🙏भगति मार्ग में सतगुरु का होना एक आवश्यक शर्त। परमात्मा की प्यारी आत्माओं, भक्ति के मार्ग में एक अत्यंत ही जरुरी और महत्वपूर्ण भूमिका होता है "गुरु" का, जिसके बगैर हम इस संसार सागर से कतई पार नहीं हो सकते। जबकि तत्वज्ञान के अभाव में अक्सर लोग कह देते है, भगत और भगवान के बीच में गुरु का क्या काम ? बस यही पर आप मार खा जाते है। गुरु महिमा के विषय में गोस्वामी तुलसी दास जी लिखते हैं:- गुरु बिन भव निधि तरई न कोई।जो विरंची शंकर सम होई ।। अर्थात् बिना गुरु के संसार सागर से कोई पार नहीं हो सकता चाहे वह ब्रम्हा व शंकर के समान ही क्यों न हो। यही नानकदेव जी कहते हैं:- गुरु की मूरत मन में ध्याना । गुरु के शब्द मंत्र मन माना ।। मत कोई भरम भूलो संसारी । गुरु बिन कोई न उतरसी पारी ।। परमात्मा प्राप्त कर चुकी मीरा बाई ने कहा है:- पायो जी मैने, राम रतन धन पायो। वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, करि कृपा अपनायो।। पायो जी मैने, राम रतन धन पायो ।। कबीर साहेब ने तो यहॉ तक बताया है :- राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हूँ भी गुरु कीन । तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन ।। फिर कहा है: गुरु बिन माला, फेरते गुरु बिन देते दान। गुरु बिन दोनों निष्फल है, चाहे पूछो वेद पुराण ।। अर्थात् गुरु के बिना किया गया जाप व् दान (भगति) सबकुछ व्यर्थ है। इसलिए भक्ति मार्ग में अब हमें बड़ी गहनता से इस विषय को समझना होगा क्योंकि अब के जो हम चूके तो न जाने कब यह नर तन मिले ना मिले। नर तन मिल भी जाए तो सतगुरु मिले ना मिले क्योंकि : गुरु - गुरु में भेद है, गुरु - गुरु में भाव।सोई गुरु नित बंदिये, जो शब्द लखावै दाव ।। अब हमारे सामने बड़ी सबसे बड़ी विडम्बना है कि हम सतगुरु की परख कैसे करें। क्यों कि हमारे यहाँ तो गुरूओं की बाढ़ सी आई हूई है। तो इस समस्या के निदान के लिए नीचे हर स्तर के गुरुओं की महिमा बताई जा रही है। जिनमें से सतगुरु को पहचानकर और उनकी सही स्थिति को जानकर अपना नैया पार लगाना है : प्रथम गुरु है पिता अरु माता | जो है रक्त बीज के दाता || हमारे माता पिता हमारे प्रथम गुरु हैं | दूसर गुरु भई वह दाई | जो गर्भवास की मैल छूड़ाई || जन्म के समय व बाद में जिसने हमारा सम्हाल किया वह हमारा दूसरा गुरु है | तीसर गुरु नाम जो धारा | सोइ नाम से जगत पुकारा || जिसने हमारा नामकरण किया वह तीसरा गुरु है | चौंथा गुरु जो शिक्षा दीन्हा | तब संसारी मारग चीन्हा || हमें शिक्षा देने वालेअध्यापक चौंथे गुरु कीश्रेंणी में है | पॉचवा गुरु जो दीक्षा दीन्हा | राम कृष्ण का सुमिरण कीन्हा || हमें अध्यात्म से जोड़ने में पॉचवे गुरु का बहूँत ही महत्वपूर्ण योगदान है क्यों कि यही वह सीढ़ी है जहॉ से हम भगवान की ओर प्रथम कदम उठाते हैं और नाना प्रकार के देवी देवताओं (३३करोंड़) को पूजना शुरू करते हैं। नाना प्रकार के व्रत जैसे चतुर्थी, नवमी, एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि व्रतों को करते हूऐ मंदिर, पहाड़, पशु, पक्षी, पेड़, पौधे पूजन के अलावा तीर्थाटन आदि करके खुद को मुक्त मानते हैं।लेकिन उपरोक्त पूजाओं का प्रमाण गीता व् वेदों में न होने से शास्त्रविरुध साधना है।जिस कारण इन पूजाओं का फल गीता जी में व्यर्थ कहा है। (गीता अ.१६ मंत्र २३-२४) इस कारण इन साधनाओं को करके भी शास्त्रविरुध् होने से भगति में हम सफल नही हो पाते। आगे छठवॉ गुरु को समझें : छठवॉ गुरु भरम सब तोड़ा, "ऊँ" कार से नाता जोंड़ा । यह गुरु हमारा भरम निवारण इस आधार पर करता है कि वेद (यजुर्वेद अ.४० मंत्र १५ व १७) और गीता (अ.८ मंत्र १३) में केवल एक "ऊँ" अक्षर ब्रम्ह प्राप्ति (मुक्ति) हेतु बताया गया है। इसके अलावा किसी अन्य देवी देवता की पूजा नही करनी चाहिए। किंतु, इनका यह भक्ति साधना भी पूर्ण लाभदायक नही है। क्योकि गीता ज्ञानदाता (ब्रम्ह) स्वयं गीता में कहता है कि तेरे और मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं (प्रमाण- गीता अ.२ मं.१२, अ.४ मं.५ व ९ तथा अ.१० मं.२)। और यह भी स्पष्ट बता दिया कि ब्रम्ह लोक पर्यन्त सब लोक पुनरावृत्ती (उत्पति विनाश) में है (अ.8 म.16) । इसलिए यह गुरू भी पूर्ण नहीं। अब सातवॉ गुरु : सातवॉ सतगुरू शब्द लखाया, जहॉ का जीव तहॉ पहूँचाया । पुन्यात्माओं, इन्हें गुरु नही, अपितु सतगुरु कहा गया है। क्योंकि इनका दिया ज्ञान व भक्ति विधि शास्त्रानुकूल होने से इस लोक और परलोक - दोनो में परम हितकारक है। यह सतगुरु हमें सदभक्ति का दान देकर व हमारा सही ठिकाना बताकर यहॉ काल/ब्रम्ह के २१ ब्रम्हांड से भी और उस पार उस सतलोक को प्राप्त करने की सतसाधना प्रदान करता है जिस मार्ग पर चलने वाला साधक जरा और मरण रुपी महा भयंकर रोग से छुटकारा पाकर उस शास्वत स्थान को प्राप्त करता है, जिस स्थान के बारे में गीता अ.१८ मं.६२ व ६६ में कहा गया है। इसी सतगुरु का संकेत गीता अ.4 के मन्त्र 34 में किया है। और यही सतगुरु ही वह बाखबर है, जिसके बारे में पवित्र कुर्आन शरीफ की सूरत फूर्कानी २५ आयत ५२ से ५९ में भी बताया गया है । अब पुन्यात्माओं, हमें इस सतगुरु/बाखबर की खोज करनी है। दुनिया के सभी संतों, महंतों, गुरुओं को इस पैमाने पर तौलकर देखें तो आपको केवल और केवल एक ही ऐसा संत नजर आएगा जिसके ग्यान का प्रत्युत्तर वर्तमान का कोई भी संत नही दे सका और वह परम संत हैं- "जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज" इस महान संत का आध्यात्मिक मंगल प्रवचन "साधना चैनल" पर प्रतिदिन सायं 07:40 से 08:40 पर प्रसारित होता है/dd direct 32/tata सकाई 191/बिग TV 655/एयरटेल 685/डिश TV 2055/जरुर सुनें और अपना कल्याण कराऐं। अब ज्यादा कुछ कहने को नही बचा।। परमात्मा कहते हैं : समझा है तो सिर धर पॉव, बहूर नहीं रे ऐसा दॉव । सत साहेब👏👏🌹🌹
गुरुवार, 21 अप्रैल 2016
Satguru be a necessary condition of the path of devotion.
🙏भगति मार्ग में सतगुरु का होना एक आवश्यक शर्त। परमात्मा की प्यारी आत्माओं, भक्ति के मार्ग में एक अत्यंत ही जरुरी और महत्वपूर्ण भूमिका होता है "गुरु" का, जिसके बगैर हम इस संसार सागर से कतई पार नहीं हो सकते। जबकि तत्वज्ञान के अभाव में अक्सर लोग कह देते है, भगत और भगवान के बीच में गुरु का क्या काम ? बस यही पर आप मार खा जाते है। गुरु महिमा के विषय में गोस्वामी तुलसी दास जी लिखते हैं:- गुरु बिन भव निधि तरई न कोई।जो विरंची शंकर सम होई ।। अर्थात् बिना गुरु के संसार सागर से कोई पार नहीं हो सकता चाहे वह ब्रम्हा व शंकर के समान ही क्यों न हो। यही नानकदेव जी कहते हैं:- गुरु की मूरत मन में ध्याना । गुरु के शब्द मंत्र मन माना ।। मत कोई भरम भूलो संसारी । गुरु बिन कोई न उतरसी पारी ।। परमात्मा प्राप्त कर चुकी मीरा बाई ने कहा है:- पायो जी मैने, राम रतन धन पायो। वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, करि कृपा अपनायो।। पायो जी मैने, राम रतन धन पायो ।। कबीर साहेब ने तो यहॉ तक बताया है :- राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हूँ भी गुरु कीन । तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन ।। फिर कहा है: गुरु बिन माला, फेरते गुरु बिन देते दान। गुरु बिन दोनों निष्फल है, चाहे पूछो वेद पुराण ।। अर्थात् गुरु के बिना किया गया जाप व् दान (भगति) सबकुछ व्यर्थ है। इसलिए भक्ति मार्ग में अब हमें बड़ी गहनता से इस विषय को समझना होगा क्योंकि अब के जो हम चूके तो न जाने कब यह नर तन मिले ना मिले। नर तन मिल भी जाए तो सतगुरु मिले ना मिले क्योंकि : गुरु - गुरु में भेद है, गुरु - गुरु में भाव।सोई गुरु नित बंदिये, जो शब्द लखावै दाव ।। अब हमारे सामने बड़ी सबसे बड़ी विडम्बना है कि हम सतगुरु की परख कैसे करें। क्यों कि हमारे यहाँ तो गुरूओं की बाढ़ सी आई हूई है। तो इस समस्या के निदान के लिए नीचे हर स्तर के गुरुओं की महिमा बताई जा रही है। जिनमें से सतगुरु को पहचानकर और उनकी सही स्थिति को जानकर अपना नैया पार लगाना है : प्रथम गुरु है पिता अरु माता | जो है रक्त बीज के दाता || हमारे माता पिता हमारे प्रथम गुरु हैं | दूसर गुरु भई वह दाई | जो गर्भवास की मैल छूड़ाई || जन्म के समय व बाद में जिसने हमारा सम्हाल किया वह हमारा दूसरा गुरु है | तीसर गुरु नाम जो धारा | सोइ नाम से जगत पुकारा || जिसने हमारा नामकरण किया वह तीसरा गुरु है | चौंथा गुरु जो शिक्षा दीन्हा | तब संसारी मारग चीन्हा || हमें शिक्षा देने वालेअध्यापक चौंथे गुरु कीश्रेंणी में है | पॉचवा गुरु जो दीक्षा दीन्हा | राम कृष्ण का सुमिरण कीन्हा || हमें अध्यात्म से जोड़ने में पॉचवे गुरु का बहूँत ही महत्वपूर्ण योगदान है क्यों कि यही वह सीढ़ी है जहॉ से हम भगवान की ओर प्रथम कदम उठाते हैं और नाना प्रकार के देवी देवताओं (३३करोंड़) को पूजना शुरू करते हैं। नाना प्रकार के व्रत जैसे चतुर्थी, नवमी, एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि व्रतों को करते हूऐ मंदिर, पहाड़, पशु, पक्षी, पेड़, पौधे पूजन के अलावा तीर्थाटन आदि करके खुद को मुक्त मानते हैं।लेकिन उपरोक्त पूजाओं का प्रमाण गीता व् वेदों में न होने से शास्त्रविरुध साधना है।जिस कारण इन पूजाओं का फल गीता जी में व्यर्थ कहा है। (गीता अ.१६ मंत्र २३-२४) इस कारण इन साधनाओं को करके भी शास्त्रविरुध् होने से भगति में हम सफल नही हो पाते। आगे छठवॉ गुरु को समझें : छठवॉ गुरु भरम सब तोड़ा, "ऊँ" कार से नाता जोंड़ा । यह गुरु हमारा भरम निवारण इस आधार पर करता है कि वेद (यजुर्वेद अ.४० मंत्र १५ व १७) और गीता (अ.८ मंत्र १३) में केवल एक "ऊँ" अक्षर ब्रम्ह प्राप्ति (मुक्ति) हेतु बताया गया है। इसके अलावा किसी अन्य देवी देवता की पूजा नही करनी चाहिए। किंतु, इनका यह भक्ति साधना भी पूर्ण लाभदायक नही है। क्योकि गीता ज्ञानदाता (ब्रम्ह) स्वयं गीता में कहता है कि तेरे और मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं (प्रमाण- गीता अ.२ मं.१२, अ.४ मं.५ व ९ तथा अ.१० मं.२)। और यह भी स्पष्ट बता दिया कि ब्रम्ह लोक पर्यन्त सब लोक पुनरावृत्ती (उत्पति विनाश) में है (अ.8 म.16) । इसलिए यह गुरू भी पूर्ण नहीं। अब सातवॉ गुरु : सातवॉ सतगुरू शब्द लखाया, जहॉ का जीव तहॉ पहूँचाया । पुन्यात्माओं, इन्हें गुरु नही, अपितु सतगुरु कहा गया है। क्योंकि इनका दिया ज्ञान व भक्ति विधि शास्त्रानुकूल होने से इस लोक और परलोक - दोनो में परम हितकारक है। यह सतगुरु हमें सदभक्ति का दान देकर व हमारा सही ठिकाना बताकर यहॉ काल/ब्रम्ह के २१ ब्रम्हांड से भी और उस पार उस सतलोक को प्राप्त करने की सतसाधना प्रदान करता है जिस मार्ग पर चलने वाला साधक जरा और मरण रुपी महा भयंकर रोग से छुटकारा पाकर उस शास्वत स्थान को प्राप्त करता है, जिस स्थान के बारे में गीता अ.१८ मं.६२ व ६६ में कहा गया है। इसी सतगुरु का संकेत गीता अ.4 के मन्त्र 34 में किया है। और यही सतगुरु ही वह बाखबर है, जिसके बारे में पवित्र कुर्आन शरीफ की सूरत फूर्कानी २५ आयत ५२ से ५९ में भी बताया गया है । अब पुन्यात्माओं, हमें इस सतगुरु/बाखबर की खोज करनी है। दुनिया के सभी संतों, महंतों, गुरुओं को इस पैमाने पर तौलकर देखें तो आपको केवल और केवल एक ही ऐसा संत नजर आएगा जिसके ग्यान का प्रत्युत्तर वर्तमान का कोई भी संत नही दे सका और वह परम संत हैं- "जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज" इस महान संत का आध्यात्मिक मंगल प्रवचन "साधना चैनल" पर प्रतिदिन सायं 07:40 से 08:40 पर प्रसारित होता है/dd direct 32/tata सकाई 191/बिग TV 655/एयरटेल 685/डिश TV 2055/जरुर सुनें और अपना कल्याण कराऐं। अब ज्यादा कुछ कहने को नही बचा।। परमात्मा कहते हैं : समझा है तो सिर धर पॉव, बहूर नहीं रे ऐसा दॉव । सत साहेब👏👏🌹🌹
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