गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

गीता का ज्ञान। Knowledge of the Gita.


गीता अध्याय 9 के श्लोक 25 में कहा है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने (पिण्ड दान करने) वाले भूतों को प्राप्त होते हैं अर्थात् भूत बन जाते हैं, शास्त्रानुकूल(पवित्र वेदों व गीता अनुसार) पूजा करने वाले मुझको ही प्राप्त होते हैं अर्थात् काल द्वारा निर्मित स्वर्ग व महास्वर्ग आदि में कुछ ज्यादा समय मौज कर लेते हैं। विशेष:- जैसे कोई तहसीलदार की नौकरी(सेवा-पूजा) करता है तो वह तहसीलदार नहीं बन सकता। हाँ उससे प्राप्त धन से रोजी-रोटी चलेगी अर्थात् उसके आधीन ही रहेगा। ठीक इसी प्रकार जो जिस देव (श्री ब्रह्मा देव, श्री विष्णु देव तथा श्री शिव देव अर्थात् त्रिदेव) की पूजा (नौकरी) करता है तो उन्हीं से मिलने वाला लाभ ही प्राप्त करता है। त्रिगुणमई माया अर्थात् तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की पूजा का निषेध पवित्र गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 तक में भी है। इसी प्रकार कोई पितरों की पूजा (नौकरी-सेवा) करता है तो पितरों के पास छोटा पितर बन कर उन्हीं के पास कष्ट उठाएगा। इसी प्रकार कोई भूतों(प्रेतों) की पूजा (सेवा) करता है तो भूत बनेगा क्योंकि सारा जीवन जिसमें आशक्तता बनी है अन्त में उन्हीं में मन फंसा रहता है। जिस कारण से उन्हीं के पास चला जाता है। कुछेक का कहना है कि पितर-भूत-देव पूजाऐं भी करते रहेंगे, आप से उपदेश लेकर साधना भी करते रहेंगे। ऐसा नहीं चलेगा। जो साधना पवित्र गीता जी में व पवित्र चारों वेदों में मना है वह करना शास्त्र विरुद्ध हुआ। जिसको पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में मना किया है कि जो शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण (पूजा) करते हैं वे न तो सुख को प्राप्त करते हैं न परमगति को तथा न ही कोई कार्य सिद्ध करने वाली सिद्धि को ही प्राप्त करते हैं अर्थात् जीवन व्यर्थ कर जाते हैं। इसलिए अर्जुन तेरे लिए कर्तव्य (जो साधना के कर्म करने योग्य हैं) तथा अकर्तव्य(जो साधना के कर्म नहीं करने योग्य हैं) की व्यवस्था (नियम में) में शास्त्र ही प्रमाण हैं। अन्य साधना वर्जित हैं। देखिए साधना चैनल शाम 7:40 से 8:40 सत् साहेब

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