद मिले पद समाना.. चल हंसा उस लोक पठाऊ , जहा आदि अमर अस्थाना.. पूण्य- को काल के कर्ज के रूप मे दे देगे... तब सतलोक जा सकते हैा... कबीर - जिवित मुक्ता सो कहो आशा तृष्णा खंड.. मन के जीते जीत है क्यो भरमे ब्रह्मांड... अर्थ- जिसकी आशा तृष्णा समाप्त हो गई है मतलब इच्छा समाप्त हो गई है उसको जिवित मरना कहते है वह जिवित संसार मे रहकर भी संसार से मुक्त हो जाता हैा. उसको ही मन जीतना कहते हैा मन को जीतने के बाद ही आप सतलोक जा सकते हैा.. जो योगी तप करते दिखाई देते है लेकिन इनका मन ब्रहाांड मे घूम रहा होता हैा तप से राज मिलता है मुक्ती नही.. भवार्थ- जिन लोगो की इच्छा सतलोक मे जाने की हो गई है उसकी इस संसार से आशा तृष्णा समाप्त हो गई हैा वह लोग इस संसार को जरूरत के हिसाब से जी रहे हैा लेकिन जो लोगो संसार को ख्वाईस के हिसाब से जी रहे हैा वह भगत नही हैा जैसे एक बीवी अापकी जरूरत हैा अपनी बीवी को छोडकर गैर स्त्री पर बुरी नजर डालना वो आपकी ख्वाईस कहलाती हैा.. एक इंसान के रहने के लिए एक कमरा जरूरत हैा कोठी बंगले आपकी खवाईस हैा.. जिनको मालिक ने कोटि बंगले दिये है अच्छी बात है लेकिन जिनके पास नही है वह भक्ति करे रीस ना ना करे.. दो वक्त की रोटी जरूरत हैा 36 तरह के पकवान की इच्छा आपकी ख्वाईस हैा.... भगत दास हो तो जरूरत के हिसाब से जीना सीख लो.. ख्वाईस के हिसाब से जो जीता है वह भगत नही हैा.. गुरू जी कहते है मालिक ने जिसको जितना दिया हैा उस मे खुश रहो.. दूसरो की रीस मत करो.. गुरू जी जरूरत के लिए मना नही करते बल्कि ख्वाईसो के लिए मना करते हैैा.. जैसे टी वी पर सतसंग देखना आपकी जरूरत हैा टी वी पर फिल्मे नाटक गेम खेलना जरूरत नही है जो लोग फिल्मे नाटक देखते है वह भगत नही हैा

समाज का एक कड़वा सच

एक दिन पंडित को प्यास लगी, संयोगवश घर में पानी नहीं था। इसलिए उसकी पत्नी पड़ोस से पानी ले आई। पानी पीकर पंडित ने पूछा.... पंडित - कहाँ से लायी हो? बहुत ठंडा पानी है। पत्नी - पड़ोस के कुम्हार के घर से। (पंडित ने यह सुनकर लोटा फेंक दिया और उसके तेवर चढ़ गए। वह जोर-जोर से चीखने लगा ) पंडित - अरी तूने तो मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया। कुम्हार ( शूद्र ) के घर का पानी पिला दिया। (पत्नी भय से थर-थर कांपने लगी) उसने पण्डित से माफ़ी मांग ली। पत्नी - अब ऐसी भूल नहीं होगी। शाम को पण्डित जब खाना खाने बैठा तो घर में खाने के लिए कुछ नहीं था। पंडित - रोटी नहीं बनाई। भाजी नहीं बनाई। क्यों???? पत्नी - बनायी  तो थी। लेकिन अनाज पैदा करने वाला कुणबी(शूद्र) था और जिस कड़ाई में बनाया था, वो कड़ाई लोहार (शूद्र) के घर से आई थी। सब फेंक दिया। पण्डित - तू पगली है क्या?? कहीं अनाज और कढ़ाई में भी छूत होती है? यह कह कर पण्डित बोला- कि पानी तो ले आओ। पत्नी - पानी तो नहीं है जी। पण्डित - घड़े कहाँ गए??? पत्नी - वो तो मैंने फेंक दिए। क्योंकि कुम्हार के हाथ से बने थे। पंडित बोला- दूध ही ले आओ। वही पीलूँगा। पत्नी - दूध भी फेंक दिया जी। क्योंकि गाय को जिस नौकर ने दुहा था, वो तो नीची (शूद्र) जाति से था। पंडित- हद कर दी तूने तो यह भी नहीं जानती की दूध में छूत नहीं लगती है। पत्नी-यह कैसी छूत है जी, जो पानी में तो लगती है, परन्तु दूध में नहीं लगती। (पंडित के मन में आया कि दीवार से सर फोड़ लूं) वह गुर्रा कर बोला - तूने मुझे चौपट कर दिया है जा अब आंगन में खाट डाल दे मुझे अब नींद आ रही है। पत्नी- खाट!!!! उसे तो मैनें तोड़ कर फेंक दिया है जी। क्योंकि उसे शूद्र (सुथार ) जात वाले ने बनाया था। पंडित चीखा - वो फ़ूलों का हार तो लाओ। भगवान को चढ़ाऊंगा, ताकि तेरी अक्ल ठिकाने आये। पत्नी - हार तो मैंने फेंक दिया। उसे माली (शूद्र) जाति के आदमी ने बनाया था। पंडित चीखा- सब में आग लगा दो, घर में कुछ बचा भी हैं या नहीं। पत्नी - हाँ यह घर बचा है, इसे अभी तोड़ना बाकी है। क्योंकि इसे भी तो पिछड़ी जाति के मजदूरों ने बनाया है। पंडित के पास कोई जबाब नहीं था। उसकी अक्ल तो ठिकाने आयी। बाकी लोगों कि भी आ जायेगी। सिर्फ इस कहानी को आगे फॉरवर्ड करो। हो सकता है देश से जातिय भेदभाव खत्म हो जाये। एक कदम बढ़ाकर तो देखो...!!

ओम तत् सत् का वर्णन


आदरणीय भगत आत्माओं मैं आपजी के समक्ष अपने सदगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी की असीम प्रेरणा से प्राप्त ॐ तत सत मन्त्र का विस्तृत अर्थ नामक इस लेख को पोस्ट कर रहा हूँ ... आपजी इसको पढ़े तथा वास्तविक आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करे || विशेष:- गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में वर्णित तत्वदर्शी संत ही पूर्ण परमात्मा के तत्वज्ञान को सही बताता है, उन्हीं से पूछो, मैं (गीता बोलने वाला प्रभु) नहीं जानता। इसी का प्रमाण गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तक भी है। इसीलिए यहाँ गीता अध्याय 17 श्लोक 23 से 28 तक का भाव समझें। अध्याय 17 के श्लोक 23 से 28 तक में कहा है कि पूर्ण परमात्मा के पाने के ऊँ, तत्, सत् यह तीन नाम हैं। इस तीन नाम के जाप का प्रारम्भ स्वांस द्वारा ओं (ॐ) नाम से किया जाता है। तत्वज्ञान के अभाव से स्वयं निष्कर्ष निकाल कर शास्त्रविधि सहित साधना करने वाले ब्रह्म तक की साधना में प्रयोग मन्त्रों के साथ ‘ऊँ‘ मन्त्र लगाते हैं। जैसे ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः‘, ‘ऊँ नम: शिवायः‘ आदि-आदि। यह जाप (काल-ब्रह्म तक व उनके आश्रित तीनों ब्रह्मा जी, विष्णु जी, शंकर जी से लाभ लेने के लिए) स्वर्ग प्राप्ति तक का है। फिर भी शास्त्र विधि रहित होने से उपरोक्त मंत्र व्यर्थ हैं बेसक इन मंत्रों से कुछ लाभ भी प्राप्त हो। तत् नाम का तात्पर्य है कि (अक्षर ब्रह्म) परब्रह्म की साधना का सांकेतिक मन्त्र। यह तत् मन्त्र है। वह पूर्ण गुरु से लेकर जपा जाता है। स्वयं या अनाधिकारी से प्राप्त करके जाप करना भी व्यर्थ है। यह तत (सतनाम ) मन्त्र इष्ट की प्राप्ति के लिए विशेष मन्त्र है तथा सत् जाप मन्त्र पूर्ण परमात्मा का है जो सारनाम के साथ जोड़ा जाता है। उससे पूर्ण मुक्ति होती है। सतशब्द अविनाशी का प्रतीक है। प्रत्येक इष्ट की प्राप्ति के लिए भी "तत" शब्द है तथा सतशब्द अविनाशी का प्रतीक है। वह सारनाम है। पुण्य आत्माओं ओम् तत् सत् का विस्तृत वर्णन केवल पूर्ण सद्गुरु ही कर सकता है और🎤 पूरे विश्व में वह सतगुरु केवल संत रामपाल जी महाराज हैं जिनके पास पूर्ण मोक्ष का ज्ञान है। देखिए साधना चैनल शाम 7:30pm to 8:30 pm सत साहेब।

बड़े आश्चर्य की बात सच है इसलिए कड़वा है


क्या रामचंद्र रघुकुल वाले रामचंद्र भगवान थे/ हैं ? सच है इसलिए कडवा है.... शुद्रो से नफ़रत करने वाले , अकारण उनका वध करने वाले, नरसन्हारी, कान के कच्चे , स्वार्थी, मतलब एवं राज के लिये अपने बीवी बच्चों का त्याग करने वाले , राजा श्री रामचन्द्र जी ने अपनी पत्नी को रावण की कैद से छुडाने के लिए करोडो लोगो की आहूति दे दी। करोडो बहने विधवा करदी। करोडो बच्चे अनाथ कर दिये। 14 साल बाद जब सीता सहित बनवास(उस समय की जैल) से लोटे तो लोगो ने दीवाली मनाई। उसके थोडे दिन बाद श्री रामचन्द्र जी ने एक धोबी का व्यंग्य सुनकर सीता को कलंकित कहके घर से निकाल दिया ............. पिता के राजा होते हुए जंगलो में बच्चे भटके। विधवा से भी बत्तर जिन्दगी होती है उस महिला की...........जो पतिव्रता होते हुए भी कलंकित कहलाए। अग्नि परीक्षा लेकर भी अपनी शंका को खत्म नहीं कर पाए एेसे भगवान रामचन्दर जिन्हे परिवारिक सुख तक नहीं मिला। अंत में अपने जीवन से दुखी होकर सरयु नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली। . इनको तो लोग भगवान माने बेठे है। और जो वास्तव मे भगवान है, उसका अपमान करते हैं। वो भगवान जिसका जीकर चार वेद, कुराण-पुराण, गीता, बाइबल, गुरूग्रंथ साहिब , कबीर सागर , सत ग्रंथ साहिब, सब पवित्र ग्रंथों मे है, जो सब सत ग्रंथों से परमात्मा सिद्ध हो चुके हैं वो कबीर परमेश्वर ही सच्चे भगवान हैं !!!!!! . जो जानबूझ साची तजै, करे झूठ से नेह। ताकी संगति हे प्रभू, सपने में भी ना दे।।

कबीर साहेब और काल की वार्ता


कबीर परमेश्वर ने जब सभी ब्रह्मण्डों की रचना कर ली और अपने लोक में विश्राम करने लगे। उसके बाद हम सभी काल के ब्रह्मण्ड में रह कर अपना किया हुआ कर्मदण्ड भोगने लगे और बहुत दुःखी रहने लगे। सुख व शांति की खोज में भटकने लगे और हमें अपने निज घर सतलोक की याद सताने लगी तथा वहां जाने के लिए भक्ति प्रारंभ की। किसी ने चारों वेदों को कंठस्थ किया तो कोई उग्र तप करने लगा और हवन यज्ञ, ध्यान, समाधि आदि क्रियाएं प्रारम्भ की, लेकिन अपने निज घर सतलोक नहीं जा सके क्योंकि उपरोक्त क्रियाएं करने से अगले जन्मों में अच्छे समृद्ध जीवन को प्राप्त होकर) जैसे राजा-महाराजा, बड़ा व्यापारी, अधिकारी, देव-महादेव, स्वर्ग-महास्वर्ग आदि (वापिस लख चैरासी भोगने लगे। बहुत परेशान रहने लगे और परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करने लगे कि हे दयालु ! हमें निज घर का रास्ता दिखाओ। हम हृदय से आपकी भक्ति करते हैं। आप हमें दर्शन क्यों नहीं दे रहे हो ? यह वृतान्त कबीर साहेब ने धर्मदास जी को बताते हुए कहा कि धर्मदास इन जीवों की पुकार सुनकर मैं अपने सतलोक से जोगजीत का रूप बनाकर काल लोक में आया। तब इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में जहां काल का निज घर है वहां पर तप्तशिला पर जीवों को भूनकर सुक्ष्म शरीर से गंध निकाला जा रहा था। मेरे पहुंचने के बाद उन जीवों की जलन समाप्त को गई। उन्होंने मुझे देखकर कहा कि हे पुरुष ! आप कौन हो? आपके दर्शन मात्रा से ही हमें बड़ा सुख व शांति का आभास हो रहा है। फिर मैंने बताया कि मैं पारब्रह्म परमेश्वर कबीर हूं। आप सब जीव मेरे लोक से आकर काल ब्रह्म के लोक में फंस गए हो। यह काल रोजाना एक लाख मानव के सुक्ष्म शरीर से गंध निकाल कर खाता है और बाद में नाना-प्रकार की योनियों में दण्ड भोगने के लिए छोड़ देता है। तब वे जीवात्माएं कहने लगी कि हे दयालु परमश्ेवर ! हमारे को इस काल की जेल से छुड़वाओ। मैंने बताया कि यह ब्रह्मण्ड काल ने तीन बार भक्ति करके मेरे से प्राप्त किए हुए हैं जो आप यहां सब वस्तुओं का प्रयोग कर रहे हो ये सभी काल की हैं और आप सब अपनी इच्छा से घूमने के लिए आए हो। इसलिए अब आपके ऊपर काल ब्रह्म का बहुत ज्यादा ऋण हो चुका है और वह ऋण मेरे सच्चे नाम के जाप के बिना नहीं उतर सकता। जब तक आप ऋण मुक्त नहीं हो सकते तब तक आप काल ब्रह्म की जेल से बाहर नहीं जा सकते। इसके लिए आपको मुझसे नाम उपदेश लेकर भक्ति करनी होगी। तब मैं आपको छुड़वा कर ले जाऊंगा। हम यह वार्ता कर ही रहे थे कि वहां पर काल ब्रह्म प्रकट हो गया और उसने बहुत क्रोधित होकर मेरे ऊपर हमला बोला। मैंने अपनी शब्द शक्ति से उसको मुर्छित कर दिया। फिर कुछ समय बाद वह हांेश में आया। मेरे चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगा और बोला कि आप मुझ से बड़े हो, मुझ पर कुछ दया करो और यह बताओ कि आप मेरे लोक में क्यों आए हो ? तब मैंने काल पुरुष को बताया कि कुछ जीवात्माएं भक्ति करके अपने निज घर सतलोक में वापिस जाना चाहती हैं। उन्हें सतभक्ति मार्ग नहीं मिल रहा है। इसलिए वे भक्ति करने के बाद भी इसी लोक में रह जाती हैं। मैं उनको सतभक्ति मार्ग बताने के लिए और तेरा भेद देने के लिए आया हूं कि तूं काल है, एक लाख जीवों का आहार करता है और सवा लाख जीवों को उत्पन्न करता है तथा भगवान बन कर बैठा है। मैं इनको बताऊंगा कि तुम जिसकी भक्ति करते हो वह भगवान नहीं, काल है। इतना सुनते ही काल बोला कि यदि सब जीव वापिस चले गए तो मेरे भोजन का क्या होगा ? मैं भूखा मर जाऊंगा। आपसे मेरी प्रार्थना है कि तीन युगों में जीव कम संख्या में ले जाना और सबको मेरा भेद मत देना कि मैं काल हूं, सबको खाता हूं। जब कलियुग आए तो चाहे जितने जीवों को ले जाना। ये वचन काल ने मुझसे प्राप्त कर लिए। कबीर साहेब ने धर्मदास को आगे बताते हुए कहा कि सतयुग, त्रोतायुग, द्वापरयुग मंे भी मैं आया था और बहुत जीवों को सतलोक लेकर गया लेकिन इसका भेद नहीं बताया। अब मैं कलियुग में आया हूं और काल से मेरी वार्ता हुई है। काल ब्रह्म ने मुझ से कहा कि अब आप चाहे जितना जोर लगा लेना, आपकी बात कोई नहीं सुनेगा। प्रथम तो मैंने जीव को भक्ति के लायक ही नहीं छोड़ा है। उनमें बीड़ी, सिगरेट, शराब, मांस आदि दुव्र्यसन की आदत डाल कर इनकी वृत्ती को बिगाड़ दिया है। नाना-प्रकार की पाखण्ड पूजा में जीवात्माओं को लगा दिया है। दूसरी बात यह होगी कि जब आप अपना ज्ञान देकर वापिस अपने लोक में चले जाओगे तब मैं (काल) अपने दूत भेजकर आपके पंथ से मिलते-जुलते बारह पंथ चलाकर जीवों को भ्रमित कर दूंगा। महिमा सतलोक की बताएंगे, आपका ज्ञान कथेंगे लेकिन नाम-जाप मेरा करेंगे, जिसके परिणामस्वरूप मेरा ही भोजन बनेंगे। यह बात सुनकर कबीर साहेब ने कहा कि आप अपनी कोशिश करना, मैं सतमार्ग बताकर ही वापिस जाऊंगा और जो मेरा ज्ञान सुन लेगा वह तेरे बहकावे में कभी नहीं आएगा। सतगुरु कबीर साहेब ने कहा कि हे निरंजन ! यदि मैं चाहूं तो तेरे सारे खेल को क्षण भर में समाप्त कर सकता हूं परंतु ऐसा करने से मेरा वचन भंग होता है। यह सोच कर मैं अपने प्यारे हंसों को यथार्थ ज्ञान देकर शब्द का बल प्रदान करके सतलोक ले जाऊंगा और कहा कि - सुनो धर्मराया, हम संखों हंसा पद परसाया। जिन लीन्हा हमरा प्रवाना, सो हंसा हम किए अमाना।। (पवित्र कबीर सागर में जीवों को भूल-भूलइयां में डालने के लिए तथा अपनी भूख को मिटाने के लिए तरह-2 के तरीकों का वर्णन) द्वादस पंथ करूं मैं साजा, नाम तुम्हारा ले करूं अवाजा। द्वादस यम संसार पठहो, नाम तुम्हारे पंथ चलैहो।। प्रथम दूत मम प्रगटे जाई, पीछे अंश तुम्हारा आई।। यही विधि जीवनको भ्रमाऊं, पुरुष नाम जीवन समझाऊं।। द्वादस पंथ नाम जो लैहे, सो हमरे मुख आन समै है।। कहा तुम्हारा जीव नहीं माने, हमारी ओर होय बाद बखानै।। मैं दृढ़ फंदा रची बनाई, जामें जीव रहे उरझाई।। देवल देव पाषान पूजाई, तीर्थ व्रत जप-तप मन लाई।। यज्ञ होम अरू नेम अचारा, और अनेक फंद में डारा।। जो ज्ञानी जाओ संसारा, जीव न मानै कहा तुम्हारा।। (सतगुरु वचन) ज्ञानी कहे सुनो अन्याई, काटो फंद जीव ले जाई।। जेतिक फंद तुम रचे विचारी, सत्य शबद तै सबै बिंडारी।। जौन जीव हम शब्द दृढावै, फंद तुम्हारा सकल मुकावै।। चैका कर प्रवाना पाई, पुरुष नाम तिहि देऊं चिन्हाई।। ताके निकट काल नहीं आवै, संधि देखी ताकहं सिर नावै।। उपरोक्त विवरण से सिद्ध होता है कि जो अनेक पंथ चले हुए हैं। जिनके पास कबीर साहेब द्वारा बताया हुआ सतभक्ति मार्ग नहीं है, ये सब काल प्रेरित हैं। अतः बुद्धिमान को चाहिए कि सोच-विचार कर भक्ति मार्ग अपनांए क्योंकि मनुष्य जन्म अनमोल है, यह बार-बार नहीं मिलता। कबीर साहेब कहते हैं कि -- कबीर मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार। तरूवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डारि।।

बुधवार, 4 मई 2016

बॉलीवुड ने भारत की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी


बॉलीवुड ने भारत को इतना सब दिया है तभी तो आज देश यहाँ है ...! 1 बलात्कार गैंग रेप करने के तरीके 2 शादी हो रही लड़की को मंडप से भगाना 3 चोरी डकैती करने के तरीके धूम जेसी फ़िल्म 4 भारत के संस्कारो का मजाक बनाना 5 लड़कियो को छोटे अधनंगे कपडे पहने की सिख देना। औरजानकारी देना नारी केवल भोग की वस्तु है 6 दारू सिगरेट चरस गांजा कैसे पिया और लाया जाये 7 गुंडागर्दी कर के हफ्ता वसूली करना 8 भगवान का मज़ाक बनाना और अपमानित करना 9 भारतीयो को अंग्रेज की औलाद बनाना 10 भारतीय संस्कृति को मूर्खता पूर्ण बतानाऔर पश्चातीय संस्कृति को श्रेष्ठ बताना 11 माँ बाप को वृध्धाश्रम छोड़ के आना 12 गाय और भेंसो को मज़ाक बनाना और कुत्तो को उनसे श्रेष्ठबताना और पालना सिखाना 13 रोटी हरी सब्ज़ी खाना गलत बल्कि रेस्टोरेंट में पिज़्ज़ा बर्गरकोल्ड्रिंक और नॉन वेज खाना श्रेष्ठ है 14 चोटी रखना मूर्खता और फनी है मगर बालो के अजीबो गरीब स्टाइल(गजनी) रखना श्रेष्ठ है उसे आप सभ्य लगते है 15 शुद्ध हिन्दी या संस्कृत बोलना हास्य वाली होती है मूर्खो की भाषा पर अंग्रेंजी सर्वश्रेष्ठ भाषा है इसे आप ज्यदा समझदारऔर पढ़े लिखे लगते है 16 भगवान की आरती की जगह अश्लील गाने गाना अच्छा है इतना सब कुछ 30 सालो में बॉलीवुड ने भारत को दिया हे और अब ये सब देख के और सिख के इतने बुद्धिजीवी हो गए है क्या सही है और क्या गलत है इसमें भेद भी नहीं कर पातेऔर बगैर सर पैर की फिल्में इस देश में 500 करोड़ कमा जाती है इस देश का दुर्भाग्य देखिये बॉलीवुड के एक्टर, एक्टर्स और क्रिकेटर के जन्मदिवस पर देश भर की मिडिया और युवा पीढ़ी केक काटते है उन लोगो को भारत के असली शूरवीरो ,वीर वीरांगनाओ,ऋषि मुनियो.स्वामी विवेकानन्द,स्वामी दयानन्द सरस्वती,महाराणा प्रताप ,छत्रपति शिवाजी,झाँसी की रानी ,पृथ्वी राज चौहान,चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह के जन्म दिवस की तारीख भी याद नहीं है भारतीय संस्कृति सभ्यता और संस्कारो का पतन करने में सबसे बड़ा योगदान बॉलीवुड का रहा है।

परिभाषा स्वर्ग की

स्वर्ग की परिभाषाःःःःःःःःः स्वर्ग को एक होटल जैसा जानों। जिस तरह कोई धनी व्यक्ति गर्मियों के मौसम में शिमला या कुल्लु मनाली जैसे शहरो में ठंडे स्थान पर चला जाता है। वहां किसी होटल में ठहरता है। जिसमें कमरे का किराया व खाने का खर्चा अदा करना होता है। महीने में 30-40 हजार रूपए खर्च करके वापिस अपने कर्म क्षेत्र में आना होता है। फिर 11 महीने मजदूरी करो। फिर एक महीना घूम आओ। यदि किसी वर्ष कमाई अच्छी नहीं हुई तो उस एक महीने के सुख को भी तरसो। ठीक इसी प्रकार स्वर्ग जाने-- मनुष्य इस पृथ्वी लोक पर साधना करके कुछ समय स्वर्ग रूपी होटल में चला जाता है। अपनी पुण्य कमाई खर्च करके कुछ समय वहां रहकर वापिस नरक तथा चौरासी लाख प्राणियों के शरीर में कष्ट; पाप कर्मों के आधार पर भोगना पडता है। जब तक तत्वदर्शी संत नहीं मिलेगा तब तक जन्म-मृत्यु, स्वर्ग-नरक व 84 लाख योनियों का कष्ट बना ही रहेगा।क्योंकि केवल पूर्ण परमात्मा का सतनाम व सारनाम ही पापों का नाश करता है। अन्य प्रभुओं की पूजा से पाप नष्ट नहीं होते। सर्व कर्मों का ज्यों का त्यों फल ही मिलता है। साधना चैनल पर प्रतिदिन शाम 07ः40-08ः40 तक सतगुरू रामपाल जी महाराज के अमृत वचनों का आनन्द लें।

कबीर साहेब द्वारा कलयुग में आने का निर्धारित समय


पाँच सहस्र अरु पांचसौ, जब कलियुग बित जाय | महापुरुष फरमान तब, जग तारनको आय || हिन्दू तुर्क आदिक सबै, जेते जीव जहान | सत्य नामकी साख गहि, पावैं पद निर्बान || यथा सरितगण आपही, मिलैं सिंधु में धाय | सत्य सुकृत के मध्य तिमी, सबही पंथ समाय || जबलगि पूरण होए नहीं, ठीक का तिथि वार | कपट चातुरी तबहिलों, स्वसम वेद निरधार || सबहीं नारि नर शुद्ध तब, जब ठीक का दिन आवंत | कपट चातुरी छोड़ीके, शरण कबीर गहंत || एक अनेक हो गयो, पुनि अनेक हो एक | हंस चलै सतलोक सब, सत्यनाम की टेक || घर घर बोध विचार हो, दुर्मति दूर बहाय | कलियुग इक है सोई, बरते सहज सुभाय || कहा उग्र कह छुद्र हो, हर सबकी भवभीर | सो समान समदृष्टि है, समरथ सत्य कबीर |

कबीर साहेब की वाणी में सृष्टि रचना


कबीर साहेब जी की अमृतवाणी में " सृष्टि रचना " धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।। अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रियदेवन की उत्पति भाई।। ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।। माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।। पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछे से माया उपजाई।। धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया(दुर्गा) को रही तब आसा।। तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रम्हा विष्णु शिव नाम धराये।। तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।। तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।। अलख निरंजन सुन्न ठिकाना। ब्रम्हा विष्णु शिव भेद न जाना।। अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।। ब्रम्हा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।। तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव करत हैं सेवा।। तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।। तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।। गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार। कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरें पार ॥ ........... Just Share .......... इन लिंक्स से अनमोल पुस्तक "ज्ञान गंगा" अब विभिन्न भाषाओं में Pdf फाइल डाउनलोड करे। =>ज्ञान गंगा हिन्दी भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_hindi.pdf (4.25mb) =>ज्ञान गंगा इगलिँश भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_english.pdf (3.07 mb) => ज्ञान गंगा पँजाबी भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_punjabi.pdf (4.29 mb) =>ज्ञान गंगा उर्दू भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_urdu.pdf (5.42mb) => ज्ञान गंगा गुजराती भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_gujarati.pdf (9.16mb) => ज्ञान गंगा उड़ीया भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_oriya.pdf (2.75mb) => ज्ञान गंगा असामी भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_assamese.pdf (2.92mb) => ज्ञान गंगा तेँलगू भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_telugu.pdf (2.36mb) => ज्ञान गंगा कनाडा भाषा मे www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_kannada.pdf (5.77mb) => ज्ञान गंगा नेपाली भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_nepali.pdf (4.91mb) => ज्ञान गंगा बँगाली भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_bengali.pdf (5.90mb) =>ज्ञान गंगा मराठी भाषा में www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_marathi.pdf (1.88mb) ऊपर दिए गए लिंक से बुक डाउनलोड करे ।। शेयर जरूर करे सभी भगत जी

गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

जीव हिंसा महापाप है


कबीर परमात्मा कहते हैं जो व्यक्ति जीव हिंसा करते हैं वे महापापी हैं, वे कभी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते। जरा सा(तिल के समान) भी मांस खाकर भक्ति करता है, चाहे करोड गाय दान भी करता है, उस साधक की साधना भी व्यर्थ है। मांसाहारी व्यक्ति चाहे परमात्मा प्राप्ति के लिए गर्दन भी कटवा ले, वह नरक में ही जाएगा। कबीर मांस मांस सब एक है, मुरगी हिरनी गाय। आंखि देखि नर खात है, ते नर नरकहिं जाए।। कबीर तिलभर मच्छली खायके, कोटि गऊ दे दान। काशी करौंत ले मरे, तो भी नरक निदान।। कबीर कहता हूँ कहि जात हूँ, कहा जो मान हमार। जाका गला तुम काटि हो, सो फिर काटै तुम्हार।। कबीर परमात्मा कहते हैं कि इस दुनिया में हर चीज का बदला देना पडता है। इस जन्म में तुम किसी की हत्या करोगे तो अगले जन्म में वह तुम्हारी हत्या करेगा। यदि मारने का शौक है तो काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार को मारो। जीभ के स्वाद के लिए जीव हिंसा करना गलत है। कृपा शाकाहार अपनाए। जय बन्दीछोड की। सत साहिब जी।

वास्तविक धन क्या है


वास्तविक धन आज मनुष्य सब सुख सुविधाओं की कामना करता है और उनकी प्राप्ति के लिए दो नम्बर का काम, लूट खसोट, मिलावट, चोरी डकैती, धोखाधडी सब कुछ करता है..................... पर मनुष्य ये भूल गया है कि जो विधाता ने हमारे भाग्य में लिख दिया केवल वही मिलेगा,,,मनुष्य भाग्य में लिखे को नहीं बदल सकता। उसकी दो नम्बर की कमाई किसी भी तरह उसके पास नहीं टिक सकती........ या तो उसके परिवार के किसी सदस्य के कोई बिमारी होगी, या कोई दुर्घटना घट जाएगी या व्यापार में कोई नुकसान लग जाएगा........इस तरह वह अतिरिक्त कमाई खत्म हो जाएगी। वह कमाई तो जानी ही होती है शेष रह जाते है उसको कमाने में होने वाले पाप। दो नम्बर की कमाई तो हमारा साथ केवल कुछ समय तक देती है............सतगुरू बताते हैं कि असली कमाई तो परमात्मा का नाम जाप, दान करना व भूखे को भोजन खिलाना है जिसकी कमाई हमारे मरने के बाद भी हमारे साथ जाती है। कबीर सब जग निर्धना, धनवंता ना कोए। धनवंता सोए जानिये, जापे राम नाम धन होए।। कहें कबीर समुझाय के, दोई बात लखि लेह। एक साहिब की बंदगी व भूखों को कुछ देय।। सतगुरूदेव जी की जय। सत साहेब जी।

कबीर साहेब का गोरख नाथ जी के साथ ज्ञान चर्चा


🏻 जब कबीर साहिब की उम्र पांच वर्ष की थी तब गुरु गोरखनाथ ने उनसे ज्ञान चर्चा करते हुए उनकी आयु के बारे में सवाल किया था तब कबीर साहिब ने यह जवाब दिया था । 🏻 जो बूझे सोई बावरा, क्या है उम्र हमारी। असंख युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी।।टेक।। कोटि निरंजन हो गए, परलोक सिधारी। हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।। (करोड़ों निरंजन मर चुके हैं) अरबों तो ब्रह्मा गए, उनन्चास कोटि कन्हैया सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया।। (49करोड़ श्रीकृष्ण,7करोड़ शिवजी मर चुके हैं) कोटिन नारद हो गए, मुहम्मद से चारी। देवतन की गिनती नहीं है, क्या सृष्टि विचारी।। नहीं बुढ़ा नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी। कहैं कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।। (मेरी कोई उम्र नहीं है) ज्ञात रहे :-कबीर साहेब ने किसी माँ की पेट से जन्म नहीं लिया था प्रकाश का गोला आसमान से आया और कमल के फूल पर बच्चे के रुप में परवर्तित हो गया था। मृत्यु के वक्त भी उनका शरीर नहीं मिला शरीर के स्थान पर केवल सुगंधित फूल मिले थे॥ हम ही अलख अल्लाह है,कुतूब गौस और पीर। गरीबदास खालिक धनी हमरा नाम कबीर॥ सतगुरु पुरुष कबीर है,चारों युग प्रवान। झूठे गुरु मर गए,हो गए भूत मसान॥ :- आजकल के नकली गुरु भोली भाली आत्मांओ को नरकों की ओर धकेल रहे है।संसार में बहुत सारे गुरु पैदा हो गए थे इसलिए परमात्मा को स्वयं कबीर साहेब के रुप में सतगुरु की भूमिका निभाने के लिए पृथ्वीलोक में आना पड़ा । अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।टेक।। ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक ह्नै दिखलाया। काशी नगर जल कमल पर डेरा,तहाँ जुलाहे ने पाया।। माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी। जुलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।। पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा। सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा।। अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा। ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।। हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी। तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।। उसके बाद जिन संतों को कबीर साहेब ने जिन्दा रुप में दर्शन दिए! वह भी सतगुरु कहलाए। लेकिन आजकल तो एक कथा वाचक भी अपने आप को सतगुरु कहता है। "सद्गुरु के लक्षण कहुं,मधुरे बैन विनोद।चार वेद षट् शास्त्र,कह अठारह बोध।।" सतगुरु की एक पहचान होती है जोकि कबीर साहेब ने सूक्ष्मवेद में वर्णित कर रखी है। सत् साहेब जी जय हो बंदछोड़ की

संत रामपाल जी महाराज के ज्ञान का पाकिस्तान में भी दिखा असर


सन्त रामपाल जी महाराज के ज्ञान का पाकिस्तान मे भी दिखा असर। जेल जाने से पूर्व नेपाल भूटान मे अपने तत्व ज्ञान का डंका पीट चुके एवं सभी तथाकथित सन्तो को अध्यात्मिक ज्ञान चर्चा मे परास्त करने वाले सन्त रामपाल जी महाराज से जुड़ने वालो की लहर सरकार के तमाम प्रयासो के बाद रोके नही रुक रही है। और तो और भारत के धुरविरोधी देश पाकिस्तान मे भी सन्त रामपाल जी महाराज से जुड़ने का सिलसिला प्रारम्भ हो गया है।विगत एक हफ्ते मे पाकिस्तान के 529 लोगो ने सन्त रामपाल जी महाराज के अनुयायियों के माध्यम से दीक्षा ली है। जीव हमारी जाति है मानव धर्म हमारा। हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई धर्म नही कोई न्यारा।। का नारा बुलन्द करने वाले सन्त रामपाल जी महाराज का ज्ञान विदेशो मे भी सिर चढ़ कर बोल रहा है।पाकिस्तान भूटान नेपाल समेत अन्य देशो मे भी सन्त रामपाल जी महाराज के अनुयायियों की तादाद निरन्तर बढ़ रही है। अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि सन्त रामपाल जी महाराज के विरुद्ध बनाये गये केस मनगढन्त व झूठे है।मीडिया को भी हरियाणा की सरकारी मशीनरी ने कूटनीतिक षडयन्त्र के तहत गुमराह किया।आखिरकार एक वर्ष बीत जाने के वाबजूद क्यो हरियाणा पुलिस अभी तक एक भी सबूत सन्त रामपाल जी महाराज के विरुद्ध पेश नही कर पायी है।

कबीर साहेब द्वारा मृत लड़के कमाल को जीवित करना


मृृत लड़के कमाल को जीवित करना ***** एक लड़के का शव (लगभग 12 वर्ष का) नदी में बहता हुआ आ रहा था। सिकंदर लोदी के धार्मिक गुरु (पीर) शेखतकी ने कहा कि मैं तो कबीर साहेब को तब खुदा मानूं जब मेरे सामने इस मुर्दे को जीवित कर दे। साहेब ने सोचा कि यदि यह शेखतकी मेरी बात को मान लेगा और पूर्ण परमात्मा को जान लेगा तो हो सकता है सर्व मुसलमानों को सतमार्ग पर लगा कर काल के जाल से मुक्त करवा दे। सिकंदर लोदी राजा तथा सैकड़ों सैनिक उस दरिया पर विद्यमान थे। तब पूर्ण ब्रह्म साहेब कबीर ने कहा कि शेख जी - पहले आप प्रयत्न करें, कहीं बाद में कहो कि यह तो मैं भी कर सकता था। इस पर शेखतकी ने कहा कि ये कबीर तो सोचता है कि कुछ समय पश्चात यह मुर्दा बह कर आगे निकल जाएगा और मुसीबत टल जाएगी। साहेब कबीर ने उसी समय कहा कि हे जीवात्मा! जहाँ भी है कबीर हुक्म से इस शव में प्रवेश कर और बाहर आजा। तुरंत ही वह बारह वर्षीय लड़का जीवितहो कर बाहर आया और साहेब के चरणों में दण्डवत् प्रणाम की। सब उपस्थित व्यक्तियों ने कहा कि साहेब ने कमाल कर दिया। उस लड़के का नाम ‘कमाल‘ रख दिया तथा साहेब ने उसे अपने बच्चे के रूप में अपने साथ रखा। इस घटना की चर्चा दूर-2 तक होने लगी। कबीर साहेब की महिमा बहुत हो गई। लाखों बुद्धिमान भक्त आत्मा एक परमात्मा (साहेब कबीर) की शरण में आ कर अपना आत्म कल्याण करवाने लगे। परंतु शेखतकी अपनी बेईज्जती मान कर साहेब कबीर से ईष्र्या रखने लगा। — Sat Sahib ji

राम का मरम कबीर ने जाना


🙏राम राम करता सब जग फिरे । राम न पाया जाये ।। रामन लोग खिलौना माना । राम का मरम कबीर मन जाना ।। एक बार कबीर साहब किसी के घर कथा करने गये कबीर साहब ने कथा के दौरान बताया कि राम राम जपने वाला संसारिक बंधनो से आजाद हो जाता है इस बाणी को सतसंग मे बैठे लोगो ने सुना या नही सुना मगर उस घर मे एक तोता पिजडे मे बैठे ध्यान से सुन रहा था कबीर साहब के चले जाने के बाद तोता राम राम रटता रहा कि सायद मै इस छोटे से पिजडे से आजाद हो जाऊ पिजडा तो संसार से बहुत छोटा है लेकिन तोता आजाद नही हुआ उसी घर मे कथा करने के लिये कबीर साहब कुछ दिनो बाद पुनः आये तो तोते ने कबीर साहब को बोला बाबा जी आप लोगो को मूर्ख बनाना बंद करे मैने उस दिन से लगातार राम नाम जोर जोर से रटा परन्तु मै आजाद नही हुआ तोते की बात को सुनकर बाबा जी ने कहा तोते जैसे मैने कहा था वैसे तुमने नही जपा सुन कैसे जपना है लाख नाम संसार के ताते मुक्ति न होय आदि नाम जो "गुप्त" जप बूझै बिरला कोय... --संत सहजो बाई किसी भी कार्य को अगर युक्ति पूर्बक किया जाये तभी अंजाम मिलता है कबीर साहब ने कहा सुन तोते आज से अंतरध्यान होकर राम नाम का जप करना अगर फिर भी पिजरे से आजाद नही हुऐ तो मै अपनी फकीरी छोड दूंगा तोते ने ठीक वैसे ही किया कैसे ?? आख कान मुंह झापकर नाम निरंजन ले अंदर का पट तब खुले बाहर का जब दे {यानी बंद कर} तोते ने ठीक इसी युक्ति अनुसार राम नाम का जप करने लगा एक दो दिन बाद तोते के मालिक को लगा कि तोता मर गया न बोले न डोले न कुछ खाये पिये अतः मालिक ने तोते को पिजडे से निकालकर बाहर फेक दिया फेकते ही तोता हवा मे उडा और बोला कबीरा तेरा रामनाम सत्य है जो कोई करै मन चितलाये.. भावार्थ बिधि पूर्बक किया गया हर एक कार्य सफल होता है.. 🌷🙏 जय बन्दी छोड़ की 🙏🌷

यह मानव जीवन परमात्मा प्राप्ति के लिए मिला है


यह मानव जीवन अपनें परम पिता परमेश्वर की प्राप्ति के लिए मिला है! क्योंकि यह दुनिया हमारी नहीं है इए तो काल भगवान ज्योतिनिरन्जन की है! जो कि रोज एक लाख शरीर धारी आत्माँओं को तप्तशिला पर भुन कर खाता है व रोज सवा लाख पैदा करता है! यह ब्रह्मा विष्णु शिव इन तीनों का बाप और दुर्गा का पती है! इसनें शपथ ली थी कि अपनें वास्तविक रूप किसीके सामनें नहीं आऊँगा, इसके लिए कोई कितना भी जप तप करे! आश्चर्य करनें वाली बात यह है कि इसका जाप करनें वाला मन्त्र ओम् है! यही कारण था कि ओम् जाप करते करते श्रिषियों नें अपनें शरीर तक गला दिये लेकिन भगवान नहीं मिला, और वो विचारे श्रिषि अपना अनुभव पुराणों में लिखकर चले गये, कि भगवान निराकार है, इसी को पढकर इए दुनिया आज तक बेबकूफ बनी रही और हम अपनें परम पिता परमेश्वर से कोशों दूर हो गये, और यह बात विद् पिरमांणों सहीत मुझे सत् गुरू रामपाल जी महाराज के शरण में जानें के बाद पता चली, और वो पिरमाण गुरू जी नें कुरान शरीफ, बाईबल, अथर्वेद, सामवेद, रिग्वेद, यजुर्वेद, श्रीमद् भगवद् गीता से खोलकर दिखाए, और उन्होंनेें यह सिध्द कर दिया कि सबका मालिक एक है वो कहाँ रहता है कैसे मिलेगा वो भक्तिविधी इस काल की दुनिया से छुटकारा पानें के लिए मानव को दी है, जिससे हम अपनें निज घर सतलोक पहुच सकेगें, जहाँ हमारे तेजपुन्ज के शरीर हैं, जन्म का कष्ट बुढापे का कष्ट बीमारी, लडाई झगड़ा यह सब नहीं है वहाँ पर हम सदा सुखी रहते हैं! यह सब मैनै जो लिखा है इसे पढ़कर आप जी के मन में शंकाएं भी पैदा हुई होगीं, लेकिन इसके लिए आप जी से हाथ जोड़कर विनती है एक बार सत् गुरू रामपाल जी महाराज द्वारा लिखी हुई ज्ञानगंगा पुस्तक पढ़कर अनुसरण जरूर करें, आपकी शंकाओं का समाधान पिरमाणों सहित उसी पस्तक से हो जायेगा! प्लीज आप इए ना देखना कि हमारे गुरूजी जेल में है तो वो गलत है, क्योंकि जो सत्य का मार्ग दिखाता है दुनिया उसके खिलाफ होती है लेकिन जीत हमेसा सत्य की ही होती है, इस बात की गबाही हमारे ही पुरानें इतहासों में मिलती है, हमारी पूरे सन्सार से विनती है कि इस थोड़ी सी बात के पीछे परमात्मां से मूँह न मोड़ो, अगर आपका इए अनमोल मानव जीवन इस काल छीन लिया तो सिवाय पछतानें के अलावा आपके पास कुछ भी नहीं बचेगा! मानुष जन्म दुर्लभ है इए मिले न बारम्बार, जैसे पेड़ से पत्ता टूट गिरै बहूर न लगता डारि! समझदार के लिए संकेत ही काफी है! सत् साहेब

भक्ति करना कोई बालकों का खेल नही

भगती करना इन नकलियों ने बालको का खेल बना दिया ! बस सुबह शाम दो मिन्ट मदिंर मस्जिद में गऐ हो गया बेड़ा पार या किसी को दो चार रूपये दान दे दिया ! बाद में सारा दिन लूट खसोट चोरी डाके रिश्वतखोरी में लगे रहते है ! मदिंर में होते है उस टाईम इन से शरीफ धरती पर कोई नही होता ! अरेे भाई ये कोई भगती नही है भगती कैसी होती है ये संत रामपाल जी महाराज के वचन सुने फिर पता चलेगा भगती किसको कहते है ! ड्रामे बाजी और शास्त्रविरूद्ध साधना में कुछ नही रखा !! यदि आप शास्त्रों के अनुसार भक्ति नहीं कर रहे तो उस भक्ति का कोई लाभ नहीं, चाहे करो या ना करो। ये बात हम नहीं हमारी पवित्र गीताजी कह रही हैं। गीता अध्याय नं. 16 का श्लोक नं. 23 यः, शास्त्रविधिम्, उत्सज्य, वर्तते, कामकारतः, न, सः, सिद्धिम्, अवाप्नोति, न, सुखम्, न, पराम्, गतिम्।। अनुवाद: जो पुरुष शास्त्र विधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है वह न सिद्धि को प्राप्त होता है न परम गति को और न सुख को ही। शास्त्रानुकुल साधना पाने के लिए सुनिए संत रामपाल जी महाराज के अमृत वचन साधना चैनल पर प्रतिदिन 07ः40-08ः40 तक।

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

काल के 21 ब्रह्मांड यानी माया देश में आगमन


जब भी प्राणी का मनुष्य-योनी में जन्म लेने का समय आता है। तब वह पिता के वीर्यकण के द्वारा माता के "रज' में मिलकर उदर में पड जाता है। वहाँ पर एक रात्रि में कँवल बन जाता है। पाँच-रात्रियों में गोलाकार-अण्ड बन जाता है। तथा दस रात्रियों में बेर के मानिन्द-कठोर हो जाता है। अण्डज-प्राणियों का अण्डा बन जाता है। एक-मास पश्चात् उसका सिर बन जाता है। दो-महीनें में उसके हांथ-पाँव आदि बन जाते है। तीसरे महीनें में अस्ति, चर्म, स्त्री-पुरूष के चिह्न, नख, रोम आदि बन जाते है। चौथे-महीनें में सातों धातुएँ उत्पन्न हो जातीं है। पाँचवें-मास में क्षुधा-पिपासा आदि का ज्ञान होता है। छटवें-महीनें में वह झिल्ली-युक्त होकर दाहिनी-कोख में चमकने लखता है। उस समय वह माता के भोजन तथा जल, विष्ठा आदि में पडा "यातना-भोगता" है। उसके अंग कोमल-कमल होते है। वह किटाणुओं द्वारा तथा माता के खाये हुए चरपरो, लेह, अम्ब भोजन् से उसे महान-पीडा होती है। वह पिंडात्मक-प्राणी-प्रकृतिरूप-माया के उदर के बन्धन में कसा रहकर तडफडाने लगता है। उस क्षण् #भगवान्" की प्रेरणा से उसे स्मरण्-शक्ति उत्पन्न हो जाती है। और वह उस समय अपने सौकडों-जन्मों को स्मरण् करके रोने लगता है। व्याकुल होने लगता है। सातवें-महीनें में उसकी विवेक-शक्ति जाग्रत हो जाती है। वह प्रसूति-वायु से प्रेरित होकर इधर-उधर घूमने लगता है। उसे गर्भ में अति-कष्ट प्राप्त होता है। तब वह #परमात्मा" से प्रार्थना करता है। #जीव_कहता_है; हे महान-ईश्वर ! मैं बडा पापी हुँ। मुझे इस अधोगति से बाहर निकालिये। आप ही इस संसार के उत्पत्ति-कर्ता है। आप अविकारी, अविनाशी तथा माया से रहित है। मैं आपको प्रणाम् करता हुँ। मैं अहंकार, इँद्रिय आदि गुणों से युक्त हुँ। और आपप्रकृति और पुरूष' के नियन्ता होने के कारण् इन दोनों से परे है। सर्वज्ञ है। माता का उदर साक्षात् मल-मूत्र तथा रूधिर का कुण्ड है। मैं इस नरक में पडा हुआ कष्ट भोग रहा हुँ। हे परमात्मा ! आप मुझ दीन को यहाँ से शीघ्र निकालिए। हे दिनबन्धु ! मै निरंतर आपका भजन् करूँगा। तथा आप ही की शरण् में रहुँगा। उस संसार-कष्ट से तो यह उदर का कष्ट ही ठीक है। पॄथ्वि पर गीरते ही आपकी-माया-जीव को घेर लेती है। मुझे ऐसा मार्ग सुझाऐं जिससे मैं संसार-चक्र से मुक्त हो जाऊँ? इस तरह प्रार्थना करते हुऐ उदर-वायु उसे बाहर ढकेल देती है। इस तरह वह बारह आकर छटकटाने लगता है। पॄथ्वि में आते ही उसका सारा-ज्ञान लुप्त हो जाता है। और वह रोने लगता है। श्नै: श्नै: प्रकृति में स्थित अन्य जीव-संबंधि माया में फँसे मायामय लोग उस बालक को मोह लेते है। और वह हँसनें लग जाता है। इस प्रकार उसका बालपन, कौमाराव्सथा, समाप्त होने पर #युवा हो जाता है। और अज्ञानवश कामासक्त होकर #माया के विषय-वासनाओं में लीन हो जाता है। उदर में "भगवान्" से कि हुई प्रतिज्ञा उसे भुल जाती है। वह अपनी ईच्छा-शक्तिके लिए अनेक पाप करता है। अविद्या में फँसकर कर्मसुत्रमें बंधता जाता है। वह ब्रह्म की वैष्णवीमाया-रूपी-स्त्री के चक्कर में ऐसा फँसता है। कि सर्वस्व खो बैठता है। इस प्रकृतिरूपमाया की शक्ति इतनी प्रबल है। कि पॄथ्वी के बडे-बडे भू-विजयी-वीरों को अपने वश में कर लेती है। इस हेतु हे जगत्-जीवांतकों #आत्मज्ञान्" की ओर लौटो। *परमात्मा-प्रत्येक-आत्मा* के लौटने की प्रतिक्षा में है। !!!!! परमात्मा कबीर !!!!!

रविवार, 24 अप्रैल 2016

दोगली सरकार का अंत होने ही वाला है।Nearing the end of this government.


भ्रष्ट हरियाणा सरकार व दोगली मोदी सरकार का अंत होने ही वाला है, बस कुछ ही दिनों की तो बात है..... ये जीव हैं, इनको शायद पता नहीं है राजसत्ता की अभिमान में अच्छा बुरा भी भूल चुके है.. मोदी साहब उसकी लाठी में आवाज नहीं होती.. कुछ शर्म है तो करवा दो live CBI जांच हो जाय दूध का दूध, पानी का पानी.. संत रामपाल जी महाराज कोई साधारण इंसान नहीं है. इस बात को तो मोदी साहब.. आप जानते हो न , आपने तो आस्ट्रेलिया और बीस देशों से संत रामपाल जी महाराज को पकड़ने के लिये मदद की गुहार लगाई थी.. और इस बात को स्वीकारा था कि वे कोई साधारण संत नहीं हैं. हमारे भगतों ने तो लाखों लेटर भी भेजे हैं कि भ्रष्ट जजों की जवाब देही तय हो .. लेकिन. अंधेर नगरी चौपट राजा.. मोदी जाग जाओ अभी भी समय है नहीं तो ...समय का इंतजार करो, समय ही बताएगा.. कि संत सताए तीनों जांही, तेज बल और वंश. ऐसे ऐसे कई गए रावण कौरव और कंश.. कहीं आप भी इस गिनती में शामिल हो. कबीर साहेब ,- जो सताए मेरे अंश को, मिटा दूं उसके वंश को.. जागो अब भी समय है संत बहुत दयालु हैं.

गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

Satguru be a necessary condition of the path of devotion.


🙏भगति मार्ग में सतगुरु का होना एक आवश्यक शर्त। परमात्मा की प्यारी आत्माओं, भक्ति के मार्ग में एक अत्यंत ही जरुरी और महत्वपूर्ण भूमिका होता है "गुरु" का, जिसके बगैर हम इस संसार सागर से कतई पार नहीं हो सकते। जबकि तत्वज्ञान के अभाव में अक्सर लोग कह देते है, भगत और भगवान के बीच में गुरु का क्या काम ? बस यही पर आप मार खा जाते है। गुरु महिमा के विषय में गोस्वामी तुलसी दास जी लिखते हैं:- गुरु बिन भव निधि तरई न कोई।जो विरंची शंकर सम होई ।। अर्थात् बिना गुरु के संसार सागर से कोई पार नहीं हो सकता चाहे वह ब्रम्हा व शंकर के समान ही क्यों न हो। यही नानकदेव जी कहते हैं:- गुरु की मूरत मन में ध्याना । गुरु के शब्द मंत्र मन माना ।। मत कोई भरम भूलो संसारी । गुरु बिन कोई न उतरसी पारी ।। परमात्मा प्राप्त कर चुकी मीरा बाई ने कहा है:- पायो जी मैने, राम रतन धन पायो। वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, करि कृपा अपनायो।। पायो जी मैने, राम रतन धन पायो ।। कबीर साहेब ने तो यहॉ तक बताया है :- राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हूँ भी गुरु कीन । तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन ।। फिर कहा है: गुरु बिन माला, फेरते गुरु बिन देते दान। गुरु बिन दोनों निष्फल है, चाहे पूछो वेद पुराण ।। अर्थात् गुरु के बिना किया गया जाप व् दान (भगति) सबकुछ व्यर्थ है। इसलिए भक्ति मार्ग में अब हमें बड़ी गहनता से इस विषय को समझना होगा क्योंकि अब के जो हम चूके तो न जाने कब यह नर तन मिले ना मिले। नर तन मिल भी जाए तो सतगुरु मिले ना मिले क्योंकि : गुरु - गुरु में भेद है, गुरु - गुरु में भाव।सोई गुरु नित बंदिये, जो शब्द लखावै दाव ।। अब हमारे सामने बड़ी सबसे बड़ी विडम्बना है कि हम सतगुरु की परख कैसे करें। क्यों कि हमारे यहाँ तो गुरूओं की बाढ़ सी आई हूई है। तो इस समस्या के निदान के लिए नीचे हर स्तर के गुरुओं की महिमा बताई जा रही है। जिनमें से सतगुरु को पहचानकर और उनकी सही स्थिति को जानकर अपना नैया पार लगाना है : प्रथम गुरु है पिता अरु माता | जो है रक्त बीज के दाता || हमारे माता पिता हमारे प्रथम गुरु हैं | दूसर गुरु भई वह दाई | जो गर्भवास की मैल छूड़ाई || जन्म के समय व बाद में जिसने हमारा सम्हाल किया वह हमारा दूसरा गुरु है | तीसर गुरु नाम जो धारा | सोइ नाम से जगत पुकारा || जिसने हमारा नामकरण किया वह तीसरा गुरु है | चौंथा गुरु जो शिक्षा दीन्हा | तब संसारी मारग चीन्हा || हमें शिक्षा देने वालेअध्यापक चौंथे गुरु कीश्रेंणी में है | पॉचवा गुरु जो दीक्षा दीन्हा | राम कृष्ण का सुमिरण कीन्हा || हमें अध्यात्म से जोड़ने में पॉचवे गुरु का बहूँत ही महत्वपूर्ण योगदान है क्यों कि यही वह सीढ़ी है जहॉ से हम भगवान की ओर प्रथम कदम उठाते हैं और नाना प्रकार के देवी देवताओं (३३करोंड़) को पूजना शुरू करते हैं। नाना प्रकार के व्रत जैसे चतुर्थी, नवमी, एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि व्रतों को करते हूऐ मंदिर, पहाड़, पशु, पक्षी, पेड़, पौधे पूजन के अलावा तीर्थाटन आदि करके खुद को मुक्त मानते हैं।लेकिन उपरोक्त पूजाओं का प्रमाण गीता व् वेदों में न होने से शास्त्रविरुध साधना है।जिस कारण इन पूजाओं का फल गीता जी में व्यर्थ कहा है। (गीता अ.१६ मंत्र २३-२४) इस कारण इन साधनाओं को करके भी शास्त्रविरुध् होने से भगति में हम सफल नही हो पाते। आगे छठवॉ गुरु को समझें : छठवॉ गुरु भरम सब तोड़ा, "ऊँ" कार से नाता जोंड़ा । यह गुरु हमारा भरम निवारण इस आधार पर करता है कि वेद (यजुर्वेद अ.४० मंत्र १५ व १७) और गीता (अ.८ मंत्र १३) में केवल एक "ऊँ" अक्षर ब्रम्ह प्राप्ति (मुक्ति) हेतु बताया गया है। इसके अलावा किसी अन्य देवी देवता की पूजा नही करनी चाहिए। किंतु, इनका यह भक्ति साधना भी पूर्ण लाभदायक नही है। क्योकि गीता ज्ञानदाता (ब्रम्ह) स्वयं गीता में कहता है कि तेरे और मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं (प्रमाण- गीता अ.२ मं.१२, अ.४ मं.५ व ९ तथा अ.१० मं.२)। और यह भी स्पष्ट बता दिया कि ब्रम्ह लोक पर्यन्त सब लोक पुनरावृत्ती (उत्पति विनाश) में है (अ.8 म.16) । इसलिए यह गुरू भी पूर्ण नहीं। अब सातवॉ गुरु : सातवॉ सतगुरू शब्द लखाया, जहॉ का जीव तहॉ पहूँचाया । पुन्यात्माओं, इन्हें गुरु नही, अपितु सतगुरु कहा गया है। क्योंकि इनका दिया ज्ञान व भक्ति विधि शास्त्रानुकूल होने से इस लोक और परलोक - दोनो में परम हितकारक है। यह सतगुरु हमें सदभक्ति का दान देकर व हमारा सही ठिकाना बताकर यहॉ काल/ब्रम्ह के २१ ब्रम्हांड से भी और उस पार उस सतलोक को प्राप्त करने की सतसाधना प्रदान करता है जिस मार्ग पर चलने वाला साधक जरा और मरण रुपी महा भयंकर रोग से छुटकारा पाकर उस शास्वत स्थान को प्राप्त करता है, जिस स्थान के बारे में गीता अ.१८ मं.६२ व ६६ में कहा गया है। इसी सतगुरु का संकेत गीता अ.4 के मन्त्र 34 में किया है। और यही सतगुरु ही वह बाखबर है, जिसके बारे में पवित्र कुर्आन शरीफ की सूरत फूर्कानी २५ आयत ५२ से ५९ में भी बताया गया है । अब पुन्यात्माओं, हमें इस सतगुरु/बाखबर की खोज करनी है। दुनिया के सभी संतों, महंतों, गुरुओं को इस पैमाने पर तौलकर देखें तो आपको केवल और केवल एक ही ऐसा संत नजर आएगा जिसके ग्यान का प्रत्युत्तर वर्तमान का कोई भी संत नही दे सका और वह परम संत हैं- "जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज" इस महान संत का आध्यात्मिक मंगल प्रवचन "साधना चैनल" पर प्रतिदिन सायं 07:40 से 08:40 पर प्रसारित होता है/dd direct 32/tata सकाई 191/बिग TV 655/एयरटेल 685/डिश TV 2055/जरुर सुनें और अपना कल्याण कराऐं। अब ज्यादा कुछ कहने को नही बचा।। परमात्मा कहते हैं : समझा है तो सिर धर पॉव, बहूर नहीं रे ऐसा दॉव । सत साहेब👏👏🌹🌹

गीता का ज्ञान। Knowledge of the Gita.


गीता अध्याय 9 के श्लोक 25 में कहा है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने (पिण्ड दान करने) वाले भूतों को प्राप्त होते हैं अर्थात् भूत बन जाते हैं, शास्त्रानुकूल(पवित्र वेदों व गीता अनुसार) पूजा करने वाले मुझको ही प्राप्त होते हैं अर्थात् काल द्वारा निर्मित स्वर्ग व महास्वर्ग आदि में कुछ ज्यादा समय मौज कर लेते हैं। विशेष:- जैसे कोई तहसीलदार की नौकरी(सेवा-पूजा) करता है तो वह तहसीलदार नहीं बन सकता। हाँ उससे प्राप्त धन से रोजी-रोटी चलेगी अर्थात् उसके आधीन ही रहेगा। ठीक इसी प्रकार जो जिस देव (श्री ब्रह्मा देव, श्री विष्णु देव तथा श्री शिव देव अर्थात् त्रिदेव) की पूजा (नौकरी) करता है तो उन्हीं से मिलने वाला लाभ ही प्राप्त करता है। त्रिगुणमई माया अर्थात् तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की पूजा का निषेध पवित्र गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 तक में भी है। इसी प्रकार कोई पितरों की पूजा (नौकरी-सेवा) करता है तो पितरों के पास छोटा पितर बन कर उन्हीं के पास कष्ट उठाएगा। इसी प्रकार कोई भूतों(प्रेतों) की पूजा (सेवा) करता है तो भूत बनेगा क्योंकि सारा जीवन जिसमें आशक्तता बनी है अन्त में उन्हीं में मन फंसा रहता है। जिस कारण से उन्हीं के पास चला जाता है। कुछेक का कहना है कि पितर-भूत-देव पूजाऐं भी करते रहेंगे, आप से उपदेश लेकर साधना भी करते रहेंगे। ऐसा नहीं चलेगा। जो साधना पवित्र गीता जी में व पवित्र चारों वेदों में मना है वह करना शास्त्र विरुद्ध हुआ। जिसको पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में मना किया है कि जो शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण (पूजा) करते हैं वे न तो सुख को प्राप्त करते हैं न परमगति को तथा न ही कोई कार्य सिद्ध करने वाली सिद्धि को ही प्राप्त करते हैं अर्थात् जीवन व्यर्थ कर जाते हैं। इसलिए अर्जुन तेरे लिए कर्तव्य (जो साधना के कर्म करने योग्य हैं) तथा अकर्तव्य(जो साधना के कर्म नहीं करने योग्य हैं) की व्यवस्था (नियम में) में शास्त्र ही प्रमाण हैं। अन्य साधना वर्जित हैं। देखिए साधना चैनल शाम 7:40 से 8:40 सत् साहेब

message to the whole world


"पूरे संसार के नाम संदेश" ---------------------------- बन्दिछोड़ सतगुरूदेव रामपाल जी महाराज जी की जय आखिर क्यौं एक संत व उनके अनुयाईयो पर टूट पड़ती है पुलिस???????? आखिर क्यौं मोदी राज मे एक निर्दोष संत पर आरोप लगाये जाते हैं मगर सिद्ध नही कर पाती प्रशासन व सरकार???????????????????????????????????????? आखिर क्यौं 900 से अधिक भक्तो को जेल में डाल कर देशद्रोह का आरोप लगाया गया????????????????????????????? लगाया तो सिद्ध क्यौं नही कर पाई 16 महीने बाद भी सरकार?????????????????????? ???????????????????????????? आखिर किसके हाथ की कठपुतली है सरकार??????????????????????????????????. आखिर क्यौं आँसुगैस के गोले दाग कर मार दिये बहनें व बच्चे हरियाणा सरकार ने???? ??? ????? ??? ?? ? ??????????????. आखिर जो भी हुआ, सब के सामने हुआ!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! उत्तर को लपेटने की कोशिश सरकार द्वारा जारी है!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! भ्रमित करने की (साजिश) कोशिश सरकार द्वारा जारी है!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!. फिर भी सत्य उजागर है!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! संसार का सबसे काला दिन जिसने संसार का इतिहास ही बदल दिया 18 Nov 2014 प्रात:10 बजकर 30 मिनट तक सब ठीक था. मगर उसके कुछ देर बाद से शुरू होकर शाम 4:00 बजे तक चलने वाली बर्बरता ने पूरे भारत व संसार को नरकता की और धकेल दिया!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!??????????? ?? ?? ?? ?? एक संत पर अत्याचार करने के कारण पुरी धरती एक बार बनने जा रही है महानरक!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! अनेक भविष्य वक्ताओ( नास्ट्रेडमस, सूरदास जयगुरूदेव, नानकजी, कबीरजी, मिस्र के पिरामिड पर अंकित भविष्य वाणी ) के अनुसार!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! एक सच्चे संत व उनके अनुयाईयो को सताया जायेगा!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! फिर इस संसार मे चारौं ओर तबाही का मंजर होगा!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! यह संसार नरक में तब्दील हो जायेगा, संसार के 1/3लोग व भारत के 1/2 लोग उस तबाही के शिकार हौगे!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! तबाही इतनी भंयकर होगी की चारौं और लाशौं के ढेर दिखाई देगे!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! समुंद्र का पानी लाल हो जायेगा!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! आपसी यूद्ध होने लगेंगे, महामारी का भयंकर प्रकोप होगा संसार में त्राहीमाम- त्राहीमाम मच जायेगी!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! इन सबको वही संत रोकने व भाग्य परिवर्तन की शक्ति रखता है. अब यदि विश्व को बरबाद होने से बचाने, सामाजिक कुरीतियो को मिटाने के लिये अपने आपको व बच्चो को सुखी बनाये रखने के लिये संतजी के अनुयाईयो की मांग " C.B.I. जाँच" को आगे बढाया जाये, नही तो संसार के बिनाश की घडी इंतजार कर रही है!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! सावधान?????????????????????????????????? ?????????? ????????? ??????? ?????? फिर मत कहना किसी ने बताया नही!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! यह लेख 100 प्रतिशत सच्चा है, तथा सभी भाई-बहिनौं तक जरूर पहुचायैं जितना हो सके फोरवर्ड करैं. संसार को सबको व खुद को बचाने का यही एकमात्र यही रास्ता है!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! सत साहेब ------------------------------- 100% सफलता पाने के लिए अवश्य पढे, परमात्मा की मुफ़्त सेवा का मौका न चूकैं. फ्री पुस्तक के लिए मेरे मेसेज बौक्स में कंटैकट करें या फ्री डाउनलोड करें. Must read "GYAN GANGA" book ,available in all major languages of India also in english & urdu versions. अवश्य पढिये "ज्ञान गंगा" बुक. सभी प्रमुख भारतीय भाषाओ में और अँग्रेजी व उर्दू में भी उपलब्घ ..... GYAN GANGA ( ज्ञान गंगा) डायरेक्ट डाउनलोड लिन्क फ़ौर ईच बूक..... और जानियॆ 100% सत्य आध्यात्मिक तत्वज्ञान... Gita Tera Gyan Amrit http://www.jagatgururampalji.org/click.php?id=1 (1.85 ) देखिए साधना चैनल शाम 7:40 से 8:40

आप शिक्षित हो you are educated.


जागो और सवाल करो इन पाखंडी धर्मगुरुओं से-☄☄ जो इन बिकाऊ मीडिया चैनलो पर दिन रात पागलो की तरह सुनी सुनाई बाते भोंकते रहते है जिनकी बातो का ना कोई सार है ना सारांश। (1)पूछो इन पाखंडियो से जब द्वापर युग में वेदव्यास सहित सभी ऋषि मुनियो ने राजा परीक्षित को ये कहकर भगवत की कथा सुनाने से इनकार कर दिया था कि हम ये कथा सुनाने के अधिकारी नहीं है तो फिर इस कलयुग में तुम्हे किसने भागवत और रामायण का पाठ करने का लाइसेंस दे दिया। (2)पूछो इन पाखंडियो से जब तुम्हारे तीनो भगवान् ब्रह्मा विष्णु महेश स्वयं कह रहे है कि हमारी जन्म और मृत्यु होती है हम पूर्ण भगवान् नहीं है, तो फिर पूर्ण परमात्मा कौन है,कैसा है,कहां रहता है और कैसे मिलता है! (श्री मद् देवी भागवत देवी पुराण 6 वां अध्याय, तीसरा स्कन्द, पेज नंबर 123,) (3)पूछो इन पाखंडियो से जब भगवद् गीता जी मना कर रही है कि व्रत करने वाले, श्राद्ध निकालने वाले और देवी देवताओं की पूजा करने वालो को ना कोई सुख होता है ना ही मरने पर उनकी गति (मोक्ष) होती है। ( 6 वां अध्याय 16 वां श्लोक) (4)पूछो इन पाखंडियो से जिन 33 करोड़ देवी देवताओ को श्री लंका के राजा रावण ने अपनी कैद में डाल रखा था फिर क्यों सदियों से हमसे बेबस देवी देवता पूजवाते आ रहे हैं। (5)पूछो इन पाखंडियो से जिस स्वर्ग के राजा इंद्र ने, रावण ने स्वर्ग पर हमला करके उसे हराने पर अपनी पुत्री की शादी रावण के बेटे मेघनाथ से करके अपने प्राणों की रक्षा की। फिर किसलिए हमें मारने के बाद स्वर्ग भेजने की बात करते हैं। (6)पूछो इन पाखंडियो से, जब दशरथ पुत्र रामचंद्र का जन्म त्रेता युग में हुआ तो फिर सतयुग में राम कौन था। (7)पूछो इन पाखंडियो से श्री कृष्ण का जन्म आज से 5500 वर्ष पहले द्वापर युग में हुआ था । जबकि त्रेता व् सतयुग के इंसान तो जानते भी नहीं थे कि कृष्ण कौन है ! फिर ये पूर्ण भगवान् कैसे हुए! (8)पूछो इन पाखंडियो से ये कहते है कि वेदों में भगवान् की महिमा है। फिर वेदों में कबीर (कविर्देव) के अलावा 33 करोड़ देवी देवताओ, राम, कृष्ण, व् ब्रह्मा विष्णु महेश दुर्गा किसी का भी नाम तक क्यों नहीं है! (9)पूछो इन पाखंडियो से गीता जी अध्याय नंबर 11 के श्लोक 32 मे श्री कृष्ण जी कहते है की अर्जुन मैं काल हुं और सबको खाने आया हुं । श्री कृष्ण अपने को काल कह रहा है फिर ये पाखंडी उसे जबरदस्ती भगवान् क्यों बना रहे है। और भी ना जाने कितने सवाल जिनके जवाब इनके पास नहीं है। अब तक तो आपजी भी समझ चुके होंगे कि संत रामपाल जी के सामने आकर ज्ञान चर्चा करने की क्यों इनकी हिम्मत नहीं होती है। आपजी इन पाखंडियो से पूछेंगे या नहीं, ये तो आपका अपना फैसला होगा। लेकिन हिन्दुस्तान का नागरिक होने के नाते मैं आपसे पूछता हुं। यदि आपजी ने अब भी विचार नहीं किया तो आप पढ़कर भी अनपढ़ रहे। इस शिक्षा से कमाया हुआ धन आपके साथ कभी नहीं जायेगा लेकिन पूर्ण संत की शरण लेकर कमाया भक्ति धन कई गुना होकर आपजी के साथ जायेगा। जब पृथ्वी पर पूर्ण संत आ चुका है तो मत फंसो इन पाखंडियो के जाल में यदि फसे हुए हो तुरंत निकल जाओ वहां से वरना ये स्वयं तो नर्क में जायेंगे ही जायेंगे तुम्हे भी साथ लेकर जायेंगे। और तुम्हारे बच्चों को भी तैयार कर जायेंगे। यदि संत रामपाल जी को जेल में देखकर आप जी को अभी भी शंका हो तो याद करलो त्रेता में रामचंद्र को भी 14 वर्ष तक जेल काटनी पड़ी थी। सीता जी को भी 12 वर्ष तक भूखी प्यासी रावण की जेल काटनी पड़ी थी। द्वापर में श्री कृष्ण का तो जन्म ही जेल में हुआ था। यदि आप इसे उनकी लीला कहते हो तो कोई बड़ी बात नहीं आने वाले समय में संत रामपाल जी का भी इतिहास बन जायेगा। लेकिन उनके चले जाने के बाद उनके आश्रमो में वे नहीं मिलेंगे केवल पश्चाताप मिलेगा। लेकिन अभी समय है। जाग जाओ औरों को भी जगाओ भगवान् आएगा तो कोई सींग लगाकर नहीं आएगा जो अलग ही दिखाई दे। उसे ज्ञान के आधार से पहचानने के लिए ही तो आज आपजी को उसने शिक्षित किया है। 🏻पुनःप्रार्थना है चिंतन अवश्य कीजिये व् औरों को भी इस मैसेज के माध्यम से इन पाखंडियो के पाखंड से सचेत कीजिये।......

गीता ज्ञान दाता कौन???


Must read ========= प्रश्न: गीता का ज्ञान किसने दिया। प्रमाण सहित बताऐं - उत्तर: गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण जी ने नहीं, बल्कि उनके शरीर में सूक्ष्म रूप से प्रेतवत् प्रवेश करके उनके पिता "काल रूपी ब्रम्ह" ने दिया। काल भगवान, जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का प्रभु है, उसने प्रतिज्ञा की है कि मैं अपने व्यक्त रूप में (मानव सदृष्य अपने वास्तविक रूप में) सबके सामने कभी नहीं आऊँगा। (गीता 7.23) उसी ने सूक्ष्म शरीर बना कर प्रेत की तरह श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके पवित्र गीता जी का ज्ञान कहा।जिसे पूर्ण ब्रम्ह के पूर्ण संत के सिवा कोई नहीं जान सका। प्रमाण: विष्णु पुराण में दो जगह प्रकरण है कि काल भगवान महाविष्णु रूप में कहता है कि मैं किसी और के शरीर में प्रवेश कर के कार्य करूंगा। 1. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित), चतुर्थ अंश, अध्याय दूसरा, श्लोक 26 में पृष्ठ 233 पर विष्णु जी (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) ने देव तथा राक्षसों के युद्ध के समय देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करके कहा है कि मैं राजऋषि शशाद के पुत्र पुरन्ज्य के शरीर में अंश मात्र अर्थात् कुछ समय के लिए प्रवेश करके राक्षसों का नाश कर दूंगा। 2. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) चतुर्थ अंश, अध्याय तीसरा, श्लोक 6 में पृष्ठ 242 पर श्री विष्ण जी ने गंधर्वाे व नागों के युद्ध में नागों का पक्ष लेते हुए कहा है कि “मैं (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) मानधाता के पुत्र पुरूकुत्स में प्रविष्ट होकर उन सम्पूर्ण दुष्ट गंधर्वो का नाश कर दूंगा”। 3. श्रीकृष्ण जी काल नहीं थे। वे विष्णु जी के अवतार थे।अगर वे गीता ज्ञान बोलते तो अ.11.32 में यह नहीं कहते कि "मैं काल हूँ" और सबका नाश करने के लिए प्रकट हुआ हूँ। वे तो अर्जुन के समक्ष प्रकट हीं थे।और विष्णु जी का अंश थे जो काल नहीं हैं।इसका सीधा मतलब हुआ कि गीता का ज्ञान "काल ब्रम्ह" ने दिया श्रीकृष्ण जी ने नहीं। 4. तीनों देव ब्रम्हाजी,विष्णुजी एवं शिवजी की माता भगवती दुर्गा जी है। इसीलिए इन्हें अष्टांगी, प्रकृति, त्रिदेव जननी आदि नामों से भी जाना जाता है। इसलिए वे विष्णु जी के अवतार श्रीकृष्ण जी के भी माता हुए।अतः प्रकृति यानि दुर्गाजी श्रीकृष्णजी की पत्नी नहीं हो सकती।क्योंकि वे इनकी माता हैं। परंतु गीता 17.3-5 में गीता ज्ञान दाता ने प्रकृति यानी दुर्गा जी को अपनी पत्नी बताया हैं।जिससे पुनः स्पष्ट हो जाता है कि गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण जी ने नहीं दिया।बल्कि उनके पिता काल ब्रम्ह ने दिया। प्रमाण: गीता 17.3-5 "इस लोक में जितने भी जीव हैं प्रकृति (दुर्गा) तो उनकी माता है और मैं (गीता ज्ञान वक्ता) उनकी योनि में वीर्य स्थापित करने वाला पिता हूँ"। इस श्लोक से प्रमाणित हो जाता है कि a). श्रीकृष्णजी अर्थात् विष्णुजी जी की माता प्रकृति यानी दुर्गा जी है। b) उनके पिता ब्रम्ह हैं। काल रूपी ब्रम्ह। जिन्हें महाविष्णु, महाब्रम्हा, महाशिव या सदाशिव के नाम से भी जाना जाता है।जो त्रिदेव यानी ब्रम्हा विष्णु, एवम् शिव के पिताजी हैं। c). गीता का ज्ञान ब्रम्ह यानी कालरूपी ब्रम्ह ने दिया जो अ.17.3-5 में दुर्गा जी को अपनी पत्नी बता रहा है। अ. 8.13 में अपने को ब्रम्ह बता रहा जबकि अ. 11.32 में अपने की काल कहा है। अधिक जानकारी के लिए पढ़े ज्ञान गंगा पुस्तक या सुने साधना टी वी प्रति दिन सायं 7.40 से 8.40 तक। 100% सफलता पाने के लिए अवश्य पढे, परमात्मा की मुफ़्त सेवा का मौका न चूकैं. फ्री पुस्तक के लिए मेरे मेसेज बौक्स में कंटैकट करें या फ्री डाउनलोड करें. Must read "GYAN GANGA" book ,available in all major languages of India also in english & urdu.go to www.jagatgururampalji.org

क्यों नहीं बोलना चाहिए HAPPY NEW YEAR


क्यों हैप्पी न्यू ईयर नही बोलना चाहिए? आइये अब आध्यात्मिक तरीके से इसे समझते हैं हैप्पी न्यू ईयर,गुड मॉर्निंग,गुड नाईट या किसी को आशिर्वाद न देने में हमारा फायदा:- सतयुग द्वापर त्रेता में हमारे पूर्वज नेक नियति से रहते थे और ज्यादातर परमात्मा से डरने वाले होते थे । इसलिए जो भी भगती वृद्धि उन्हें उनके गुरुओं द्वारा बताई जाती वो उस विधि अनुसार तन मन से समय मिलते ही उसमे लगे रहते थे। क्षमा दया दान विवेक सत्यवादिता ये उस समय के लोगों के आम गुण थे।ॐ नाम तक की निस्वार्थ भगति करने के कारण उनमे जुबान सिद्धि आ जाती थी।श्राप और आशिर्वाद ये उन्ही युगों से चली परम्परा है। वो अगर किसी बीमार के सर पे हाथ रख के ये भी कह देते थे के कोई नही ठीक हो जायेगा तो वो बीमार आदमी राहत महसूस करता था। और हम आज लगभग सभी गुणों से हिन् हो चुके हैं। भगती की बात करते ही आजकल लोग चिडते हैं और परम्परा ढ़ोह रहे हैं हम उन युगों की। वास्तव में आज भी बेसक हमारे पास इस जन्म की भगती कमाई नही है लेकिन कई बार हम पिछले जन्मों की कमाई लेकर पैदा होते हैं और उसे हम किसी को गुड मॉर्निंग कह के ,आशिर्वाद दे के और किसी को हैप्पी न्यू इयर कह के उसको भी बाँट देते हैं।ठीक वैसे ही जैसे किसी पानी के भरे गड़े में निचे छेद कर दिया जाये और पानी डाला ना जाये तो वो कितने दिन चलेगा।वो पिछली पूण्य कमाई खर्च होते ही हमारे बुरे दिन शूरू हो जायेंगे। वरना विचार करें के क्या हमारे हैप्पी न्यू इयर कहने से अगले का पूरा साल खुशी से गुजर जायेगा?। नही, क्योंकि ये पावर तो सिर्फ और सिर्फ पूर्ण परमात्मा या उनके भेजे किसी संत के पास ही हो सकती है क्योंकि उनकी पावर खत्म नही होती।हमे अपनी भलाई और वापिस सतलोक गमन जहां से हम सभी आये हैं वहां जाने के लिए ये पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही परम्पराएँ छोड़नी होंगी ,सत्य साधना की खोज करनी होगी। और वो सत्य साधना आजकल बड़ी ही आसानी से उपलब्ध है जो संत रामपाल जी महाराज दवारा 7:40pm से 8:40pm तक साधना टीवी पे दी जाती है। सत साहेब

पूजा के योग्य कौन है? Method of worship


पुण्यात्माओं भक्ति की शुरूवात करने से पहले हमें ये जांच लेना चाहिये की हम जिस को भगवान् मानकर पूज रहे है क्या वो वास्तव में भगवान् है और हमें वे सारे सुख दे सकता है जो हमें चाहिए। 1. जब रामचंद्र जी का राज्य सुख भोगने का समय आया तो उनको स्वयं को 14 वर्ष का वनवाश हो गया। गर्मी सर्दी सहनी पड़ी खाने को समय पर खाना नहीं मिलता था। रहने को टूटी हुई से झोपड़ी बनानी पड़ी जंगली जानवरो का सदा भय बना रहता था। आदि। सोचे........जब रामचंद्र जी स्वयं राज का सुख नहीं भोग सके तो आपजी को कहा से सुख दे सकते है। 2. वनवास में जाते वक़्त उनके माता पिता दशरथ जी व् कौशल्या जी उनको जाने के लिए मना कर रहे थे। लेकिन माता पिता की आज्ञा ना मानकर वे जबरन जंगल में चल दिए और पीछे से उनके पिता का निधन हो गया और माता जी लगभग पागल सी हो गई थी। सोचे.......... रामचंद्र जी बचपन में 4 साल से लेकर 18 वर्ष तक तो सृष्टिकर्ता वाल्मीकि जी के आश्रम में बाण विधा सिखने गए और वहीँ रहे। उसके उपरान्त घर आये तो 14 वर्ष का वनवाश हो गया। वनवास से वापस आये तो उससे पहले बाप की मौत हो चुकी थी व् माता आधी पागल हो चुकी थी। अर्थात जब रामचंद्र जी अपने माता पिता का सुख नहीं भोग सके तो उनकी भक्ति से हमें कैसे माँ बाप का सुख हो सकता है 3......... वनवास के दौरान सीता जी को रावण उठा ले गया अर्थात भगवान् की औरत को एक आदमी उठा ले गया (रावण केवल लंका देश जा एक राजा था और रामचंद्र जी भगवान् विष्णु के अवतार अर्थात स्वयं भगवान्) सीता 10 साल तक भूखी प्यासी रावण से नौ लखाबाग में रही उसके बाद युध्द करके सीता को अयोध्या लाये तो 1 साल बाद एक धोभी के कहने से गर्भवती सीता को जंगल में निकाल दिया और सीता आजीवन जंगल में ही रही। सोचे......... रामचंद्र जी स्वयं पत्नी का सुख नहीं भोग पाये तो उनकी भक्ति से हमें कैसे पत्नी सुख मिल सकता है। 4............ 14 वर्ष के वनवास के समय अपने 2 भाईओ भरत व् शत्रुधन से दूर रहे। और जंगल में ही सीता जी ने लव व् कुश नामक दो बच्चों को जन्म दिया जो आजीवन जंगल में ही उनसे दूर रहे कभी अयोध्या में नहीं आये। सोचे........ रामचंद्र जी स्वयं अपने भाईओ व् पुत्रो का सुख नहीं भोग सके और ना उनको सुख दे सके हो हमें क्या दे सकते है 5......... लंका से सीता को लाते वक़्त राम को सीता के चरित्र पर शंका हुई और सीता को सबके सामने अग्नि परीक्षा देने को कहा । सीता ने अग्नि परीक्षा दी और पवित्र साबित हुई उसके बाद राम ने उसको अपनाया और फिर एक धोबी के कहने मात्र से घर से निकाल दिया। सोचे...... रामचंद्र जी ने अग्नि परीक्षा लेने के बाद भी अपनी पत्नी पर विश्वास नहीं किया। वे 2 रुपए की पांच अगरबत्ती जलाने मात्र से आप और हम पर कैसे विश्वास कर लेंगे। 6......... सीता जी को रावण की कैद से छुड़वाने के लिए राम रावण युध्द में 18 करोड़ सेना का कत्ले आम हुवा था (इतिहास गवाह है) जिसमे सुग्रीव की वानर सेना व् जामवंत की भालू सेना से लेकर भील व् आदिवासी आदि शामिल थे। सोचे......... राम रावण युध्द कोई धार्मिक व् सीमाओ का युध्द नहीं था की जिसमे इतनी सेना मरवाई जाये। अगर भगवान् थे तो अपनी पत्नी को स्वयं छुड़वाकर लाते जिस सीता को छुड़वाने के लिये 18 करोड़ औरतो को विधवा बना दिया दिया करोडो बच्चों को यतीम बना दिया अंत में उसी सीता को जंगल में धक्के खाने के लिए छोड़ दिया। अगर सीता को वापस जंगल में ही छोड़ना था तो क्यों 18 करोड़ सेना का नाश करवाया वो रावण की जेल में ही ठीक थी जहा समय पर खाना तो मिल रहा था। 7......... बाली और सुग्रीव दोनों भाइयो का आपस का सम्पति का विवाद चल रहा था रामचंद्र जी ने धोखे से पेड़ की औट लेकर बाली को बाण से मारा और सुग्रीव को राज गद्दी पर बैठाया। क्यों। सोचे....... बाली को एक वरदान मिला हुवा था यदि कोई आपके सामने होकर युध्द करेगा तो उसकी आधी शक्ति आपके अंदर आ जायेगी और आपको कभी जीत नहीं पायेगा। रामचंद्र को इस बात का डर था की मेरी आधी शक्ति बाली में जायेगी और मै हार जाऊंगा इस लिए धोखे से बाण मार।। बताये बाली भगवान् हुवा या रामचंद्र भगवान् हुवा। सोचे..... हम रामचंद्र जी को मर्यादा पुरषोतम कहते है । एक व्यक्ति को धोखे से पेड़ की औट लेकर मारना कहा की मर्यादा है। सोचे...... सीता जैसी पवित्र औरत को एक धोबी के कहने से घर से निकालना कहा की मर्यादा है। क्या आज आप ऐसा कर सकते है। भगवान् होकर एक औरत के लिए 18 करोड़ औरतो को विधवा बना दिया उनके बच्चों को यतीम बना दिया ये कहा की मर्यादा है। सोचे....... माता पिता के रो रो कर मना करने पर की बेटा वनवास में मत जाओ लेकिन उनकी एक ना सुनना ये कहा की मर्यादा है। सोचे........ सीता के जिद्द कर लेने पर की मुझे ये मृग जिन्दा या मुर्दा लाकर दो। भगवान् होकर उस मासूम व् लाचार पशु को मारने के लिए निकल पड़ा ये कहा की मर्यादा है। सोचे....... रामचंद्र जी द्वारा अश्मेघ में छोड़े गए घोड़े को जब लव व् कुश ने पकड़ लिया तो पूरी अयोध्या की सेना लेकर उन माशूम बच्चों को मारने के लिए निकल पड़ना कहा की मर्यादा है। सोचे..... जब लव व् कुश ने रामचंद्र सहित पूरी सेना को युध्द में हरा दिया टी अपनी हार की शर्मींदगी से वापस अयोध्या ना क जाकर सरयू नदी में राम और लक्ष्मण कूद कर आत्म हत्या कर ली। (इतिहास गवाह है ) सोचे...... आज ये पैसो के लालची नकली पंडित व् गुरु कह देते है रामचंद्र जी ने सरयू नदी में जीवित समाधि लेली और कथा का समापन कर देते है। अरे पैसे के लालची मूर्खो उल्टी सीधी कथा कहानी सुनाकर लोगो को पागल बनाकर अपना पेट भरने वाले मूर्खो अगर जीवित समाधी लेना इतना आशान है तो आप भी लीजिये जीवित समाधी क्योंकि आप रामचंद्र के भक्त हो तो आपको भी उनका ही अनुसरण करना चाहिए और अंत में किसी नदी या गंगा जी में या जमीन में खडडा खोदकर रामचंद्र जी की तरह जीवित समाधी लेनी चाहिए तभी तो आपका मोक्ष होगा।क्योंकि आपके भगवान् का भी तो इसी तरह हुवा था। दोस्तों पहले हमारे पूर्वज अशिक्षित थे और पढ़ने का ठेका केवल इन ब्राह्मणों ने ही ले रखा था। इन्होंने हमारे सद् ग्रंथो को जैसा आधा अधूरा समझा वैसा हमारे अनपढ़ पूर्वजो को सुना कर दान दक्षिणा लेकर अपना पेट पालते थे। लेकिन अब इनकी पोल खुलने लगी है आज हर आदमी शिक्षित हो रहा है अपने सद् ग्रंथो की सच्चाई व् उनमे वास्तव में क्या ज्ञान छुपा है पढ़ व् समझ रहा है। अब शिक्षित समाज इनके पाखंड व् आडम्बरो में नहीं आने वाला है। विशेष। आज हम किस ख़ुशी में दीवाली मनाये। 😔😔😔😔😔😔😔 ? क्या सीता ने कभी दीवाली मनाई ? क्या राम ने कभी दीवाली मनाई ? क्या उनके माता पिता ने कभी दीवाली मनाई ? क्या उनके खानदान में किसी ने दीवाली मनाई 😄😄😄😄😄😄😄😄😄 जरा सोचे क्या हम वास्तव में उस परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ रचना मानव है मानव वो है जिसमे मानवता हो दया प्रेम हो लेकिन आज के दिन। हम हजारो के पटाखे फोड़ते समय आनंद का अनुभव करते है और किसी जरूरत मंद के मदद मांगने पर कहते है अभी हाथ टाइट चल रहा है सारे नियम कायदे कानूनों को टाक में रखकर पर्यावरण की ऐसी की तैसी कर देंगे। और पर्यावरण दिवस पर हरे हरे पोधो के बैनर हाथ में लेकर सड़को पर लोगो को सन्देश देते फिरते है आज लोगो के घर घर जाकर गले मिलते है प्यार प्रेम से रहने के वादे करते है। और अगले ही दिन सड़को पर जरा से साइड की बात को लेकर हाथा पाई करते है। लक्ष्मी की फ़ोटो खरीद कर पूजा करते है धन सम्पदा के लिए। अगले ही दिन उस लक्ष्मी (25 रुपए) को बेच देते है ठेके वाले को दारु के एक पव्वे के लिए। 🙈आज का दिन पैसे वालो के लिए दीवाली और गरीब के लिए दिवाला है🙈

56 करोड़ यादव कटकर मर गये


" श्री कृष्ण जी के समक्ष सभी यादव आपस में लड़कर मर गए थे जो कुछ बचे थे,उनको स्वयं श्री कृष्ण जी ने मूसलों से मर डाले। (प्रमाण:-विष्णु पुराण अ.37 पांचवा अंश पृष्ठ 409 से 414 तक) एक मछियारे शिकारी ने श्रीकृष्ण जी के पैर के तलुए में विषाक्त तीर मारकर वध किया। श्रीकृष्ण जी के शरीर का द्वारिका से बाहर वहीँ पर अंतिम संस्कार किया था ।उनके शरीर को गड्ढा खोदकर पांडवों ने दबाया था। उस स्थान पर वर्तमान में श्री द्वारकाधीश का मंदिर बना है । कुछ समय बाद श्रद्धालु उस यादगार को देखने जाने लगे।फिर वहां पर पूजा प्रारंभ हो गई । वि.स 1505 (सन 1448) में कबीर परमेश्वर जी द्वारिका में गए।समुद्र के किनारे जहाँ गोमती नदी सागर में आकर मिलती है,उसके पास एक बालू रेत के टीले(कोठा)पर अर्थात मिट्टी के ढेर पर बैठकर तीर्थ भ्रमण पर आने वाले श्रद्धालुओं को तत्व ज्ञान सुनाया करते थे । परमेश्वर कबीर जी प्रश्न करते थे कि आप किसलिए आए हैं ? उत्तर होता था कि > द्वारिकाधीश के दर्शन करने आए है।उनकी नगरी को देखने आए है।भगवान के आशीर्वाद लेने आए है । परमेश्वर कबीर जी कहा करते:- एक वैध था और वह नब्ज पकड़ कर रोग जान लेता था।ओषधि देकर स्वस्थ कर देता था। उसकी मृत्यु के उपरांत वैध के शरीर को जमीन में दबा कर अंतिम संस्कार कर दिया।उस स्थान पर एक मंदिर बनाकर यादगार बना दी।यदि वैध की मूर्ती से कोई उपचार के लिए प्रार्थना करे तो क्या होगा ? श्रोताओं का एक सुर में उत्तर :- मूर्ति वैध वाला कार्य थोड़े ही करेगी । प्रश्न :- परमेश्वर प्रश्न करते थे तो उस व्यक्ति को क्या करना चाहिए ? उत्तर श्रोताओं का :- किसी जीवित वैध के पास जाकर अपनी जीवन रक्षा करनी चाहिए, यही उचित है । परमेश्वर कबीर जी कहा करते थे कि हे भोले श्रद्धालुओ!आप इस श्री कृष्ण त्रिलोकी नाथ की मूर्ति से क्या मांगने आये हो ? क्या यह श्री कृष्ण जी की मूर्ति आप का कल्याण कर सकती है ? उत्तर :- कुछ आश्चर्य करते कुछ कहते कि हम गलत कर रहे है । कुछ नाराज होकर उठ जाते । परमात्मा कबीर जी कहा करते थे कि आप द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण की मूर्ति के दर्शन से कल्याण की अपेक्षा कर के आए हो।यहाँ पर श्री कृष्ण का ही सर्वनाश हो गया।आपको क्या प्राप्ति होगी? आत्म कल्याण तथा सांसारिक सुख प्राप्त करना है तो में आप जी को वह शास्त्रानुकूल भक्ति बताऊंगा जिससे आप का कल्याण संभव है । इस प्रकार सत्य की समजकर भ्रमें हुए श्रद्धालुओ को यथार्थ भक्ति प्राप्त हुई । गरीबदास जी महाराज जी ने अपनी अमृतवाणी में कहा है कि:- "मेले ठेले जाइयो , मेले बड़ा मिलाप । पत्थर पानी पूजते, कोई साधू संत मिल जात।। जहाँ बैठ कर परमेश्वर कबीर जी सदोपदेश किया करते थे । उस स्थान पर एक गोलाकार चबूतरा (कोठा) बना रखा है । कहा जाता है कि आज तक सन 1448 से सन 2015 (567) तक उस बालू रेत के टीले (कोठे = चबूतरें नुमा गोल चक्र ) को समुद्र की लहरें ने छुवा भी नहीं। समुद्र में ज्वार भाता आता है । तब भी समुद्र की लहरें उस ओर नहीं जाती । यह कबीर कोठा द्वारिकाधिश के मंदिर के बगल में है ।

कबीर वाणी


सत् साहेब सतगुरु देव की जय Kabir Is God- सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान। झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।। -गरीबदास जी और संत सब कूप हैं, केते झरिता नीर। दादू अगम अपार है, दरिया सत्य कबीर।। -दादु दयाल जी वाणी अरबो खरवो, ग्रन्थ कोटी हजार। करता पुरुष कबीर, रहै नाभे विचार।। -नाभादास जी साहेब कबीर समर्थ है, आदी अन्त सर्व काल। ज्ञान गम्या से देदीया, कहै रैदास दयाल॥ -रैदास जी नौ नाथ चौरसी सिद्धा, इनका अन्धा ज्ञान। अवीचल ज्ञान कबीर का, यो गति विरला जान॥ -गोरखनाथ जी खालक आदम सिरजिआ आलम बडा कबीर॥ काइम दिइम कुदरती सिर पीरा दे पीर॥ सयदे (सजदे) करे खुदाई नू आलम बडा कबीर॥ -नानक जी बाजा बाजा रहितका, परा नगरमे शोर। सतगुरू खसम कबीर है, नजर न आवै और॥ -धर्मदास जी सन्त अनेक सन्सार मे, सतगुरू सत्य कबीर। जगजीवन आप कहत है, सुरती निरती के तीर॥ -जगजीवन जी तुम स्वामी मै बाल बुद्धि, भर्म कर्म किये नाश। कहै रामानन्द निज ब्रह्म तुम, हमरा दुढ विश्वास।। -रामानन्द जी कबीर इस संसार को, समझांऊ के बार । पूंछ जो पकङे भेड़ की, उतरया चाहे पार ॥ -कबीर साहेब** सत् साहेब..

संत रामपाल जी पर लगे आरोप बेबुनियाद

हिम्मत है तो मेरे गुरु पर लगे आरोप सिद्ध करके दिखाओ हिम्मत है तो मेरे परमेश्वर द्वारा दिए ज्ञान को गलत साबित करके दिखाओ अरे मूर्खों :- समझो दिमाग का प्रयोग करो पूरे ब्रह्माण्ड के धर्म गुरुओं को ललकारने वाला सभी धर्मों के गर्न्थो को खोलकर संगत को शिक्षित करने वाला प्रमाण सहित धर्मगुरुओं को गलत साबित करने वाला छाती ठोक कर अपने आप को परमेश्वर का दूत्त कहने वाले को कोई जेल में कैसे बन्द कर सकता है ? या तो कोई कारण है जिसे ना तुम समझ पाये और ना ज्योति निरंजन जब जगत गुरु जेल से बाहर आएंगे तुम भी पछताओगे और तुम्हारा आका भी रोहतक वाली जिस जेल में सन्त रहा वहां से जेल को ही ट्रांसफर करना पड़ा आज वहां पार्क है । फिर हिसार वाली जेल भी कहाँ रह पावेगी ? खट्टर फटर की तो विसात ही क्या ? हमारी लड़ाई ज्योति निरंजन भगवान से हैं मेरी लड़ाई अज्ञान से है और आखिर जीत मेरी है मेरी संगत की है। सत साहेब

बुधवार, 20 अप्रैल 2016

भवसागर के पक्षी। There are three types of whirlpool bird.


🙏🌹सत साहिब जी🌹🙏 भौसागर के पक्षी तीन प्रकार के होते है, जो कि इस प्रकार है| जगत के पक्षी 👉 ये हमेशा आकाश मे ही उडते रहते है और इनको किसी बात की चिंता और भगवान से डर नही होता है | कहावत है कि अपनी खाल मे मस्त रहते है| पर इनको ज्ञान नही है कि यहा का बाजीगर(काल) एक दिन पंख काट देगा| इनका जीवन उद्देश्य बकवास करना और मौज मस्ती मारना होता है| जगत&भगत पक्षी👉 ये सबसे अजीब पक्षी होते है भौसागर के जो कि आकाश से गिरते है खजुर मे आकर अटक जाते है| हमेशा यही सोच मे रहते है कि आकाश मे वापस जाऊ या धरती पर जाऊ| कहावत है कि धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का| दिलचस्प बात यह है कि इनका उद्देश्य ही नही होता है, खजुर पर जो बैठता है वो कभी आकाश की ओर देखता है तो कभी धरती की ओर | फिर ये भी पंख कटवा लेते है बाजीगर से| भगत पक्षी👉 ये बहुत ही अच्छे पक्षी होते है जो अपनी औकात से परिचत हो जाते है| क्योकि इनको ज्ञान हो चुका होता है कि दाना-पानी धरती पर ही मिलेगा| ना तो खजुर पर अटकने से मिलेगा और ना ही आकाश मे उडने से | इनका उद्देश्य बाजीगर के ही पंख काटकर(काल के जाल) अपने घर(सतलोक) मे जाना होता है| 🙏🌹जय बंदीछोड की🌹🙏

आज हम 21 वीं सदी में जी रहें हैं।


दोस्तों आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं आज आप शिक्षित हैं और आज आपको कोई मूर्ख नहीं बना सकता इसलिए दोस्तों स्वयं परखने की ज़रूरत है क्या सही है और क्या गलत बेहतर यही होगा और हमारा निष्पक्ष भाव होना चाहिए दोस्तों पहली बात तो बिना गुरु के भक्ति हो ही नहीं सकती और दूसरी बात इस धरती पर 100 गुरु में से 99 तो नकली, झूठे, और पाखंडी है क्योंकि इन सब का ज्ञान हमने शास्त्रों के मापदंड से मापकर देखा है और आप भी देखना चाहे देख सकते हैं निष्पक्ष भाव से, दोस्तों इस धरती पर कोई पूर्ण संत है तो वह संत रामपाल जी महाराज हैं क्योंकि उनकी बताई गई साधना शास्त्रविधि अनुसार है और 100% authentic और लाभकारी भी, बाकी सारे धर्म गुरुओं की साधना शास्त्रविरुद्ध है मित्रों यहां आपको स्वयं परखने की जरूरत है क्योंकि आज तक हम दूसरे के बहकावे में आकर मूर्ख बनते रहे। श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है, हे अर्जुन जो पुरुष शास्त्रविधि को त्याग कर मनमाना आचरण करता है मनमानी पूजाऐं करता है उसको ना सुख न तो सिद्धि और ना ही परम गति ही प्राप्त होती है इसलिए हे अर्जुन कर्तव्य और आकर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है इसलिए शास्त्र विधि अनुसार साधना करनी चाहिए

क्या आपको विज्ञान में रूचि है?


सृष्टी के सबसे बड़े वैज्ञानिक : कबीर साहेब जी ________________________________ क्या आपको विज्ञान में रूचि है? ________________________________आम आदमी की विज्ञान में रूचि हो या ना हो, लेकिन वह भी वैज्ञानिक खोजों के प्रति काफी उत्सुक रहता है. हम जिन वैज्ञानिकों या खोजों के बारे में जानते है, वह मात्र हमारे एक बह्माण्ड के आस-पास ही केन्द्रित है. लेकिन क्या आपको मालूम है...,हम जिस ब्रह्माण्ड में रहते हैं, ऐसे पूरे 21 ब्रह्माण्ड मौजूद हैं और इन 21 ब्रह्माण्डों में हमारे ब्रह्माण्ड के जैसे ही रचना मौजूद है. वहाँ भी हमारे जैसे मनुष्यों का वास है. नदी है...पहाड़ है...झरने हैं...जानवर हैं...पक्षी हैं...सब कुछ है, जो भी हमारे ब्रह्माण्ड में मौजूद है. कबीर जी के दोहे हम बड़े चाव से पढ़ते है और तारीफ भी करते है.....लेकिन क्या कभी हमने इस ओर ध्यान दिया की उन्होंने असंख्य ब्रह्माण्डों के बारे में विस्तृत जानकारी दी है. ....तो चलिये चलते हैं, उस अनंत ज्ञान की ओर, जो कबीर जी हमारे लिये छोड़ गये हैं... चलिये समझते हैं कबीर जी के उस ज्ञान को जो वर्षो से किताबों में बंद है. उस ज्ञान को बाँटा जा रहा है सतगुरू रामपाल जी महाराज के द्वारा______ जन-जन के लिये उपलब्ध ज्ञान______ इस अमृत ज्ञान की वर्षा में भींगकर आप भी तृप्त हो जायेंगे________________ *****कबीर परमेश्वर का ज्ञान : आपके लिये, आपके घर तक***** (देखना ना भलें साधना चैनल पर रोज शाम 7:40 बजे कबीर जी की अनमोल वाणियों का सार-संदेश) ///पूर्णब्रह्म सतगुरू रामपाल जी महाराज की जय/// ######सत साहेब#####

गायत्री मंत्र की सच्चाई


#गायत्री मंत्र हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध मंत्रों में से एक है। माना जाता है की ये मंत्र #तैत्तिरीय #आरण्यक नामक ग्रन्थ से लिया गया है, और यही वो ग्रन्थ है जिसमें इस मंत्र का गलत वर्णन किया गया है। जबकि वास्तविक सही मंत्र यजुर्वेद में वर्णित है, और इसके सामने #ॐ नहीं है। इस मंत्र में "ॐ" का कहीं भी कोई उल्लेख नहीं है। वास्तव में "ॐ" लगाने से ये मंत्र उनुपयोगी हो जाता है। वास्तविक मंत्र - "#यजुर्वेद अध्याय 36 मंत्र 3" #भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि, धीयो यो न: प्रचोदयात्॥ अर्थ - वेद ज्ञान दाता ब्रह्म कह रहा है की (स्व:) अपने निज सुखमय (भुव:) अंतरिक्ष अर्थात सतलोक में (भू:) स्वयं प्रकट होने वाला पूर्ण परमात्मा है। वही (सवितु:) सर्व सुख दायक सर्व का उत्पन्न करने वाला #परमात्मा है। (तत्) उस परोक्ष अर्थात अव्यक्त साकार (वरेण्यम) सर्वश्रेष्ठ (भर्ग:) तेजोमय शरीर युक्त सर्व सृष्टि रचनहार (देवस्य) परमेश्वर की (धीमही) प्रार्थना, उपासना, #शास्त्रानुकूल विधि से करें, (य:) जो परमात्मा सर्व का पालन करता है, वह (न:) हम को भ्रम रहित (धीय:) शास्त्रानुकूल सत्य भक्ति, बुद्धिमता अर्थात सदभाव से करने की (प्रचोदयात) प्रेरणा करे। पवित्र #गीता के अध्याय 8 श्लोक 13 के अनुसार "#ॐ" मंत्र केवल "ब्रह्म" की प्राप्ति का मंत्र है, और हम जानते हैं की वेदों में "परम अक्षर ब्रह्म" अर्थात "पूर्ण परमात्मा" की महिमा का वर्णन किया गया है । यजुर्वेद के इस मंत्र में भी सर्व शक्तिमान, पूर्ण ब्रह्म #कबीर परमेश्वर की प्रशंसा की गयी है, इसलिए इसके आगे ब्रह्म का मंत्र(ॐ) लगाना ऐसा है, जैसे "प्रधान मंत्री" को "मुख्य मंत्री" कह कर उनका अपमान करना। सत साहेब