गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

56 करोड़ यादव कटकर मर गये


" श्री कृष्ण जी के समक्ष सभी यादव आपस में लड़कर मर गए थे जो कुछ बचे थे,उनको स्वयं श्री कृष्ण जी ने मूसलों से मर डाले। (प्रमाण:-विष्णु पुराण अ.37 पांचवा अंश पृष्ठ 409 से 414 तक) एक मछियारे शिकारी ने श्रीकृष्ण जी के पैर के तलुए में विषाक्त तीर मारकर वध किया। श्रीकृष्ण जी के शरीर का द्वारिका से बाहर वहीँ पर अंतिम संस्कार किया था ।उनके शरीर को गड्ढा खोदकर पांडवों ने दबाया था। उस स्थान पर वर्तमान में श्री द्वारकाधीश का मंदिर बना है । कुछ समय बाद श्रद्धालु उस यादगार को देखने जाने लगे।फिर वहां पर पूजा प्रारंभ हो गई । वि.स 1505 (सन 1448) में कबीर परमेश्वर जी द्वारिका में गए।समुद्र के किनारे जहाँ गोमती नदी सागर में आकर मिलती है,उसके पास एक बालू रेत के टीले(कोठा)पर अर्थात मिट्टी के ढेर पर बैठकर तीर्थ भ्रमण पर आने वाले श्रद्धालुओं को तत्व ज्ञान सुनाया करते थे । परमेश्वर कबीर जी प्रश्न करते थे कि आप किसलिए आए हैं ? उत्तर होता था कि > द्वारिकाधीश के दर्शन करने आए है।उनकी नगरी को देखने आए है।भगवान के आशीर्वाद लेने आए है । परमेश्वर कबीर जी कहा करते:- एक वैध था और वह नब्ज पकड़ कर रोग जान लेता था।ओषधि देकर स्वस्थ कर देता था। उसकी मृत्यु के उपरांत वैध के शरीर को जमीन में दबा कर अंतिम संस्कार कर दिया।उस स्थान पर एक मंदिर बनाकर यादगार बना दी।यदि वैध की मूर्ती से कोई उपचार के लिए प्रार्थना करे तो क्या होगा ? श्रोताओं का एक सुर में उत्तर :- मूर्ति वैध वाला कार्य थोड़े ही करेगी । प्रश्न :- परमेश्वर प्रश्न करते थे तो उस व्यक्ति को क्या करना चाहिए ? उत्तर श्रोताओं का :- किसी जीवित वैध के पास जाकर अपनी जीवन रक्षा करनी चाहिए, यही उचित है । परमेश्वर कबीर जी कहा करते थे कि हे भोले श्रद्धालुओ!आप इस श्री कृष्ण त्रिलोकी नाथ की मूर्ति से क्या मांगने आये हो ? क्या यह श्री कृष्ण जी की मूर्ति आप का कल्याण कर सकती है ? उत्तर :- कुछ आश्चर्य करते कुछ कहते कि हम गलत कर रहे है । कुछ नाराज होकर उठ जाते । परमात्मा कबीर जी कहा करते थे कि आप द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण की मूर्ति के दर्शन से कल्याण की अपेक्षा कर के आए हो।यहाँ पर श्री कृष्ण का ही सर्वनाश हो गया।आपको क्या प्राप्ति होगी? आत्म कल्याण तथा सांसारिक सुख प्राप्त करना है तो में आप जी को वह शास्त्रानुकूल भक्ति बताऊंगा जिससे आप का कल्याण संभव है । इस प्रकार सत्य की समजकर भ्रमें हुए श्रद्धालुओ को यथार्थ भक्ति प्राप्त हुई । गरीबदास जी महाराज जी ने अपनी अमृतवाणी में कहा है कि:- "मेले ठेले जाइयो , मेले बड़ा मिलाप । पत्थर पानी पूजते, कोई साधू संत मिल जात।। जहाँ बैठ कर परमेश्वर कबीर जी सदोपदेश किया करते थे । उस स्थान पर एक गोलाकार चबूतरा (कोठा) बना रखा है । कहा जाता है कि आज तक सन 1448 से सन 2015 (567) तक उस बालू रेत के टीले (कोठे = चबूतरें नुमा गोल चक्र ) को समुद्र की लहरें ने छुवा भी नहीं। समुद्र में ज्वार भाता आता है । तब भी समुद्र की लहरें उस ओर नहीं जाती । यह कबीर कोठा द्वारिकाधिश के मंदिर के बगल में है ।

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