परमेश्वर की रजा से "संत रामपाल जी एक ऐसा भक्त समाज तैयार कर रहे, है जिसको वास्तव में सभ्यता कहा जा सकता है, और हम खुश किस्मत है कि भारत ही वो देश बनेगा जिसका दुनिया में कोई जबाब नहीं होगा! ऐसा समाज जिस में सम्मिलित हर भक्त हर एक नियम का सम्मान करता है ।
जो उन चीजों को अपने दामन को छूने भी नहीं देता जो बुराई से भरपूर हों!
"गम भी उन से आकर कहे भाई मुझे माफ करना में गलत जगह अपना घर बनाये बैठा हूँ" ऐसा समाज जिसमें हर एक नारी का सम्मान बनावटी नहीं,ऐसा समाज जिसमें पाप नहीं,ऐसा समाज जिसमें हर एक व्यक्ति के प्रति सभ्यता का परिचय देते है, कोई भी ऐसी वस्तु नहीं जो नशे से सम्बंध रखती है! भक्तों के पाँव में रहने के लायक भी नहीं,नशा लोगों को ऐसी ऐसी चीजें करवाता है! जिसे सोचकर लोंगों का दिल दहल जाता है, लेकिन संत रामपाल जी का भक्त समाज इस नशे को ऐसे लात मारता है,जैसे कोई फुटवाल हो,क्योंकि "कहता तो हर संत है नशा छोडो लेकिन छोडता कोई नहीं"
ऐसे दिखाने के लिए आज जो भी लोग ये कह रहें है,वो ऐसे है वो वैसे हैे!"तो गौर से समझना इस बात को जो में कह रहा हूँ!"जैसे आप कोई भी चीज बाजार में खरीदने (कपडे,गहने,फ्रिज,कूलर,या कोई भी सामान)जाओ तो आप पहले पूछोगे भाई कितने का है! कैसा है कम्पनी का है या नहीं क्या आप बिना जाने बिना तहकीकात करें उसे खरीद सकते है!
जाँचोंगें परखोगे तभी तो खरीदोगे"बस में इतना ही कहना चाहता हूँ कि पहले आप संत रामपाल को समझें,जाँचें वो क्या कह रहे है! और क्यों कह रहे है!
आज भारत वर्ष में उनके ज्ञान का सामना करना किसी संत के बस की बात नहीं!
१.जब मुसलमान धर्म के प्रवक्ता डा. जाकिर नायक ने विश्व के सभी धर्म गुरूओं को चुनौती दी थी के मेरे जैसा ज्ञान किसी के पास नहीं, और है तो' ज्ञान चर्चा करो मुझसे तब सभी संत कहाँ थे अपने आप को संत कहने वालों का ज्ञान कहाँ गया था!"उस समय भारत वर्ष में केवल एक संत रामपाल जी ने उसके चैलेंज को स्वीकार किया था! पर इसकी हिम्मत नहीं हुई ज्ञान चर्चा की ।
२.भारत के ये संत' भागवत कथा माँ के पेट से सीख कर नहीं आये! इन्हों ने पढा तो वेदों और गीता से है! पर ज्ञान हमें कुछ और दे रहे है और अपने आप को ज्ञानी कह रहे है!जबकि हमारे सदग्रन्थं तो कुछ और ही कह रहें है!आप भी सही ज्ञान समझ सकते है स्वयं पंडित साधारण इन्सान ही है!क्या हम में इतनी बुध्दी नहीं!
३.आज वो समय भी है समझाने वाला भी है,मनुष्य जन्म भी है,ऐसा मौका अपने हाथ से ना खोंये अपने इसी जीवन को सफल बनाये । छोडो इस लोक को जहाँ हमेशा ये जरा(वृध्द अवस्था) मरण (मृत्यु) बना रहेगा करोडों जन्म हो गये यहाँ भटकते हुए यहाँ सबकी दुर्गती बनी ही रहेगी!जैसे हम अपने घर को छोडकर कहीं बाहर चले जाये घूमने के लिए तो वहीं के नहीं हो जाते! हमें लौट कर अपने घर वापस जाना होता है! बस इसी प्रकार हमेें अपने घर वापिस लौटना है!क्योकिं बाहर कितना भी आदमी घूम ले उसे सुख अपने घर में ही मिलता है वो सुविधा अपने घर में ही मिलती है।
"कबीर साहिब"
"अमर करू सतलोक(अमरलोक)पठाऊँ"
"तातें बंदी छोड़ कहाऊँ"
सत् साहेब..
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